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ऐसे करें आरती कि देवता प्रसन्न हो...

पूजन की गलतियों को दूर करती है विधिवत आरती

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पं. सुरेन्द्र बिल्लौरे

प्रत्येक देवी-देवता की पूजन के पश्चात हम उनकी आरती करते हैं। आरती को 'आरार्तिक' और 'नीरांजन' भी कहते हैं। पूजन में जो गलती हमसे हो जाती है आरती करने से उसकी पूर्ति हो जाती है।

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मंत्र -

मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरासुरे यत्पुजितं मया देव परिपूर्णम् तदस्मतु..

अथवा

मंत्रहीनं क्रियाहीनं यतपूजनं हरे:!
सर्वे सम्पूर्णतामेति कृते नीरांजने शिवे। !

- अर्थात पूजन मंत्रहीन और क्रियाहीन होने पर भी (आरती) नीरांजन कर लेने से सारी पूर्णता आ जाती है।
आरती ढोल, नगाड़े, शंख, घड़ियाल आदि महावाद्यों के तथा जय-जयकार के शब्द के साथ शुद्ध पात्र में घी या कपूर से अनेक बत्तियां जलाकर आरती करनी चाहिए।

अगले पेज पर पढ़ें मंत्र


ततश्च मूलमन्त्रेण दत्वा पुष्पांजलित्रयम् ।

महानीरांजनं कुर्यान्महावाद्यजयस्वनै: !!

प्रज्वालयेत् तदार्थ च कर्पूरेण घृतेन वा।

आरार्तिकं शुभे पात्रे विश्मानेकवार्तिकम्।!


1, 5, 7 या उससे भी अधिक बत्तियों से आरती की जाती है।

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अगले पेज पर आरती के 5 अंग


आरती के पांच अंग होते है, प्रथम दीपमाला से, दूसरे जलयुक्त शंख से, तीसरे धुले हुए वस्त्र से, चौथे आम और पीपल के पत्तों से और पांचवे साष्टांग दण्डवत से आरती करना चाहिए।

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कैसे करें भगवान की आरती


आरती करते समय भगवान की प्रतिमा के चरणों में आरती को चार बार घुमाएं, दो बार नाभि प्रदेश में, एक बार मुखमंडल पर और सात बार समस्त अंगों पर घुमाएं।

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