पीड़ामुक्ति के लिए करें भैरव-साधना
क्या है भैरव का मूल स्थान
भैरव जयंती 6 दिसंबर को है। गुरुवार के दिन मघा नक्षत्र व रवियोग के शुभ संयोग में भैरव मंदिरों में अभिषेक-पूजन के साथ ही महाप्रसादी के आयोजन संपन्न हो रहे है। इस अवसर पर अष्टभैरव यात्रा का विशेष महत्व माना गया है।
अगहन कृष्ण पक्ष की अष्टमी भैरव जयंती के नाम से जानी जाती है। इस दिन मध्यरात्रि में भैरवजी के जन्म की मान्यता है। महाकाल की नगरी में भैरव पूजन की विशेष मान्यता है।
स्कंद पुराण के अवंति खंड के अंतर्गत उज्जैन में अष्ट महाभैरव का उल्लेख मिलता है। भैरव जयंती पर अष्ट महाभैरव की यात्रा तथा दर्शन पूजन से मनोवांछित फल की प्राप्ति तथा भय से मुक्ति मिलती है। भैरव तंत्र का कथन है कि जो भय से मुक्ति दिलाए वह भैरव है।
पीड़ामुक्ति के लिए की जाती है भैरव-साधना :- शनि, राहु, केतु तथा मंगल ग्रह से जो जातक पीड़ित हैं, उन्हें भैरव की साधना अवश्य ही करनी चाहिए। अगर जन्मपत्रिका में मारकेश ग्रहों के रूप में यदि उक्त चारों ग्रहों में से किसी एक का भी प्रभाव दिखाई देता हो तो भैरव जी का पंचोपचार पूजन जरूर करवाना चाहिए। भैरव के जाप, पठनात्मक एवं हवनात्मक अनुष्ठान मृत्यु तुल्य कष्ट को समाप्त कर देते हैं।क्या है भैरव का मूल स्थान :- श्मशान तथा उसके आसपास का एकांत जंगल ही भैरव का मूल स्थान है। संपूर्ण भारत में मात्र उज्जैन ही एक ऐसा स्थल है, जहां ओखलेश्वर तथा चक्रतीर्थ श्मशान हैं। अष्ट महाभैरव इन्हीं स्थानों पर विराजमान है।उज्जैन में विराजित अष्ट भैरव :- स्कंद पुराण की मान्यता अनुसार उज्जैन में अष्ट भैरव कई स्थानों पर विराजमान है। * भैरवगढ़ में काल भैरव, * दंडपाणी भैरव * रामघाट पर आनंद भैरव, * ओखलेश्वर श्मशान में विक्रांत भैरव, * चक्रतीर्थ श्मशान में बम-बटुक भैरव, * गढ़कालिका के समीप काला-गौरा भैरव, * कालिदास उद्यान में चक्रपाणी भैरव, * सिंहपुरी में आताल-पाताल।