शनि ग्रह ने 23 मई 2021, रविवार को अपनी ही राशि मकर में दोपहर 2 बजकर 23 मिनट पर वक्री चाल से चलना आरंभ कर दिया है यह वक्री चाल अब 11 अक्टूबर रहेगी। शनि 141 दिन वक्री अवस्था में रहेंगे और चार महीने बाद 11 अक्टूबर को सुबह 07 बजकर 58 मिनट पर शनि फिर से मार्गी हो जाएंगे। आओ जानते है कि वक्री चाल क्या होती है, शनिदेव की वक्री दृष्टि किस राशि पर पड़ती है और क्या है बचने के उपाय।
वक्री चाल क्या होती है :
वक्री अर्थात उल्टी दिशा में गति करना। सूर्य और चन्द्र को छोड़कर सभी ग्रह वक्री होते हैं। राहु और केतु सदैव वक्री ही रहते हैं। वस्तुतः कोई भी ग्रह कभी भी पीछे की ओर नहीं चलता यह भ्रम मात्र है। घूमती हुई पृथ्वी से ग्रह की दूरी तथा पृथ्वी और उस ग्रह की अपनी गति के अंतर के कारण ग्रहों का उलटा चलना प्रतीत होता है। उदाहरणार्थ जब हम किसी बस या कार में सफर कर रहे होते हैं तो यदि हमारी बस या कार तेज रफ्तार से किसी दूसरी बस या कार को ओवरटेक करती है तो पीछे छूटने के कारण ऐसा लगता है कि पीछे ही जा रही है। हमें लगता है कि वह उल्टी दिशा में गति कर रही है, जबकि दोनों ही एक ही दिशा में गमन कर रही होती है।
शनि की वक्र दृष्टि :
1. जब शनि वक्री होते हैं तब इनकी दृष्टि का प्रभाव अलग होता है। वक्री ग्रह अपनी उच्च राशिगत होने के समतुल्य फल प्रदान करता है। कोई ग्रह जो वक्री ग्रह से संयुक्त हो उसके प्रभाव मे मध्यम स्तर की वृद्धि होती है। उच्च राशिगत कोई ग्रह वक्री हो तो, नीच राशिगत होने का फल प्रदान करता है।
2. इसी प्रकार से जब कोई नीच राशिगत ग्रह वक्री होता जाय तो अपनी उच्च राशि में स्थित होने का फल प्रदान करता है। इसी प्रकार यदि कोई उच्च राशिगत ग्रह नवांश में नीच राशिगत होने तो तो नीच राशि का फल प्रदान करेगा। कोई शुभ अथवा पाप ग्रह यदि नीच राशिगत हो परन्तु नवांश मे अपनी उच्च राशि में स्थित हो तो वह उच्च राशि का ही फल प्रदान करता है।
शनिदेव की वक्री दृष्टि किस राशि पर पड़ती है?
1. इस ग्रह की दो राशियां है- पहली कुंभ और दूसरी मकर। यह ग्रह तुला में उच्च और मेष में नीच का होता है।
2. जब यह ग्रह वक्री होता है तो स्वाभाविक रूप से तुला राशि वालों के लिए सकारात्मक और मेष राशि वालों के लिए नकारात्मक असर देता है।
3. शनि जब अन्य राशियों में भ्रम करता है तो उसका अलग असर होता है। यदि वह मेष की मित्र राशि धनु में भ्रमण कर रहा है तो मेष राशि वालों पर नकारात्मक असर नहीं डालेगा।
4. केंद्र में शनि (विशेषकर सप्तम में) अशुभ होता है। अन्य भावों में शुभ फल देता है। प्रत्येक ग्रह अपने स्थान से सप्तम स्थान पर सीधा देखता है। सातवें स्थान के अलावा शनि तीसरे और दसवें स्थान को भी पूर्ण दृष्टि से देखता है। शनि जिस राशि में है वहां से उक्त स्थान को वक्री देखता है।
शनि से बचाव के उपाय :
1. शनिग्रह के दुष्प्रभाव से बचने के लिए सर्वप्रथम हनुमानजी की पूजा करें।
2. शनि की शांति के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप भी कर सकते हैं।
3. तिल, उड़द, भैंस, लोहा, तेल, काला वस्त्र, काली गौ, और जूता दान देना चाहिए।
4. कौवे, भैंस या कुत्ते को प्रतिदिन रोटी खिलावें।
5. छायादान करें, अर्थात कटोरी में थोड़ा-सा सरसो का तेल लेकर अपना चेहरा देखकर शनि मंदिर में अपने पापों की क्षमा मांगते हुए रख आएं।
6. दांत साफ रखें। नशा न करें। पेट साफ रखें।
7. अंधे-अपंगों, सेवकों और सफाईकर्मियों से अच्छा व्यवहार रखकर उन्हें दान करने से भी शनि ग्रह के शुभ प्रभाव प्रारंभ हो जाते हैं।
8. शनि ग्रह को शुभ करने के लिए सर्वप्रथम भगवान भैरव की उपासना करें। भैरव महाराज को कच्चा दूध चढ़ाएं। भैरव महाराज के समक्ष शराब छोड़कर उन्हें शराब अर्पित करने से भी शनि के शुभ प्रभाव प्रारंभ हो जाते हैं।