साल के 12 महीनों की तरह 12 राशियां होती है और इन 12 राशियों के नाम से प्रत्येक महीने में एक संक्रांति मनाई जाती है। सूर्य का राशि परिवर्तन ज्योतिष के अनुसार एक अहम घटना है। सूर्य के राशि परिवर्तन से सौर वर्ष के मास की गणना भी की जाती है। सूर्य देव पूरे वर्ष में एक एक कर सभी राशियों में प्रवेश करते हैं उनके इस चक्र को संक्रांति कहा जाता है। मेष राशि से वृषभ राशि में सूर्य का संक्रमण वृषभ संक्रांति कहलाता है। वृषभ संक्रांति का त्योहार ज्येष्ठ महीने की शुरुआत को भी बताता है।
वृषभ संक्रांति वर्ष में आने वाली 12 संक्रांतियों में से बहुत ही महत्वपूर्ण मानी गई है। ज्येष्ठ माह की संक्रांति को वृषभ संक्रांति के रूप में मनाया जाता है। हिंदू कैलेंडर के मुताबिक यह वर्ष का दूसरा महीना होता है लेकिन जार्जियन कैलेंडर के अनुसार ये मई-जून का महीना होता है। इस दिन सूर्य मेष राशि से वृषभ राशि में प्रवेश करता है इसलिए इसे वृषभ संक्रांति कहा जाता है।
सूर्यदेव का ये गोचर शुक्रवार, 14 मई, 2021 की सुबह 11:15 बजे होगा, इस दौरान सूर्य अपनी उच्च राशि मेष से निकलकर वृषभ राशि में प्रवेश करेंगे यहाँ वे 15 जून, 2021 को 05:49 बजे तक स्थित रहेंगे।
इस दिन सूर्योदय से पहले किसी पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए और व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद सूर्य देव और भगवान शिव के 'ऋषभरुद्र' स्वरुप की पूजा करनी चाहिए। प्रसाद के रूप में भगवान को खीर का भोग लगाएं। वृषभ संक्राति पर दान पुण्य का बड़ा ही महत्व होता है। इस दिन दान दक्षिणा देने से बहुत पुण्य मिलता है, इस दिन गौ दान को बहुत पवित्र दान माना गया है।
संक्रांति पर गौ दान करना बहुत ही लाभकारी होता है। बिना दान के वृषभ संक्रांति की पूजा अधूरी होती है।
गौ दान के अलावा वृषभ संक्रांति पर अगर किसी ब्राह्मण को पानी से भरा घड़ा दान किया जाए तो इससे विशेष लाभ मिलता है। वृषभ का अर्थ होता है बैल साथ ही भगवान शिव का वाहन नंदी भी बैल है इसलिए वृषभ संक्रांति का अपना एक अलग ही महत्व है। भारत के विभिन हिस्सों में वृषभ संक्रांति को अलग अलग नामों से जाना जाता है। दक्षिण भारत में वृषभ संक्रांति को वृषभ संक्रमण के रूप में जाना जाता है।
सौर कैलेंडर के अनुसार इस त्योहार को नए मौसम की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है। तमिल कैलेंडर में इसे वैगसी मासम का आगमन कहा जाता है तो मलयालम कैलेंडर में 'एदाम मसम'। बंगाली कैलेंडर में इसे 'ज्योत्तो मश' का प्रतीक माना जाता है। ओडिशा में वृषभ संक्रांति को 'वृष संक्रांति' के रूप में जाना जाता है। इस वर्ष वृषभ संक्रांति 14 मई (शुक्रवार) को मनाई जाएगी।
वृषभ संक्रांति महत्व एवं पूजा विधि
इस संक्रांति में उपवास का भी बहुत खास महत्व होता है। जिसमे प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व स्नान करके भगवान् शिव का पूजन किया जाता है। भगवान शिव के रिषभरूद्र स्वरुप को पूजा जाता है। वृषभ संक्रांति में व्रत रखने वाले व्यक्ति को रात्रि में जमीन पर सोना होता है।
इस दिन ब्राह्मणों को गौ दान करते हैं। संक्रांति के दिन गरीबों, ब्राह्मणों और जरुरतमंदों को दान आदि करना बहुत लाभकारी माना जाता है। श्रद्धालु इस दिन जरुरत की वस्तुएं और खान पान की चीजों का दान करते हैं। संक्रांति मुहूर्त के पहले आने वाली 16 घड़ियों को बहुत शुभ माना जाता है। इस समय में दान, मंत्रोच्चारण, पितृ तर्पण और शांति पूजा करवाना भी बहुत अच्छा माना जाता है। इसके अलावा इस समय में गंगा आदि पवित्र नदियों में स्नान करना भी बहुत शुभ माना जाता है।
भक्त विशेष रूप से इस शुभ दिन विष्णु मंदिरों पर जाते हैं और भगवान विष्णु से प्रार्थना करते हैं कि वे उन्हें अच्छे और बुरे के बीच चुनाव करने का ज्ञान दें। पूरे देश में पवित्र स्थान वृषभ संक्रांति के लिए तैयारी की जाती है क्योंकि भक्त इस दिन संक्रमन स्नान करते हैं।