* यदि इन्हीं स्थानों पर 1-4-7-8-12 में एक की कुंडली में मंगल हो तथा दूसरे की कुंडली में शनि, राहु या स्वयं मंगल हो तो 'मंगल दोष' नहीं होता है।
* यदि मंगल नीच राशि, शत्रु राशि में हो या अस्त या वक्री हो तो भी 'मंगल दोष' नहीं होता।
* केंद्र एवं त्रिकोण स्थानों में शुभ ग्रह तथा 3-6-11 स्थानों में अशुभ ग्रह हों तो 'मंगली दोष' नहीं होता।
* यदि सप्तमेश सातवें भाव में ही हो तो 'मंगल दोष' नहीं होता है।
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* मेष राशि का मंगल लग्न में, वृश्चिक का चौथे भाव में, मकर का सातवें, कर्क का आठवें तथा धनु का बारहवें स्थान में हो तो 'मंगली दोष' नहीं होता।
* मंगली वर का मंगली कन्या से विवाह कर देने से मंगल का अनिष्टकारी प्रभाव नहीं होता।
* मीन राशि का सातवें भाव में तथा कुंभ राशि का मंगल आठवें भाव में हो तो 'मंगली दोष' नहीं होता।
इस प्रकार के अनेक योग ज्योतिषीय गणना में बताए जाते हैं, जिनमें मंगल का अशुभ प्रभाव समाप्त हुआ माना जाता है, परंतु इनमें एकमत नहीं है। कुछ ज्योतिषविदों का मानना है कि यह स्थिति वर-वधू की कुंडली के अध्ययन के बाद ही स्पष्ट होती है कि उन दोनों के योग का वास्तविक प्रभाव क्या होगा।
मंगली योग का निश्चय केवल जन्मकुंडली में मंगल की स्थिति देखकर वर-कन्या को मंगली मान लेना उचित नहीं है। इसके लिए चलित चक्र बनाना चाहिए और पूर्णतया स्पष्ट कर लेना चाहिए कि मंगल की स्थिति क्या है। 1, 4, 7, 8 एवं 12वें भाव में मंगल की स्थिति पक्की हो तो पुरुष या स्त्री जातक मंगली माना जाएगा, अन्यथा मंगल का अनिष्टकारी प्रभाव होते हुए भी जातक को संपूर्ण रूप से मंगली नहीं कहा जा सकता।