Rajyoga nichbhang and viprit raj yog In Astrology: ज्योतिष के अनुसार जन्म पत्रिका यानी जन्म कुंडली में कई तरह के योग होते हैं जैसे गजकेसरी योग, शश योग, राजयोग, विपरीत योग, पिशाच योग, विषयोग, केमद्रुम योग, अतिगंड योग, लक्ष्मी नारायण योग, चांडाल योग, बुधादित्य योग, आनन्दादि, मालव्य योग, हंस राजयोग, अंगारक योग, वैधृति योग, विधवा योग, अखंड साम्राज्य योग, गजलक्ष्मी योग आदि। आओ जानते हैं कि क्या होता है राजयोग और विपरीत राज योग और क्या है इसका प्रभाव।
1. राजयोग : बृहस्पति जब कर्क राशि में हो और कुंडल के नवम स्थान पर शुक्र एव सप्तम भाव में शनि एवं मंगल विराजमान हो तो यह स्थिति राजयोग का निर्माण करती है। राजयोग कई प्रकार के होते हैं। जब तीन या तीन से अधिक ग्रह अपनी उच्च राशि या स्वराशि में होते हुए केन्द्र में स्थित हों, जब कोई ग्रह नीच राशि में स्थित होकर वक्री और शुभ स्थान में स्थित हो, तीन या चार ग्रहों को दिग्बल प्राप्त हो, चंद्र केन्द्र में स्थित हो और गुरु की उस पर दृष्टि हो, नवमेश व दशमेश का राशि परिवर्तन हो, नवमेश नवम में व दशमेश दशम में हो या नवमेश व दशमेश नवम में या दशम में हो तो भी राजयोग का निर्माण होता है।
प्रभाव : राजयोग के कारण जातक राजाओं की भांति सुख, सुविधा और ऐश्वर्यपूर्वक जीवन यापन करता है। उसके पास सबकुछ रहता है। वह किसी उच्चपद पर विराजमान होता है।
2. नीचभंग राजयोग : जन्म कुण्डली में जो ग्रह नीच राशि में स्थित है उस नीच राशि का स्वामी अथवा उस राशि का स्वामी जिसमें वह नीच ग्रह उच्च का होता है, यदि लग्न से अथवा चंद्र से केन्द्र में स्थित हो तो नीचभंग राजयोग का निर्माण होता है।
Rajyoga nichbhang viprit raj yog
3. विपरीत राजयोग : जब किसी जातक की जन्म पत्रिका के 6ठें, 8वें एवं 12वें भाव के स्वामी ग्रह आपस में युति संबंध रखते हो, अपने अपने घरों में स्थित हो, इन घरों में अपनी राशि में स्थित हों या ये ग्रह परस्पर ही दृष्ट हो, किसी शुभ ग्रह व शुभ भावों के स्वामी से युत अथवा दृष्ट न हों तो विपरीत राजयोग का निर्माण होता है।
प्रभाव : इस योग के प्रभाव से जातक भूमि, भवन और वाहन का मालिक होता है। इस योग का प्रभाव लंबे वक्त तक नहीं रहता है। यदि समय रहते समय को पकड़कर आगे बढ़ गए तो ठीक अन्यथा पुन: वैसी ही स्थिति रहती है। फलित ज्योतिष में विपरीत राजयोग तीन प्रकार के होते हैं।
हर्ष विपरीत राजयोग : त्रिक भाव के स्वामी एक दूसरे के खानों में विराजमान होने पर हर्ष विपरीत राज योग बनता है। 6वें घर में एक पापी ग्रह होता या 6वें घर का स्वामी 6वें, 8 वें या 12 वें घर में होता है इस योग का निर्माण होता है। यदि 6वां घर 8वें या 12वें घर के साथ संबंध बनाता है, तो यह योग शत्रुओं पर विजय दिलाता है। ऐसा जातक शारीरिक रूप से मजबूत और धनवान होता है। समाज और परिवार में इसका प्रभाव होता है।
विपरीत सरल राजयोग : जब 6वें या 12 वें घर का स्वामी 8 वें घर में हो, या 8 वें घर का स्वामी 6 वें या 12 वें घर में हो तो सरल विपरीत राज योग बनता है। ऐसा जातक विपरीत परिस्थितियों में भी जीतने की क्षमता रखता है। ऐसा जातक विद्वान होता है और संघर्षों से घबराता नहीं है। यह अपने प्रयासों से धन, संपत्ति और यश प्राप्त कर लेता है। वह अपने सिद्धांतों पर अडिग रहता है।
विपरीत विमन राजयोग : जब 6वें, 8वें या 12वें भावों के स्वामी ग्रह 12वें भाव में हो या 12वें घर का स्वामी, 6ठे या 8वें घर में हो तो विमल विपरीत राजयोग का निर्माण होता है। ऐसा जातक स्वतंत्र होता है। वह हमेशा खुश रहने का प्रयास करता है। धन की बचत करने में आगे रहता है।