समाजशास्त्र के अनुसार मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। जब कोई बच्चा जन्म लेता है तब उसका जीवन एक बीज के सदृश्य होता है जिसमें अंकुरण की अपार संभावनाएं तो होती हैं किन्तु बिना उचित प्रयास के उसमें अंकुरण हो वह बीज पुष्पित व पल्लवित होकर फलदायी नहीं होता।
जन्म लेने के पश्चात् प्रत्येक जातक को षोडश संस्कारों के माध्यम से एक श्रेष्ठ मनुष्य बनाए जाने की दिशा में प्रयास किया जाता है। हमारे शास्त्रों में षोडश संस्कारों का विशेष महत्त्व बताया गया है। जन्म के पश्चात् इन संस्कारों के माध्यम से किसी जातक का मानसिक व चारित्रिक विकास किया जाता है।
किन्तु आजकल इन संस्कारों को नेपथ्य में धकेल दिया गया है। हमारे षोडश संस्कारों में अहम संस्कार है विद्यारंभ या वेदारंभ क्योंकि प्राचीन समय में विद्यारंभ वेदों के अध्ययन से ही प्राररंभ होता था। विद्यारंभ संस्कार प्रत्येक वर्ष "वसंत-पंचमी" तिथि को किया जाता है। जिसमें विद्या एवं ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी मां सरस्वती का पंचोपचार पूजन अर्चन कर विद्यारंभ किया जाता है। विद्यारंभ संस्कार जीवन का अति-महत्त्वपूर्ण संस्कार माना गया है। आइए जानते हैं कि "वसंत-पंचमी" वाले दिन विद्यारंभ संस्कार कैसे करें-
- जिस जातक का विद्यारंभ संस्कार कराना हो उसे सर्वप्रथम स्नानादि से निवृत्त होकर किसी विद्वान आचार्य के सानिध्य में आचमन, प्राणायाम की विधि से इस संस्कार हेतु संकल्प करते हुए निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहिए-
"ब्रह्मारम्भेऽवसाने च पादौ ग्राह्रो गुरो: सदा।
सहत्य हस्ताव्ध्येयं स हि ब्रह्माञ्जलि: स्मृत॥"
अब शिक्षा की आकांक्षा करता हुआ शिष्य शुद्ध वस्त्र धारण करके शास्त्रोक्त विधि से आचमन करें और उत्तराभिमुख होकर गुरू के निकट बैठकर मां सरस्वती का पंचोपचार पूजन अर्चन करें। तत्पश्चात् सर्वप्रथम अपने कुल के अनुसार किसी वेद व उसकी शाखा, उपनिषद, या कुल की रीति व परम्परा के अनुसार किसी धार्मिक ग्रन्थ का पूजन कर "श्रीगणेशाय नम:" का उच्चारण करने के पश्चात् उसका पठन प्रारम्भ करें। यदि 3-4 वर्ष का बालक/बालिका हो तो उसे सर्वप्रथम "ॐ" का उच्चारण करावें तत्पश्चात् "गं" शब्द का उच्चारण करावें, पुन: अन्त में "ॐ" शब्द का उच्चारण करावें। इसके पश्चात् आचार्य को विधिवत दक्षिणा देकर चरण स्पर्श करावें।
-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र