बगलामुखी मां दुर्गा का तांत्रिक स्वरूप रूप हैं। वे दस महाविद्या में से आठवीं हैं। रूपाकारों में इन्हें अष्ट-दस भुजा रूप में चित्रित किया गया है। संयम-नियमपूर्वक मां बगलामुखी के पाठ-पूजा, जाप, अनुष्ठान से सर्व अभीष्ट सिद्ध होते हैं।
मां दुश्मनों का नाश करती हैं। यहां शत्रुओं से आशय काम, क्रोध, लोभ, मद और मोह से है। मां बगलामुखी की पूजा राज में विजय दिलाने वाली, राज्याधिकार के योग को संभव बनाने वाली और कुयोग को सुयोग में परिवर्तित करने वाली हैं।
ये एकमात्र देवी हैं जिनके मुकुट पर अर्धचंद्र और ललाट में तीसरा नेत्र है। यही कारण है कि यह महाकाल शिवजी को अति प्रिय हैं। यह शक्तिस्वरूप विष्णु के तेज से युक्त होने के कारण वैष्णवी हैं। मंगलवार युक्त चतुर्दशी की अर्द्धरात्रि में इनका अवतार हुआ था।
मां बगलामुखी के तीन प्रमुख मंदिर क्रमश: दतिया (मध्यप्रदेश), कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) तथा नलखेड़ा जिला शाहजहांपुर (मध्यप्रदेश) में हैं। दतिया का मंदिर पीतांबरापीठ के नाम से भी प्रसिद्ध है।
यह मंदिर महाभारत कालीन है। मां बगलामुखी का एक नाम पीताम्बरा भी है। इन्हें पीला रंग अति प्रिय है इसलिए इनके पूजन में पीले रंग की सामग्री का उपयोग सर्वाधिक किया जाता है।