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शुभ मुहूर्त में 'जन्म' सेहत के लिए अशुभ

'जन्म' का मुहूर्त शुभ, सेहत के लिए अशुभ

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हमें फॉलो करें शुभ मुहूर्त में 'जन्म' सेहत के लिए अशुभ
- प्रिया चौहा
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नए साल में बेबी को जन्म देने की चाहत में एक पेशेंट ने डिलीवरी डेट को कम किया और आपरेशन के द्वारा बेबी को जन्म दिया। एक परिवार की चाह थी कि मैरीज एनिवर्सरी की डेट पर ही बच्चे का जन्म हो। यह नॉर्मल डिलीवरी से हो नहीं सकता था, इसलिए उन्होंने सिजेरियन को चुना। शुभ मुहूर्त के चलते एक परिवार ने डॉक्टर के समक्ष रात को बारह बजे सिजेरियन की माँग की। क्योंकि यह सामान्य प्रसव से मुमकिन नहीं था।

आजकल मनपसंद तारीख या शुभ घड़ी के मुताबिक प्रसव का चलन बढ़ा है। इसी के चलते लोग मुहूर्त में बच्चे को जन्म देना चाहते हैं। अपनी चाह को पूरा करने के लिए वे सिजेरियन का ऑप्शन चुनते हैं। डाक्टर्स के मुताबिक यदि कोई कॉम्प्लीकेशन्स न हो तो सिजेरियन करवाना खतरे को बुलावा देना है। क्योंकि वे यह सलाह तभी देते हैं, जब एक्सपेक्टिंग मदर या उसके बेबी को कोई खतरा हो। एक्सपर्ट के अनुसार प्रसव एक कुदरती प्रक्रिया है, जिसे बदलने की कोशिश करना एक गंभीर खतरे को बुलावा देना है। राजधानी के भी इस तरह की माँग कर रहे हैं।

40 वीक के बाद ही सर्जरी : जेरियन प्रसव तब तक नहीं कराना चाहिए, जब तक बच्चे का गर्भ में पूरा समय नहीं हो गया हो। या यूँ कहें कि गर्भ के 40 वीक पूरे होने के बाद ही सर्जरी कराना चाहिए। स्त्री रोग विशेषज्ञ के मुताबिक समय से पहले सर्जरी कराने से कई तरह की जटिलताओं का खतरा बढ़ जाता है, यहाँ तक की नवजात शिशु की मृत्यु भी हो सकती है। हालाँकि सिजेरियन प्रसव मुश्किल हालात में माँ और बच्चे की जिंदगी बचा सकती है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि यह सामान्य प्रसव की तुलना में अधिक सुरक्षित है।

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सिजेरियन प्रसव में आमतौर पर समय से पूर्व बच्चे का जन्म होता है। यानी बच्चा प्रीमेच्योर होता है। इससे बच्चे में ट्रांजिएंट टैकिप्निया होने की अधिक आशंका रहती है। इसमें बच्चा जन्म के बाद कुछ दिनों तक असामान्य रूप से तेजी से साँस लेता है। किसी भी परिस्थिति में 39 सप्ताह से पहले बच्चे के फेफड़े का पूरा विकास नहीं हो पाता है।

सिजेरियन प्रसव से मदर के यूटेरस या किडनी जैसे पैल्विक अंग संक्रमित हो सकते हैं। वेजायना से नार्मल डिलीवरी की तुलना में सिजेरियन में दोगुना रक्त का नुकसान होता है। कुछ मामलों में डिलीवरी के बाद कुछ दिनों तक आंत में सूजन की आशंका रहती है और आंत के काम में कुछ कमी आ सकती है।

कुछ लोग रात में या अर्ली मार्निंग सिजेरियन की माँग करते हैं इसमें कई तरह की परेशानियाँ हो सकती है। मसलन ब्लड और दवाइयों की आवश्यकता हुई तो रात में इनका इंतजाम करना आसान नहीं होता है। सिजेरियन के दौरान ब्लड लॉस भी ज्यादा होता है।

एक्स्ट्रा केयर की जरूरत नहीं
बच्चे के जन्म के लिए प्रकृति ने जो समय निर्धारित किया है वह सर्वश्रेष्ठ है। माँ के पेट से अच्छी जगह कोई नहीं हो सकती है। वहीं बच्चे का संपूर्ण विकास होता है और वह सुरक्षित रहता है। सर्जरी के दौरान माँ को एनस्थिसिया या अन्य दवाइयों से रिएक्शन हो सकता है, इससे रक्तचाप अचानक गिर सकता है।

एनस्थिसिया के इस्तेमाल से माँ को निमोनिया हो सकता है। बच्चे पर भी सडेटिव इफेक्ट हो सकता है। सर्जरी के दौरान आंत या मूत्राशय भी क्षतिग्रस्त हो सकता है, इससे हिस्टेरेक्टमी या आंत की मरम्मत जैसी अतिरिक्त सर्जरी की जरूरत पड़ सकती है। इसके अलावा महिला के पैरों, पेल्विक अंगों या फेफड़ों में रक्त का क्लॉट हो सकता है, जिससे विनस थ्रंबोसिस हो सकता है। माँ और बच्चे को इन्फेक्शन के चाँसेस बढ़ जाते हैं। जबकि सामान्य प्रसव में बच्चा इंडिपेंडेंट जीवन जीता है। उसे एक्स्ट्रा केयर या फिर नर्सरी की आवश्यकता नहीं होती है। यदि किसी शुभ मुहूर्त के लिए सिजेरियन बच्चे के जन्म को दिया है और बाद में इसके चलते कोई मुश्किल हालात का सामना करना पड़ रहा है तो ऐसे में मुहूर्त शुभ कहाँ रह गया।

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