देव प्रबोधिनी एकादशी दिवाली के बाद आने वाला बड़ा पर्व है। इस दिन दो बड़ी मान्यता है कि भगवान विष्णु चार महीनों के शयन के पश्चात जागकर शुभ कार्यों के पुनः आरंभ की आज्ञा देते हैं और दूसरी यह कि इस दिन तुलसी विवाह संपन्न किया जाता है।
इस दिन तुलसी और विष्णु पूजन के साथ ही यह कामना की जाती है कि घर में आने वाले मंगल कार्य निर्विघ्न संपन्न हों। तुलसी का पौधा चूंकि पर्यावरण तथा प्रकृति का भी द्योतक है। अतः इस दिन यह संदेश भी दिया जाता है कि औषधीय पौधे तुलसी की तरह सभी में हरियाली एवं स्वास्थ्य के प्रति सजगता का प्रसार हो। इस दिन तुलसी के पौधों का दान भी किया जाता है।
भारतीय पंचांग के अनुसार एकादशी की तिथि का महत्व यूं भी बहुत है। अतः इस दिन को विशेष पूजा-अर्चना के साथ मनाया जाता है। इस दिन से विवाह के अतिरिक्त उपनयन, गृह प्रवेश आदि अनेक मंगल कार्यों को संपन्न करने की शुरुआत कर दी जाती है।
इस दिन पूजन के साथ व्रत रखने को भी बड़ा महत्व दिया जाता है। महिलाएं इस दिन आंगन में गेरू तथा खड़ी से मांडणे सजाती हैं और तुलसी विवाह के साथ ही गीत एवं भजन आदि के साथ सभी उत्सव मनाते हैं।