कुंडली में कई तरह के योग होते हैं। जैसे हंस योग, शश योग, रुचक योग, भद्र योग, मालव्य योग, गण्ड योग, अतिगण्ड, विधुर योग, वैधृति योग, आदि। इस बार जानिए वैधव्य योग के बारे में।
1. वैधव्य योग का अर्थ है विधवा हो जाना या विधुर होने का योग। यह योग कई प्रकार का होता है। वैधव्य योग बनने की कई स्थितियां हैं।
2. सप्तम भाव का स्वामी मंगल होने व शनि की तृतीय, सप्तम या दशम दृष्टि पड़ने से भी वैधव्य योग बनता है।
3. सप्तमेश का संबंध शनि, मंगल से बनता हो व सप्तमेश निर्बल हो तो भी वैधव्य का योग बनता है।
4. सप्तमेश शनि मंगल को देखता हो, तब दाम्पत्य जीवन कष्टमय होता है या वैधव्य योग बनता है।
5. यदि किसी स्त्री की कुंडली में द्वितीय भाव में मंगल हो व शनि की दृष्टि पड़ती हो व सप्तमेश अष्टम में हो या षष्ट में हो या द्वादश में होकर पीड़ित हो, तब भी वैधव्य आगे बनता है।
6. वैधव्य योग के लिए सप्तमभाव स्त्री की कुंडली में पति का व पति की आयु का भाव लग्न से द्वितीय होता है। दाम्पत्य जीवन के कारक शुक्र का विशेष अध्ययन करना चाहिए।
7. जिस स्त्री की कुंडली में सप्तम भाव में मंगल पाप ग्रहों से युक्त हो तथा पापग्रह सप्तम भाव में स्थित मंगल को देखते हों तो वैधव्य योग बनता है।
8. चंद्रमा से सातवें या आठवें भाव में पापग्रह हो तो मेष या वृश्चिक राशिगत राहु और आठवें या बारहवें स्थान में हो तो वृष, कन्या एवं धनु लग्नों में वैधव्य योग बनता है।
9. मकर लग्न हो तो सप्तम भाव में कर्क राशिगत सूर्य मंगल के साथ हो तथा चंद्रमा पाप पीड़ित हो तो यह वैधव्य योग बनता है।
10. लग्न एवं सप्तम दोनों स्थानों में पापग्रह हो, तो वैधव्य योग बनता है।
11. सप्तम भाव में पापग्रह हों तथा चन्द्रमा छठे या सातवें भाव पर हो तो वैधव्य योग बनता है।
12. यदि अष्टमेश सप्तम भाव में हो, सप्तमेश को पापग्रह देखते हों एवं सप्तम भाव पाप पीड़ित हो तो वैधव्य योग बनता है।
13. षष्टम व अष्टम भाव के स्वामी यदि षष्टम या व्यय भाव में पापग्रहों के साथ हो तो वैधव्य योग बनता है।
14. जन्म लग्न से सप्तम, अष्टम स्थानों के स्वामी पाप पीड़ित होकर छठे या बाहरवें भाव में चले जाए तो वैधव्य योग बनता है।
15. पापग्रह से दृष्ट पापग्रह यदि अष्टम भाव में हो और शेष ग्रह चाहें उच्च के ही क्यों न हो तो वैधव्य योग बनता है।
16. विवाह के दौरान नाड़ी दोष नहीं मिलाया हो और दोनों कि कुंडली में एक ही नाड़ी हो तो दांपत्य जीवन कष्यमय गुजरता है और वैधव्य योग बनता है। आदि नाड़ी हो तो अलगाव की संभावना, मध्य नाड़ी हो तो दोनों की मृत्यु की संभावना, अंत्य नाड़ी हो तो दोनों का जीवन कष्टमय रहता है।
17. यदि वर-कन्या के नक्षत्रों में नजदीकियां हों, तो वैधव्य योग बनता है।
18. यदि जन्म रविवार या शनिवार को अश्लेषा नक्षत्र एवं द्वितीया तिथि के संयोग में हुआ है, जन्म शनिवार को कृतिका नक्षत्र एवं सप्तमी तिथि के संयोग में हुआ है, जन्म मंगलवार को शतभिषा नक्षत्र एवं सप्तमी या द्वादशी तिथि के संयोग में हुआ है या जन्म रविवार को विशाखा नक्षत्र एवं द्वादशी तिथि के संयोग में हुआ है तो वैधव्य योग बनता है।
उपाय : जातिका को विवाह के 5 साल तक मंगला गौरी का पूजन करना चाहिए, विवाह पूर्व कुंभ विवाह करना चाहिए और यदि विवाह होने के बाद इस योग का पता चलता है तो दोनों को मंगल और शनि के उपाय करना चाहिए।