श्रावणी पूर्णिमा (रक्षाबंधन पर्व) 13 अगस्त शनिवार को श्रवण नक्षत्र तथा सौभाग्य योग के अंतर्गत आ रही है। राखी उदयकाल में भद्रा युक्त रहेगी। भद्रा का आरंभ चतुर्दशी की रात्रि 11.32 बजे आरंभ होकर दूसरे दिन अर्थात श्रावणी पूर्णिमा पर सुबह 11.37 बजे तक रहेगा। अतः 11.40 से 12.55 तक अभिजीत मुहूर्त के उत्तरार्ध से रक्षाबंधन पर्व का आरंभ होगा। तत्पश्चात निरंतर शुभ समय है।
इस वर्ष श्रावणी पूर्णिमा रक्षाबंधन श्रवण नक्षत्र के साथ आ रही है जो शुभ संयोग है। सुबह 11.37 तक भद्रा है। भद्रा में रक्षाबंधन निषेध है। इसके पश्चात बहनें भाइयों की कलाई पर राखी बांध सकती हैं। दोपहर से रात तक शुभ चौघड़ियों में पर्व सानंद मनाया जा सकता है।
क्या है भद्रा : धर्मशास्त्र के अनुसार जब भी उत्सव काल त्योहार या पर्व काल पर चौघड़िए तथा पाप ग्रहों से संदर्भित काल की बेला में निर्दिष्ट निषेध समय दिया गया है, वह समय शुभ कार्य के लिए त्याज्य है। पौराणिक मान्यता के आधार पर देखें तो भद्रा का संबंध सूर्य और शनि से है।
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मान्यता है कि जब भद्रा का वास किसी पर्व काल में स्पर्श करता है तो उसके समय की पूर्ण अवस्था तक श्रद्धावास माना जाता है। भद्रा का समय 7 से 13 घंटे 20 मिनट माना जाता है, लेकिन बीच में नक्षत्र व तिथि के अनुक्रम तथा पंचक के पूर्वाद्ध नक्षत्र के मान व गणना से इसके समय में घट-बढ़ होती रहती है।
ज्योतिषी अमर डब्बावाला के अनुसार शास्त्रोक्त मान्यतानुसार भद्रायुक्त पर्व काल का वह समय छोड़ देना चाहिए, जिसमें भद्रा के मुख तथा पृच्छ का विचार हो। हालांकि रक्षाबंधन के दिन भद्रा का समय उदय काल से साढ़े पांच घंटे का रहेगा। इस दृष्टि से भद्रा के उक्त समय को छोड़कर राखी का पर्व आरंभ किया जा सकता है।
रक्षाबंधन पर्व के मुहूर्त : दोपहर से है शुभ संयोग
दिन 12 से 1.30 बजे चर 1.30 से 3.00 बजे लाभ 3.00 से 4.30 बजे अमृत
रात 7.00 से 8.30 बजे लाभ 10.00 से 11.30 बजे शुभ
गणना का आधार चौघड़िया में 5 से 7 मिनट का उदयकाल में अंतर तथा लग्न की दृष्टि से सौम्य लग्न के आधार पर दिया गया है।