सूर्य यदि प्रकाश है तो शनि ग्रह अंधकार। अधंकार से लड़ना नहीं होता है बस प्रकाश करना पड़ता है। यदि आपकी कुंडली में शनि के यह 3 शुभ योग है तो समझो कि आप मालामाल हो जाएंगे। क्योंकि शनिदेव देते भी छप्पर फाड़कर और लेते भी छप्पर फाड़कर। आओ जानते हैं कि वे 4 शुभ योग कौन कौनसे हैं।
पहला शुभ योग शश योग : पंचमहायोग में से एक है शश योग। शनि ग्रह के कारण बनने वाला शश योग है। यदि आपकी कुंडली में शनि लग्न से अथवा चन्द्रमा से केन्द्र के घरों में स्थित है अर्थात शनि यदि कुंडली में लग्न अथवा चन्द्रमा से 1, 4, 7 अथवा 10वें घर में तुला, मकर अथवा कुंभ राशि में स्थित है तो यह शश योग बनता है। अर्थात शश योग तब बनता है जब कुंडली के लग्न या चंद्रमा से पहले, चौथे, सातवें और दसवें घर में शनि अपने स्वयं की राशि (मकर, कुंभ) में या उच्च राशि तुला में मौजूद होता है।
क्या होगा फायदा : ऐसे जातक में किसी भी रोग से उबरने की मजबूत क्षमता होती है। यह योग जातक की आयु लंबी करता है अथार्त जातक दीर्घायु होता है। व्यापार व्यवसाय करने में जातक बहुत ही प्रेक्टिकल होता है। ऐसा जातक जरूरतपूर्ति या आवश्यकता अनुसार ही वार्तालाप करता है। ऐसे जातक ज्ञानी होता है और रहस्यों को जानने वाला भी होता है। राजनीति के क्षेत्र में है तो ऐसा जातक कूटनीति का धनी होता है और शीर्षपद पर आसीन हो जाता है। शश योग है तो जातक पर शनि के कुप्रभाव, साढे़साती और ढैय्या के बुरे प्रभाव नहीं पड़ते हैं।
दूसरा शुभ योग उच्च या स्वयं की राशि में : शनि मकर एवं कुंभ राशि का स्वामी होता है एवं तुला राशि में यह उच्च का होता है अत: इन तीन राशियों के जातक पर शनि का प्रभाव हो तो उसमें शनि संबंधित गुण अधिक आते हैं। शनि की स्वयं की राशि मकर है। उपरोक्त 3 में से किसी एक में शनि है और जातक शनि और शुक्र के मंदे कार्य नहीं करता है तो शनि शुभ प्रभाव देगा।
तीसरा शुभ योग : शनि वृषभ, धनु और मीन राशि में है तो भी यह अच्छे फल देता है परंतु शर्त यह कि जातक शनि, शुक्र और गुरु के मंदे कार्य ना करें। शनि दशम भाव और एकादश भाव में शुभ फल देता है। शुक्र या गुरु के साथ हो तो भी शुभ फल देता है, परंतु यह भी देखा जाता है कि युति किस भाव में है।