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मूल नक्षत्र

मूल में जन्मा जातक जिद्दी

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पं. अशोक पँवार 'मयंक'

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मूल नक्षत्र के चारों चरण धनु राशि में आते हैं। यह ये ये भा भी के नाम से जाना जाता है। नक्षत्र का स्वामी केतु है। वहीं राशि स्वामी गुरु है। केतु गुरु धनु राशि में उच्च का होता है व इसकी दशा 7 वर्ष की होती है। इस के बाद सर्वाधिक 20 वर्ष की दशा शुक्र की लगती है जो इनके जीवन में इन्ही दशाओं का महत्व अधिक होता है। यह दशा इनके जीवन में विद्या भाव को बढ़ाने वाली होती है इन्हीं दशा में बचपन से युवावस्था आती है।

केतु छाया ग्रह है यह पुराणिक मतानुसार राहु का धड़ है लेकिन वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो यह दक्षिणी ध्रुव का कोना है। यह धनु राशि में उच्च व मिथुन में नीच का मीन में स्वराशिस्थ व कन्या में शत्रु राशिस्थ होता है। केतु स्वतंत्र फल देने में सक्षम नहीं होता यह जिसके साथ होगा वैसा परिणाम देगा। धनु में केतु व गुरु भी साथ हो या मीन राशि में या कर्क में उच्च का हो तो उसके प्रभाव को दुगना कर जहाँ भी स्थित होगा उत्तम परिणाम देगा।

ऐसा जातक ईमानदार लेकिन जिद्दी स्वभाव का भी होगा। ऐसा जातक वकील, जज, बैंक कर्मी, प्रशासनिक सेवाओं में, कपड़ा व्यापार, किराना आदि के क्षेत्र में सफल होता है।
  मूल नक्षत्र के चारों चरण धनु राशि में आते हैं। यह ये ये भा भी के नाम से जाना जाता है। नक्षत्र का स्वामी केतु है। वहीं राशि स्वामी गुरु है। केतु गुरु धनु राशि में उच्च का होता है व इसकी दशा 7 वर्ष की होती है।      


मेष लग्न में केतु धनु में हो तो ऐसे जातक का भाग्य भी चमकेगा, यदि गुरु की स्थिति उत्तम हो तो निश्चित ऐसा जातक उत्तम लाभ पाने वाला होता है। ऐसे जातक तर्जनी में लहसुनियाँ 5 कैरेट का पंचधातु में बनवाकर पहने तो उत्तम लाभ पाएगा। केतु इस लग्न में लग्न पंचम शुभ फलदायी रहेगा यदि शुक्र की स्थिति भी ठीक रही जैसी स्वराशि वृषभ, तुला, मीन में उच्च या मकर शुभ में हो तो वह जातक की युवावस्था सुखद गुजरेगी।

वृषभ लग्न में केतु एकादश, चतुर्थ, पंचम, दशम नवम भाव में ठीक रहेगा वहीं गुरु की स्थिति तृतीय, एकादश, पंचम, सप्तम में शुभफलदायी होगी।

मिथुन लग्न में केतु की स्थिति दशम, सप्तम, चतुर्थ, एकादश में हो तो उत्तम वहीं राशि स्वामी गुरु दशम, सप्तम, एकादश, चतुर्थ, षष्ठ, तृतीय भाव में हो तो एसा जातक व्यापार, पत्नी, शत्रु भाई से लाभ पाने वाला होगा। धनधान्य से पूर्ण होगा।

कर्क लग्न में नक्षत्र स्वामी केतु की नवम पंचम तृतीय द्वितीय भाव में व राशि स्वामी गुरु की स्थिति नवम लग्न पंचम तृतीय द्वितीय भाव में हो तो ऐसा जातक भाग्यवान, विद्या, संतान से उत्तम प्रभावशील, प्रत्येक क्षेत्र में उत्तम सफलता पाने वाला होगा।

सिंह लग्न में केतु पंचम, नवम, लग्न, चतुर्थ में व राशि स्वामी गुरु नवम, पंचम, लग्न, चतुर्थ द्वादश में हो तो उत्तम परिणाम मिलते हैं। ऐसा जातक माता, भूमि, भवन, भाग्यवान, प्रभावी, प्रशासनिक सेवाओं में सफल होता है।

कन्या लग्न में केतु चतुर्थ, सप्तम, दशम में हो व गुरु चतुर्थ सप्तम एकादश द्वादश तृतीय लग्न में क्रमशः फल में वृद्धिदायक होता है। ऐसे जातक धनी, पत्नी से लाभ पाने वाले, भूमि भवन से लाभ, पराक्रम, बाहर से लाभ पाने वाले होते हैं।

तुला लग्न में केतु एकादश तृतीय षष्ठ में व गुरु एकादश, द्वितीय, तृतीय भाव में शुभ फलदायी रहेगा।
वृश्चिक लग्न में नक्षत्र स्वामी केतु पंचम चतुर्थ लग्न द्वितीय दशम में व गुरु लग्न पंचम नवम दशम द्वितीय में शुभ फलदायी होगा।

धनु लग्न में केतु लग्न में हो तो जिद्दी स्वभाव का बना देगा। इस लग्न में केतु चतुर्थ नवम पंचम के व गुरु लग्न द्वादश चतुर्थ पंचम नवम भाव में उत्तम फलदायी होगा।

मकर लग्न में केतु एकादश चतुर्थ तृतीय भाव में ठीक रहेगा वहीं गुरु तृतीय एकादश चतुर्थ सप्तम में शुभफलदायी होते हैं।

कुंभ लग्न में केतु लग्न द्वितीय एकादश दशम में शुभ फलदायी रहेगा वहीं गुरु द्वितीय एकादश दशम में शुभ फलदायी रहेगा।

मीन लग्न में केतु लग्न दशम नवम में शुभ रहेगा वहीं गुरु लग्न नवम पंचम द्वितीय में शुभफलदायी रहेगी।

केतु गुरु के साथ उत्तम मंगल के साथ हो तो जातक को वह जिद्दी स्वभाव वाला उग्र भी बना देता है। अशुभ फलदायी हो या नीच का मिथुन में हो तो ऐसे जातक को केसर का तिलक लगाना चाहिए, कुत्ते को मीठी रोटी देना चाहिए।

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