सुखी, समृद्ध और निरोग रहने का अचूक तरीका है शिव स्वरोदय
सावन पर विशेष
मित्रों! हम सभी अपने जीवन से सफलता और सौहार्द की अपेक्षा रखते हैं किंतु यह पता नहीं होता कि क्या करें,कौन सा मार्ग अपनाएं कि जीवन की बगिया महक उठे।
आज आपके जीवन से एक नवीन सूत्र जोड़ने की दिशा में, यह एक विनम्र प्रयास है। शिव स्वरोदय सभी को जानना चाहिए,विशेषरूप से शिव से लगाव रखने वाले साधकों को इस विधा का परिचय होना ही चाहिए।
अपने स्वर को पहचानने वाला व्यक्ति अधिक समय तक अस्वस्थ नहीं रह सकता। उसे पराजय से साक्षात्कार नहीं होता। धन-सम्मान-पद के लिए विचार करने की आवश्यकता नहीं रहती। ऐसा व्यक्ति लोगों की सहायता करने में सक्षम होता है साथ ही अपनी इच्छाओं को प्राप्त करता है।
यह साधकों की भाषा है। हमारे दादा-परदादा इसका सतत प्रयोग करते रहे हैं। अब ये विधा लुप्तप्रायः हो गई है। अत्यंत विस्तृत होने की वजह से संपूर्ण साधना का विवरण यहां देना संभव नहीं है। इससे संबंधित मंत्र सामग्री बाजार में उपलब्ध है, योग्य गुरु के निर्देशन में इसका अभ्यास आवश्यक है।
क्या है शिव स्वरोदय : शिव स्वरोदय स्वरोदय विज्ञान पर अत्यन्त प्राचीन ग्रंथ है। इसमें कुल 395 श्लोक हैं। यह ग्रंथ शिव-पार्वती संवाद के रूप में लिखा गया है। शायद इसलिए कि सम्पूर्ण सृष्टि में समष्टि और व्यष्टि का अनवरत संवाद चलता रहता है और योगी अन्तर्मुखी होकर योग द्वारा इस संवाद को सुनता है, समझता है और आत्मसात करता हैं। इस ग्रंथ के रचयिता साक्षात् देवाधिदेव भगवान शिव को माना जाता है।
शिव स्वरोदय साधना जानने के बाद इन प्रमुख बातों का ध्यान रखें।
1. प्रातः उठकर विस्तर पर ही बैठकर आंख बंद किए हुए पता करें कि किस नाक से सांस चल रही है। यदि बायीं नाक से सांस चल रही हो, तो दक्षिण या पश्चिम की ओर मुंह कर लें। यदि दाहिनी नाक से सांस चल रही हो, तो उत्तर या पूर्व की ओर मुंह करके बैठ जाएं। फिर जिस नाक से सांस चल रही है, उस हाथ की हथेली से उस ओर का चेहरा स्पर्श करें।
2. उक्त कार्य करते समय दाहिने स्वर का प्रवाह हो, तो सूर्य का ध्यान करते हुए अनुभव करें कि सूर्य की किरणें आकर आपके हृदय में प्रवेश कर आपके शरीर को शक्ति प्रदान कर रही हैं। यदि बाएं स्वर का प्रवाह हो, तो पूर्णिमा के चन्द्रमा का ध्यान करें और अनुभव करें कि चन्द्रमा की किरणें आपके हृदय में प्रवेश कर रही हैं और अमृत उड़ेल रही हैं।
3. इसके बाद दोनों हथेलियों को आवाहनी मुद्रा में एक साथ मिलाकर आंखें खोलें और जिस नाक से स्वर चल रहा है, उस हाथ की हथेली की तर्जनी उंगली के मूल को ध्यान केंद्रित करें, फिर हाथ में निवास करने वाले देवी-देवताओं का दर्शन करने का प्रयास करें और साथ में निम्नलिखित श्लोक पढ़ते रहें-
कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती।
करमूले तु गोविन्द प्रभाते करदर्शनम्।।
अर्थात कर (हाथ) के अग्र भाग में लक्ष्मी निवास करती हैं, हाथ के बीच में मां सरस्वती और हाथ के मूल में स्वयं गोविन्द निवास करते हैं।
4. तत्पश्चात् निम्नलिखित श्लोक का उच्चारण करते हुए मां पृथ्वी का स्मरण करें और साथ में तन्त्र और योग में पृथ्वी के बताए गए स्वरूप का ध्यान करें-
समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डले।
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्व मे।।
फिर जो स्वर चल रहा हो, उस हाथ से माता पृथ्वी का स्पर्श करें और वही पैर जमीन पर रखकर विस्तर से नीचे उतरें।
अपनी दिनचर्या के निम्नलिखित कार्य स्वर के अनुसार करें-
1. शौच सदा दाहिने स्वर के प्रवाहकाल में करें और लघुशंका (मूत्रत्याग) बाएं स्वर के प्रवाहकाल में।
2. भोजन दाहिने स्वर के प्रवाहकाल में करें और भोजन के तुरन्त बाद 10-15 मिनट तक बाईँ करवट लेटें।
3. पानी सदा बाएं स्वर के प्रवाह काल में पिएं।
4. दाहिने स्वर के प्रवाह काल में सोएं और बाएं स्वर के प्रवाह काल में उठें।
कार्य स्वर के अनुसार करने पर शुभ परिणाम देखने को मिलते हैं-
1. घर से बाहर जाते समय जो स्वर चल रहा हो, उसी पैर से दरवाजे से बाहर पहला कदम रखकर जाएं।
2. दूसरों के घर में प्रवेश के समय दाहिने स्वर का प्रवाह काल उत्तम होता है।
3. जन-सभा को सम्बोधित करने या अध्ययन का प्रारम्भ करने के लिए बाएं स्वर का चुनाव करना चाहिए।
4. ध्यान, मांगलिक कार्य आदि का प्रारम्भ, गृहप्रवेश आदि के लिए बायां स्वर चुनना चाहिए।
5. लम्बी यात्रा बाएं स्वर के प्रवाहकाल में और छोटी यात्रा दाहिने स्वर के प्रवाहकाल में प्रारम्भ करनी चाहिए।
6. दिन में बाएं स्वर का और रात्रि में दाहिने स्वर का चलना शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक दृष्टि से सबसे अच्छा माना गया है।
इस प्रकार धीरे-धीरे एक-एक कर स्वर विज्ञान की बातों को अपनाते हुए हम अपने जीवन में अभूतपूर्व सफलता प्राप्त कर सकते हैं। इस विषय को यही विराम दिया जा रहा है। स्वर-रूप भगवान शिव और मां पार्वती आप सभी के जीवन को सुखमय और समृद्धिशाली बनाएं।