Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

जानिए, कैसे निश्चित हुआ वारों का क्रम?

हमें फॉलो करें जानिए, कैसे निश्चित हुआ वारों का क्रम?
-गोपाल माहेश्वरी
 
क्या आपने कभी पता लगाया है कि हमेशा रविवार के बाद सोमवार, फिर मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि- ये वार इसी क्रम में क्यों आते हैं? पूछने पर कुछ लोग आपको बताएंगे कि यह क्रम पाश्चात्य जगत से आया है अर्थात रविवार, सोमवार, संडे, मंडे का अनुवाद है। लेकिन आप दावे के साथ कह सकते हैं कि यह क्रम भारतीय खगोलवेत्ता म‍हर्षियों का दिया हुआ है। सारा संसार कैलेंडर अर्थात पंचांग के लिए भारत का ऋ‍णी है।
 
दावा करते समय प्रमाण तो चाहिए ही? तो अथर्व वेद के अथर्व ज्योतिष का 93वां श्लोक याद रखिए- 
 
आदित्य: सोमो भौमश्च तथा बुध बृहस्पति:।
भार्गव: शनैश्चरश्चैव एते सप्त दिनाधिपा:।।
 
यह ग्रंथ कम से कम 5,000 वर्ष पुराना है और पाश्चात्य कैलेंडर वही जनवरी, फरवरी व मार्च वाला वह तो 2017 वर्षों से पुराना नहीं है। यह तो सब जानते हैं। 
 
अब रुचि हो तो यह भी समझ लो। 1 वार 24 घंटे का होता है जिसे भारतीय शास्त्रों में 1 होरा कहा जाता है। वह ढाई घटी मतलब 1 घंटे की होती है।
 
आकाश में अपने सौर मंडल में ग्रहों का क्रम आपको पता है- सूर्य, बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, गुरु, शनि। बस इसी से बना है वारों का क्रम। चूंकि हम रहते हैं पृथ्‍वी पर इसलिए हम पृथ्वी को केंद्र मानकर सूर्य को भी एक ग्रह मानकर गणना करते हैं।
 
वैसे तो सूर्य एक तारा है और वह सौर मंडल के केंद्र में है और स्थिर है। इन तथ्‍यों के आधार पर पाश्चात्य प्रेमी तुम्हें झूठा सिद्ध करने का प्रयास कर सकते हैं। पर उन्हें बताना चूंकि हम पृथ्वी पर स्थित हैं और सूर्य हमें पृथ्वी की पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर जाता दिखता है इसलिए इस बिना किसी यंत्र के सर्वसाधारण मनुष्यों को दिखने वाले सच के आधार पर ही सूर्य को विभिन्न राशियों में घूमता माना गया है। ऐसा ही एक भ्रम चन्द्रमा को लेकर हो सकता है, जो वस्तुत: पृथ्‍वी का उपग्रह है। उसे ज्योतिष में ग्रह क्यों माना गया है? लेकिन जो कारण सूर्य का वही चन्द्र का। वह पृथ्वी से अंतरिक्ष में स्थित निकटतम एवं सामान्य रूप से दिखाई देने वाला खगोलीय पिंड जो है इसलिए सामान्य लोगों को खुली आंखों से सरलता से दिखने वाले सूर्य व चन्द्र क्रमश: तारा व उपग्रह होकर भी ग्रह मान लिए गए और वारों के नामकरण में इनको सम्मिलित किया गया।
 
अब रविवार के बाद इस क्रम में बुधवार क्यों नहीं आता? यह भी अब समझ लो। 
 
सृष्टि बनी उस दिन चैत्र मास था। प्रतिपदा तिथि शुक्ल पक्ष और रविवार था। ब्रह्मपुराण में लिखा गया है तब सारे ग्रह मेष राशि के प्रारंभिक भाग अश्विनी नक्षत्र पर थे। आपने दौड़ के मैदान में ट्रैक पर खड़े धावकों को देखा है न करीब वैसा ही।
 
अब केंद्र में रहने वाला व प्रधान मानते हुए सूर्य को प्रथम होरा (घंटे) का स्वामी मानकर उससे प्रारंभ होने वाला दिन रविवार बना। शुक्र, बुध, चन्द्र, शनि, गुरु, मंगल उनकी कक्षा, गति एवं दृश्य स्‍थितियों के अनुसार उस समय के विद्वानों ने 1-1 होरा का अधिपति माना। इस प्रकार 24 घंटे (होरा) का एक अहोरात्र बीत जाने पर 25वें घंटे में आने वाली होरा का जो स्वामी है अर्थात अगले दिन सूर्योदय के पहले घंटे में जो होरा होगी, उसके स्वामी के नाम पर उस दिन का नाम रखा गया। यही 'वार' या 'वासर' कहलाया। इसलिए रविवार के बाद बना सोमवार फिर मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि। 
 
थोड़ा सा गोल-गोल घूमता गणित है, पर भूगोल (पृथ्वी) से खगोल (अंतरिक्ष) की गणना एवं प्रमुख आकाशीय पिंडों की गतियां सब चक्रीय है तो गणित भी वैसा ही होगा। 
webdunia
अच्‍छा, अब बताओ 24 घंटों में संडे कब शुरू होगा और रविवार कब? तारीख तो रात के 12 बजे बदलती है तथा संडे भी उसी के साथ, पर अपना रविवार तो सूर्योदय से ही बदलेगा। बदलते तो वे भी सूर्योदय के साथ ही हैं, पर सूर्य उनके देशों में रात जब उगता है, हमारे यहां तब होती है। 
 
तो समझ आया न कुछ-कुछ वारों का रहस्य? और यह भी कि कभी हो नहीं सकते सप्ताह में दो या तीन रविवार, चाहे बच्चों का कितना भी मन करे। 
साभार : देवपुत्र

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

विक्रमादित्य : जिनका संवत् आज भी प्रचलित है