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शनि ग्रह के कारण बनता है 'विष योग', जानिए किस भाव में होता है कैसा असर

हमें फॉलो करें शनि ग्रह के कारण बनता है 'विष योग', जानिए किस भाव में होता है कैसा असर

अनिरुद्ध जोशी

, शनिवार, 1 फ़रवरी 2020 (10:58 IST)
ज्योतिष के अनुसार किसी की भी कुंडली में यदि चंद्रमा के साथ शनि ग्रही की युति है तो शनि उस स्थान या भाव में विश योग निर्मित कर उस भाव के फल बुरे कर देता है। कहते हैं कि जिस भी जातक की कुंडली में यह योग होता है वह जिंदगीभर कई प्राकर विष के समान कठिनाइयों का सामना करता है। भाव अनुसार जानते हैं उसका फल।


 
1.यदि प्रथम भाव में यह यु‍ति बन रही है तो प्राणघातक सिद्ध होती है लेकिन अन्य योग प्रबल है तो जीवन शक्ति मिलती रहेगी।
 
 
2.यदि द्वितीय भाव में यह युति बन ही है तो माता को मृत्यु तुल्य कष्ट होता है। कहते हैं कि अपवाद स्वरूप दूसरी महिला का योग भी बनता है।
 
 
3. यदि यह युति तृतीय भाव बन रही है तो सन्तान के लिए घातक सिद्ध हो सकती है।
 
 
4. यदि चतुर्थ भाव में यह युति बन रही है तो व्यक्ति को शूरवीर हंता बनाती है। 
 
5. यदि यह यु‍ति पंचम भाव में बन रही है तो अच्छा जीवनसाधी मिलके के बावजूद वैवाहिक जीवन में अधूरापन रहता है।
 
6. यदि यह युति छठे भाव में बन रही है तो कहते हैं कि जातक रोगी तथा अल्पायु होता है हालांकि दूसरे योग प्रबल है तो इसका असर नहीं होता है।
 
7. यदि यह युति सप्तम भाव में बन रही है तो जातक धार्मिक स्वभाव का होता है लेकिन जीवनसाथी को मृत्युतुल्य कष्ट होता है। कहते हैं कि यह योग बहु पत्नी/पति योग भी बनता है। 
 
8. यदि यह युति अष्टम भाव में बन रही है तो जातक दानवीर कर्ण जैसी दानशीलता का होता है। 
 
9. यदि यह युति नवम भाव में बन रही है तो जातक लम्बी धार्मिक यात्राएं करता हैं। 
 
10. दशम भाव में यदि यह युति बन रही है तो जातक महाकंजूस होता है। 
 
11. यदि यह युति एकादश अर्थात ग्यारहवें भाव में बन रही है तो जातक को शारीरिक पीड़ा होती है। व्यक्ति धर्म से विमुख होकर नास्तिक बनता है तो और भी कष्ट पाता है।
 
 
12. यदि यह युति द्वादश अर्थात बारहवें भाव में बन रही है तो जातक में धर्म के नाम पर पैसा लेता है।
 
इस योग के निदान के 6 उपाय :
1.प्रतिदिन हनुमान चालीसा पढ़ें। सिर पर केसर का तिलक लगाएं।
2.प्रति शनिवार को छाया दान करते रहें।
3.कभी भी रात में दूध ना पीएं। शनिवार को कुएं में दूध अर्पित करें।
4.अपनी वाणी एवं क्रिया-कर्म को शुद्ध रखें।
5.मांस और मदिरा से दूर रहकर माता या माता समान महिला की सेवा करें।
6.आग्नेय, दक्षिण, नैऋत्य और पश्‍चिम मुखी मकान में ना रहें।

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