Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

शुक्रवार को पूजें श्री यंत्र : मिलती है अद्भुत शक्तियां...

हमें फॉलो करें शुक्रवार को पूजें श्री यंत्र :  मिलती है अद्भुत शक्तियां...
श्री शब्द का अर्थ लक्ष्मी, सरस्वती, शोभा, संपदा, विभूति से किया जाता है। श्रीयंत्र अकेला ऐसा यंत्र है, जो समस्त ब्रह्मांड का प्रतीक है। यह यंत्र श्री विद्या से संबंध रखता है। श्री विद्या का अर्थ साधक को लक्ष्मी़, संपदा, विद्या आदि हर प्रकार की 'श्री' देने वाली विद्या को कहा जाता है। श्री विद्या के यंत्र को 'श्रीयंत्र' कहते हैं या 'श्रीचक्र' कहते हैं। 
 
यह परम ब्रह्म स्वरूपिणी आदि प्रकृतिमयी देवी भगवती महात्रिपुर सुंदरी का आराधना स्थल है। यह चक्र ही उनका निवास एवं रथ है। यह ऐसा समर्थ यंत्र है कि इसमें समस्त देवों की आराधना-उपासना की जा सकती है। सभी वर्ण संप्रदाय का मान्य एवं आराध्य है।
webdunia
यह यंत्र हर प्रकार से श्री प्रदान करता है जैसा कि दुर्गा सप्तशती में कहा गया है-
 
आराधिता सैव नृणां भोगस्वर्गापवर्गदा
 
आराधना किए जाने पर आदिशक्ति मनुष्यों को सुख, भोग, स्वर्ग, अपवर्ग देने वाली होती है। उपासना सिद्ध होने पर सभी प्रकार की 'श्री' अर्थात चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति हो सकती है। इसील‍िए इसे 'श्रीयंत्र' कहते हैं। इस यंत्र की अधिष्ठात्री देवी त्रिपुर सुंदरी हैं। इसे शास्त्रों में विद्या, महाविद्या, परम विद्या के नाम से जाना जाता है। वामकेश्वर तंत्र में कहा है-
 
सर्वदेव मयी विद्या
 
दुर्गा सप्तशती में- विद्यासि सा भगवती परमा‍हि देवि।
 
हे देवी! तुम ही परम विद्या हो।
 
इस महाचक्र का बहुत विचित्र विन्यास है। यंत्र के मध्य में बिंदु है, बाहर भूपुऱ, भुपुर के चारों तरफ चार द्वार और कुल दस प्रकार के अवयय हैं, जो इस प्रकार हैं- बिंदु, त्रिकोण, अष्टकोण, अंतर्दशार, वहिर्दशार, चतुर्दशार, अष्टदल कमल, षोडषदल कमल, तीन वृत्त, तीन भूपुर। इसमें चार उर्ध्व मुख त्रिकोण हैं, जिसे श्री कंठ या शिव त्रिकोण कहते हैं। पांच अधोमुख त्रिकोण होते हैं, जिन्हें शिव युवती या शक्ति त्रिकोण कहते हैं।
आदि शंकराचार्य ने सौंदर्य लहरी में कहा- 
 
चतुर्भि: श्रीकंठे: शिवयुवतिभि: पश्चभिरपि
 
नवचक्रों से बने इस यंत्र में चार शिव चक्र, पांच शक्ति चक्र होते हैं। इस प्रकार इस यंत्र में 43 त्रिकोण, 28 मर्म स्थान, 24 संधियां बनती हैं। तीन रेखा के मिलन स्थल को मर्म और दो रेखाओं के मिलन स्थल को संधि कहा जाता है। 'श्रीयंत्र' की खोज भी एक विस्मयकारी खोज है, जो कि आज के संतप्त मानव को हर प्रकार की शांति प्रदान करने में पूर्ण समर्थ है।
 
शास्त्रों का कथन है कि श्रीयंत्र के दर्शन मात्र से ही इसकी अद्भुत शक्तियों का लाभ मिलना शुरू हो जाता है।
 
* इस यंत्र को मंदिर या तिजोरी में रखकर प्रतिदिन पूजा करने व प्रतिदिन कमलगट्टे की माला पर श्रीसूक्त के 12 पाठ के जाप करने से लक्ष्मी प्रसन्न रहती है।
 
* जन्मकुंडली में मौजूद विभिन्न कुयोग श्रीयंत्र की नियमित पूजा से दूर हो जाते हैं।
 
* इसकी कृपा से मनुष्य को अष्टसिद्धियां और नौ निधियों की प्राप्ति होती है।
 
* श्रीयंत्र के पूजन से रोगों का नाश होता है।
 
* इस यंत्र की पूजा से मनुष्य को धन, समृद्धि, यश, कीर्ति की प्राप्ति होती है।
 
* रुके कार्य बनने लगते हैं। व्यापार की रुकावट खत्म होती है।
 
श्रीयंत्र की पूजा के मंत्र :-

श्रीं श्रीये नम: 
 
* श्री महालक्ष्म्यै नमः
 
* श्री ह्रीं क्लीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः
 
* श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः

webdunia

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

वरदान है श्री लक्ष्मी सूक्त पाठ,धन, धान्य, सुख, ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए जरूर पढ़ें आज