देवउठनी एकादशी के बाद भी कम बनेंगे विवाह मुहूर्त
विवाह हमारे षोडश संस्कारों में एक महत्त्वपूर्ण संस्कार है। विवाह में जितना महत्त्व एक योग्य व श्रेष्ठ जीवनसाथी का होता है उतना ही महत्व श्रेष्ठ मुहूर्त व लग्न का होता है।
हमारे सनातन धर्म में देवशयन के चार्तुमास में विवाह मुहूर्त्त का निषेध होता है जो देवोत्थान (देवउठनी) एकादशी तक जारी रहता है।
शास्त्रानुसार इस अवधि में विवाह करना वर्जित माना गया है किन्तु कभी-कभी ऐसा संयोग भी बन जाता है कि देवउठनी एकादशी के बाद भी बहुत अधिक विवाह मुहूर्त उपलब्ध नहीं होते हैं।
वर्ष 2020 में ऐसा ही संयोग बनने जा रहा है जब देवउठनी के बाद लगभग 3 माह तक विवाह मुहूर्त नहीं बनेंगे।
पंचांग गणानुसार 15 दिसंबर 2020 से 18 अप्रैल 2021 तक विवाह मुहूर्त का अभाव रहेगा।
शास्त्रानुसार इस अवधि में विवाह करना वर्जित रहेगा। आइए जानते हैं कि देवउठनी एकादशी के पश्चात् किन कारणों से विवाह मुहूर्त का निषेध रहेगा।
1. धनु संक्रांति (मलमास/खरमास)
शास्त्रानुसार विवाह मुहूर्त्त निकालते समय मलमास/खरमास का विशेष ध्यान रखा जाता है। मलमास में विवाह मुहूर्त का अभाव होता है। 15 दिसंबर 2020 से सूर्य के धनु राशि में गोचर के साथ ही मलमास प्रारंभ हो जाएगा जो 14 जनवरी 2021 तक प्रभावशील रहेगा। अत: 15 दिसंबर 2020 से 14 जनवरी 2021 की अवधि तक मलमास होने के कारण इस अवधि में विवाह वर्जित रहेंगे।
2. गुरु अस्तोदय
शास्त्रानुसार विवाह मुहूर्त के निर्णय में गुरु-शुक्र के तारे का उदित स्वरूप में होना आवश्यक माना गया है। गुरु-शुक्र के अस्त स्वरूप में रहते विवाह मुहूर्त का निषेध रहता है। आगामी 15 जनवरी 2021 से गुरु का तारा अस्त होने जा रहा है जो 13 फरवरी 2021 को उदित होगा। अत: इस अवधि में विवाह मुहूर्ताभाव में विवाह वर्जित रहेंगे।
3. शुक्र अस्तोदय-
शास्त्रानुसार विवाह मुहूर्त के निर्णय में गुरु-शुक्र के तारे का उदित स्वरूप में होना आवश्यक माना गया है। गुरु-शुक्र के अस्त स्वरूप में रहते विवाह मुहूर्त का निषेध रहता है। आगामी 14 फरवरी 2021 से शुक्र का तारा अस्त होने जा रहा है जो 18 अप्रैल 2021 को उदित होगा। अत: इस अवधि में विवाह मुहूर्ताभाव में विवाह वर्जित रहेंगे।
-ज्योतिर्विद् पं. हेमंत रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केंद्र