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भरणी नक्षत्र

शुक्र मंगल से दृष्ट हो तो सफल राजनीति

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हमें फॉलो करें भरणी नक्षत्र
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पं. अशोक पँवार 'मयंक'

जिस जातक का जन्म भरणी नक्षत्र में हो तो उसकी राशि मेष होगी वहीं नक्षत्र का स्वामी शुक्र होगा। इस नक्षत्र में जन्में जातक पर मंगल, शुक्र का प्रभाव जीवन भर पड़ेगा जहाँ ऊर्जा, साहस महत्वाकांक्षा देगा। वहीं शुक्र कला, सौंदर्य धन व सेक्स का कारण बनता है।

भरणी में जन्म होने से जन्म के समय शुक्र की महादशा ही चलेगी। अतः ऐसे जातकों को बाल्यकाल सुखमय व्यतीत होता है। वहीं सूर्य पंचमेश-विद्या भाव की दशा 6 वर्ष इसके बाद सुखेश की महादशा 10 वर्ष फिर लग्नेश मंगल की महादशा 7 वर्ष चलेगा। इस प्रकार 23 वर्ष व शुक्र की शेष दशा जो भी हो उत्तम जाएगी बशर्ते की मंगल, चंद्र, सूर्य की स्थिति भी अनुकूल होना चाहिए। मंगल लग्नेश व अष्टमेश होगा। अतः इसका शुभ होना स्वयं को स्वस्थ, बलवान, साहसी बनाएगा।
जिस जातक का जन्म भरणी नक्षत्र में हो तो उसकी राशि मेष होगी वहीं नक्षत्र का स्वामी शुक्र होगा। इस नक्षत्र में जन्में जातक पर मंगल, शुक्र का प्रभाव जीवन भर पड़ेगा जहाँ ऊर्जा, साहस महत्वाकांक्षा देगा। वहीं शुक्र कला, सौंदर्य धन व सेक्स का कारण बनता है।
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शुक्र धनेश द्वितीय वाणी, कुटुंब धन की बचत का भाव है। अगर इसकी स्थिति ठीक रही तो पत्नी या पति सुंदर होकर लाभ मिलता है। लग्नेश मंगल लग्न में हो व शुक्र सप्तम भाव में स्वराशि का हो तो ऐसे जातक एक दूसरे को चाहने वाले होंगे। यदि उनका जीवन साथी तुला राशि या मेष राशि का मिल जाए तो एक दूसरे प्रति चाहत बनी रहेगी। शुक्र उच्च का हो व मंगल भी उच्च का हो तो ऐसे जातक व्यापार, व्यवसाय में उन्नति करने वाले होते हैं। धन की कमी नहीं रहती।

मेष राशि के भरणी नक्षत्र में शुक्र सप्तम भाव में अकेला हो व मंगल की शुभ स्थिति हो तो पत्नी सुंदर मिलती है। यदि इस स्थिति के साथ मंगल दशम भाव में हो तो ऐसा जातक पुलिस प्रशासन में उत्तम सफलता पाता है। स्वयं प्रभावशाली तेजस्वी स्वभाव का होता है। ऐसे जातक को पत्नी से लाभ रहता है। इसी नक्षत्र में जन्में जातकों का सूर्य बलवान हो तो मित्र राशि में होकर पंचमेश को देखता हो तो विद्या, संतान का लाभ उत्तम मिलता है।

चंद्रमा की स्थिति यदि सुख भाव में स्वराशि का ही हो तो उसकी दशा उत्तम फलदाई होगी। ऐसे जातक को माता, भूमि भवन, वाहनादि सुख मिलता है। इस नक्षत्र में जन्में जातकों का मंगल तृतीय, पंचम, नवम या द्वादश भाव में हो तो उत्तम लाभदायक रहता है। नक्षत्र स्वामी शुक्र द्वितीय, चतुर्थ, षष्ट, सप्तम, दशम या द्वादश भाव में हो तो उत्तम लाभदायक रहता है।

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