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उत्तराषाढ़ा नक्षत्र

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पं. अशोक पँवार 'मयंक'

सूर्य के नक्षत्र उत्तराषाढ़ा के प्रथम चरण में जन्मा उच्चाधिकारी बनता है

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उत्तराषाढ़ा नक्षत्र का स्वामी सूर्य है। इसका प्रथम चरण भूनाम से धनुराशि में आता है। राशि स्वामी गुरु है तो नक्षत्र स्वामी सूर्य है। सूर्य की दशा में सबसे कम 6 वर्ष की होती है। जो लगभग जन्म से 6 वर्ष के अंदर बीत जाती है। इसके बाद चंद्रमा की 10 वर्ष मंगल की 7 वर्ष कुल मिलाकर 17 वर्ष यही समय होता है। जब बच्चा पढ़ाई में संलग्न रहता है यहीं से उसके भविष्य का निर्माण होता है। अतः सूर्य के साथ मंगल का जन्म पत्रिका में शुभ होकर बैठना ही उस बालक का भविष्य निर्धारण करने में सहायक होगा। सूर्य अत्यंत तेजस्वी ग्रह होकर आत्मा का कारक है।

अग्नि तत्व व राशि भी अग्नि तत्व होने से इसका प्रभाव जातक पर ग्रह स्थितिनुसार अधिक पड़ता है। सूर्य यदि गुरु के साथ हो तो उच्च प्रशासनिक सेवाओं में सफलता मिलती है। ऐसे जातकों में कुशल नेतृत्वक्षमता होती है। ये राजनीति, जज, आईएएस ऑफिसर, सीए आदि क्षेत्र में अधिक सफल होते हैं।

मंगल के साथ हो तो पुलिस राजनीति, संगठन, उद्योग आदि में सफलता पाते हैं। बुध के साथ हो तो लेखक, वणिक, उत्तम वक्ता, वकील, प्रकाशक आदि क्षेत्र में सफल होते हैं। सूर्य शुक्र के साथ हो तो सुंदर व कामुक भी होते हैं। अन्य ग्रह जैसे राहु, शनि के साथ शुभफल नहीं मिलता। सूर्य जहाँ शुभ हो वहीं गुरु का भी शुभ होना आवश्यक है। मंगल यदि उत्तम स्थिति में हो तो ऐसा जातक अपना भविष्य उत्तम ही बनाएगा।

मेष लग्न में सूर्य लग्न, पंचम, नवम, द्वादश में हो व गुरु लग्न पंचम, नवम, द्वादश में शुभ परिणाम देगा। मंगल मेष, मकर, सिंह, धनु में हो तो ऐसा जातक विद्यावान, उच्च शिक्षा में सफल प्रशासनिक क्षेत्र में सफलता पाने वाला होगा।
  उत्तराषाढ़ा नक्षत्र का स्वामी सूर्य है। इसका प्रथम चरण भूनाम से धनुराशि में आता है। राशि स्वामी गुरु है तो नक्षत्र स्वामी सूर्य है। सूर्य की दशा में सबसे कम 6 वर्ष की होती है। जो लगभग जन्म से 6 वर्ष के अंदर बीत जाती है।      


वृषभ लग्न में सूर्य नक्षत्र स्वामी एकादश, चतुर्थ, पंचम में हो व राशि स्वामी गुरु एकादश, पंचम, सप्तम, द्वादश में शुभफल परिणाम देने वाला होगा। मंगल चतुर्थ, एकादश, नवम, तृतीय भाव में हो तो ऐसा जातक शिक्षा के क्षेत्र में प्रारंभ से उत्तम रहेगा।

मिथुन लग्न में नक्षत्र स्वामी सूर्य मीन, मिथुन, धनु, कन्या में गुरु धनु, मीन, तृतीय चतुर्थ में शुभफलदायी होगा। वहीं मंगल दशम, सप्तम, तृतीय में शुभ फलदायी होगा। ऐसा जातक प्रशासनिक राजनीतिज्ञ उद्यमी हो सकता है।

कर्क लग्न में नक्षत्र स्वामी सूर्य पंचम, नवम, दशम में गुरु नवम लग्न पंचम, दशम द्वितीय में व मंगल पंचम, नवम, द्वितीय में व मंगल पंचम, नवम, द्वितीय में शुभ रहेगा। सिंह लग्न में सूर्य लग्न पंचम, नवम, चतुर्थ में गुरु पंचम, लग्न, नवम, एकादश, द्वादश में व मंगल नवम, लग्न, चतुर्थ में शुभफल देगा। ऐसा जातक भाग्यवान, नीतिज्ञ व महत्वाकांक्षी होगा।

कन्या लग्न में सूर्य चतुर्थ, लग्न, दशम, चतुर्थ में गुरु चतुर्थ, सप्तम, द्वादश में व मंगल चतुर्थ पंचम, दशम में शुभफलदायी रहेगा। ऐसा जातक प्रशासनिक सेवाओं, वकालात, राजनीति एवं पत्नी से लाभ पाने वाला होता है।

तुला लग्न में सूर्य एकादश में हो तो आय में द्वितीय में हो तो कुटुंब, वाणी, धन की बचत आदि होगी। नवम में हो तो भाग्य से लाभ पाने वाला होगा, गुरु दशम, एकादश में शुभ रहेगा। मंगल द्वितीय, लग्न, एकादश में उत्तम फलदायी होगा।

वृश्चिक लग्न में सूर्य लग्न, पंचम, दशम, एकादश, द्वितीय में गुरु पंचम, नवम, लग्न, दशम में द्वितीय भाव में शुभ परिणाम देगा। अगर मंगल भी शुभ हो तो ऐसा जातक उच्च सफलता पाने वाला विद्वान गुणी होता है।

धनु लग्न में सूर्य नवम, लग्न, पंचम, दशम, चतुर्थ में शुभ फलदायी होगा। वहीं राशि स्वामी गुरु लग्न, पंचम, नवम, चतुर्थ में शुभ रहेगा। वहीं मंगल लग्न, नवम, द्वितीय में शुभ फलदायी रहेगा। ऐसा जातक भाग्यवान, कुशल, नीति-विद्वान होगा।

मकर लग्न में सूर्य एकादश, तृतीय, द्वादश में गुरु एकादश, द्वादश, तृतीय, सप्तम में शुभ फलदायी रहेगा। मंगल लग्न चतुर्थ एकादश में गुरु दशम, एकादशल द्वितीय में शुभ फलदायी रहेगा। ऐसा जातक उन्नतिवान प्रशासनिक सेवा में व्यापारी, राजनीतिज्ञ होगा।

मीन लग्न में सूर्य लग्न, नवम, द्वितीय, दशम में व गुरु लग्न, पंचम, नवम, दशम में शुभ रहेगा। वहीं मंगल भाग्य नवम, लग्न, दशम में शुभ परिणाम देगा।

उत्तराषाढ़ा के तीनों चरणों में जन्मा जातक स्वप्रयत्नों से ऊँचा उठता है

उत्तराषाढ़ा नक्षत्र इक्कीसवाँ नक्षत्र के अंतिम तीन चरण शनि की मकर राशि में आते हैं। सूर्य का पुत्र शनि है और शनि सूर्य में आपसी शत्रुता है। सूर्य यदि शनि के साथ है तो शनि दबेगा क्योंकि बिगड़ैल पुत्र को पिता दबा सकता है। क्योंकि पिता दबंग है। लेकिन शनि-सूर्य के सामने यानी समसप्तम है तो सूर्य से शनि नहीं दबेगा। परिणाम शनि शुभफल नहीं देगा व जहाँ जिस स्थिति के होगा वैसा परिणाम देगा।

सूर्य ऊर्जा, हिम्मत, महत्वाकांक्षा, उच्च प्रशासनिक क्षमता, राजनीति आदि का कारक है। वहीं शनि भी प्रजासत्ता का कारक मोक्ष का तेल, लोहा आदि का कारक है। जन्म कुंडली में शनि व सूर्य की स्थिति उत्तम रही हो तो ये अपने शुभ परिणाम देंगे। यदि इन दोनों की अशुभ स्थिति रही तो बुरे फल मिलेंगे। स्थान भेद से फलों में परिवर्तन भी होगा।

मेष लग्न वालों के लिए नक्षत्र स्वामी सूर्य की स्थिति सर्वाधिक श्रेष्ठ सिंह धनु में होगी। पंचमेश पंचम में हो तो विद्या, संतान लाभ नवम में हो तो संतान का भाग्य उतम रहेगा वहीं धर्म प्रशासनिक क्षेत्र में सफलता देगा। द्वादश में हो तो विदेश विद्या हेतु जा सकता है। शनि राशि स्वामी मकर, वृषभ चतुर्थ में शुभ फलदायी रहेगा।

वृषभ लग्न वालों के लिए सूर्य की सर्वाधिक शुभ स्थिति चतुर्थ एकादश, तृतीय, पंचम में रहेगी वहीं शनि नवम, दशम, लग्न, षष्ठ में उत्तम परिणाम देगा। ऐसी स्थिति वाला जातक जनता में प्रसिद्ध, उत्तम आय, विद्या लाभ भाग्य का सुख उत्तम मिलेगा।

मिथुन लग्न में नक्षत्र स्वामी सूर्य लग्न, चतुर्थ, एकादश, सप्तम में ठीक रहेगा। वहीं राशि स्वामी शनि लग्न, पंचम, अष्टम, नवम में ठीक फल देने वाला होगा। ऐसे जातक स्वप्रयत्नों से लाभ पाने वाले होते हैं।

कर्क लग्न में नक्षत्र स्वामी सूर्य पंचम, नवम द्वितीय, तृतीय भाव में शुभ फलदायी होगा, भाग्य से धन, वाणी, विद्या लाभ उत्तम रहेगा। शनि अकारक रहेगा।

सिंह लग्न मं नक्षत्र स्वामी सूर्य पंचम, नवम, चतुर्थ, द्वितीय व लग्न में शुम उत्तरोत्तर रहेगा। शनि की स्थिति दशम लग्न में ठीक रहेगी। ऐसा जातक स्वप्रयत्नों से उच्च स्तर तक पहुँचने वाला होगा। कन्या लग्न में नक्षत्र स्वामी सूर्य लग्न, चतुर्थ, सप्तम, दशम में शुभ फलदायी रहेगा वहीं राशि स्वामी पंचम, षष्ठ, लग्न, दशम में ठीक रहेगा। ऐसी स्थिति वाला जातक बाहर से लाभ पाने वाला होगा।

तुला लग्न में सूर्य एकादश में ही शुभ फलदायी रहेगा बाकि भावों में शुभ स्थिति नहीं रहेगी, नवम में हुआ तो भाग्य से धन लाभ मिलेगा, भाइयों व स्वपराक्रम से लाभ पाएगा। शनि की चतुर्थ, पंचम, दशम, तृतीय में उत्तम स्थिति रहेगी।

वृश्चिक लग्न में नक्षत्र स्वामी सूर्य दशम, लग्न, पंचम, एकादश भाव द्वितीय भाव में उतम स्थिति होकर लाभदायक रहेगी। शनि इस लग्न में तृतीय, सप्तम, द्वितीय में ठीक रहेगा।

धनु लग्न में नक्षत्र स्वामी सूर्य लग्न, पंचम, नवम में चतुर्थ, दशम में उत्तरोत्तर शुभ परिणाम देने वाला होकर भाग्यशाली, सुखी, विद्यावान बनाएगा। राशि स्वामी शनि की अकारक रहेगा। फिर भी एकादश भाव में हो तो उत्तम फलदायी रहेगा।

मकर लग्न में नक्षत्र स्वामी सूर्य तृतीय, नवम, एकादश में शुभफलदायी रहेगा। ऐसा जातकों को परेशानियों के बाद सफलता देगा। राशि स्वामी शनि दशम, लग्न, नवम में शुभफलदायी रहेगा।

कुंभ लग्न में नक्षत्र स्वामी सूर्य, एकादश, दशम, द्वितीय, सप्तम में ठीक रहेगा। वहीं राशि स्वामी शनि नवम, चतुर्थ, द्वादश में ठीक रहेगा।

मीन लग्न में नक्षत्र स्वामी सूर्य लग्न, नवम, सप्तम, चतुर्थ, षष्ठ में ठीक फलदायी रहेगा वही राशि स्वामी शनि एकादश द्वितीय, षष्ठ सप्तम में ठीक रहेगा। इस प्रकार उत्तराषाढ़ा के तीन चरणों का फल जाना।

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