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जानिए मंगल ग्रह का उत्पत्ति स्थल!

मंगलनाथ पर मंगल ग्रह की शांति!

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- प्रस्तुति‍ अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
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स्कंधपुराण के अंवतिका खंड में मंगल ग्रह ही उत्पत्ति से जुड़ी रोचक कथा मिलती है कि अंधाकासुर नामक दैत्य ने शिव से वरदान पाया था कि उसकी रक्त की बूंदों से नित नए दैत्य जन्म लेते रहेंगे। इन दैत्यों के अत्याचार से त्रस्त जनता ने शिव की आराधना की। तब शिव शंभु और दैत्य अंधाकासुर के बीच घनघोर युद्ध हुआ।

ताकतवर दैत्य से लड़ते हुए शिवजी के पसीने की बूंदें धरती पर गिरीं, जिससे धरती दो भागों में फट गई और मंगल ग्रह की उत्पत्ति हुई। शिवजी के वारों से घायल दैत्य का सारा लहू इस नए ग्रह में मिल गया, जिससे मंगल ग्रह की भूमि लाल हो गई। दैत्य का विनाश हुआ और शिवजी ने इस नए ग्रह को पृथ्वी से अलग कर ब्रह्मांड में फेंक दिया। इस दंतकथा के कारण जिन लोगों की पत्रिका में मंगल भारी होता है, वह उसे शांत करवाने के लिए इस मंदिर में दर्शन और पूजा-अर्चना के लिए आते हैं। इस मंदिर में मंगल को शिव का ही स्वरूप दिया गया है।

पंडित दिप्तेश दुबे के अनुसार इसी जगह से भूमि पुत्र मंगल ग्रह की उत्पत्ति हुई है और कहीं से नहीं। इसीलिए यहां पर मंगल दोष की शांति की जाती है। दही और भात से यहां मंगल ग्रह की पूजा की जाती है। लाल वस्त्र, गेहूं, गुड, तांबा और कनेर के पुष्प मंगल ग्रह की ये पांच वस्तुएं है जिन्हें दान किया जाता है। मेष और वृश्चिक राशि के अधिपति स्वामी मंगल के मंगल दोष का निवारण सिर्फ यहीं किया जाता है।

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मंगलनाथ के पुजारी के महंत अमर भारती ने बताया कि स्कंदपुराण में बताया गया है कि भगवान शं‍कर के द्वारा मंगल की उत्पत्ति हुई है। अंधकासुर नाम के दैत्य से शिव ने यहां युद्ध किया था, उस दौरान उनके मस्तक से भूमि पर पसीना गिरा। तो भूमि के गर्भ से एक अंगार क्षीण लिंग उत्पन्न हुआ उसमें से बालक प्रकट हुआ। बालक ने प्रण कर लिया और इस तरह अंधकासुर का नाश हुआ। जिस किसी की भी पत्रिका में मंगल दोष है तो उसका निवारण उज्जैन के मंगलनाथ के दर्शन-पूजन से हो जाता है। यह पूरे विश्व का नाभि स्थल है। यही नहीं पृथ्वी का गर्भ स्थल भी यहीं है।

ज्योतिषाचार्य मनोहर गिरि से हमने पूछा कि आखिर क्या महत्व है इस स्थान का... तो उन्होंने कहा की जिस किसी की भी कुंडली में चौथे, आठवें और बारहवें स्थान पर मंगल हो तो यहां मंगल ग्रह की शांति कराई जाती है। यहा कई बड़ी हस्तियों ने मंगल दोष का निवारण कराया है। विश्व में मंगल दोष निवारण का यही एकमात्र स्थान है।

मंगलनाथ मंदिर के पुजारी देवेंद्र तिवारी ने दूध, दही और चावल से मंगल पूजा का महत्व बताया। कर्क रेखा और मध्य रेखा यहां से ही गुजरती है।

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