Festival Posters

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

शुभ फलदायी होता है पुष्य नक्षत्र....

Advertiesment
हमें फॉलो करें पुष्य नक्षत्र
, मंगलवार, 14 अक्टूबर 2014 (15:03 IST)
- नरेन्द्र देवांगन
 
कार्तिक अमावस्या के पूर्व आने वाले पुष्य नक्षत्र को शुभतम माना गया है। जब यह नक्षत्र सोमवार, गुरुवार या रविवार को आता है, तो एक विशेष वार नक्षत्र योग निर्मित होता है जिसका संधिकाल में सभी प्रकार का शुभ फल सुनिश्चित हो जाता है। गुरुवार को इस नक्षत्र के पड़ने से गुरु-पुष्य नामक योग का सृजन होता है। यह क्षण वर्ष में कभी-कभी आता है। 
 
पुष्य नक्षत्र का योग सभी प्रकार के दोषों को हरने वाला और शुभ फलदायी है। हमारी भारतीय संस्कृति पूर्ण रूप से प्रकृति से जुड़कर दैनिक प्रक्रिया करने की सलाह देती है। हमारे ज्योतिषी मनीषियों ने प्रकृति, आकृति तथा महत्ता के आधार पर खास 27 नक्षत्रों को चुना है। इन 27 नक्षत्रों में कुछ तो एकल रूप से स्वतंत्र हैं तथा कुछ तारा समूहों से मिलकर बने हैं।
 
इन नक्षत्रों में पुष्य नक्षत्र अपने आपमें अत्यधिक प्रभावशील एवं मानव का सहयोगी माना गया है। आकाश में इसका गणितीय विस्तार 3 राशि 3 अंश 20 कला से 3 राशि 16 अंश 40 कला तक है। इस नक्षत्र विषुवत रेखा से 18 अंश 9 कला 56 विकला उत्तर में आसीन है। मुख्य रूप से इस नक्षत्र के तीन तारे हैं, जो एक तीर (बाण) की आकृति के समान आकाश में दृष्टिगोचर होते हैं। इसके तीर की नोंक कई बारीक तारा समूहों के गुच्छ (पुंज) के रूप में दिखाई देती है।
 
पुष्य नक्षत्र शरीर के अमाशय, पसलियां व फेफड़ों को विशेष रूप से प्रभावित करता है। यह शुभ ग्रहों से प्रभावित होकर इन्हें दृढ़, पुष्ट तथा निरोगी बनाता है। जब यह नक्षत्र दुष्ट ग्रहों के प्रभाव में होता है, तब इन अवयवों को विकारयुक्त, क्षीण एवं कमजोर करता है।
 
यह नक्षत्र लघु (शिप्र) स्वभाव वाला है जिसका स्वाभाविक फल व्यापार उन्नतिकारक, भागीदारी, ज्ञान प्राप्ति, कला सीखना, औषधि निर्माण, मित्रता एवं बौद्धिक विकास करने वाला होता है। यह उर्ध्वमुखी नक्षत्र है। इस कारण इसमें किए कार्य उच्च स्तर तक पहुंच पाते हैं। इसीलिए इस नक्षत्र में भवन निर्माण, ध्वजारोहण, मंदिर, स्कूल और औषधालय निर्माण विशेष फलदायी होता है।
 
इसके साथ ही इस नक्षत्र में राजतिलक, पदभार ग्रहण, वायु यात्रा और तोरण बंधन विशेष यश दिलाता है। इस नक्षत्र से प्रारंभ किए गए कार्य विशेष फलदायक और समृद्धि दिलाने वाले होते हैं। पुष्य नक्षत्र के देवता बृहस्पति हैं, जो ज्ञान-विज्ञान, दिशा-निर्देशन भाव के प्रति सजगता तथा नीति-निर्धारण में अग्रणी बनाते हैं। यह नक्षत्र शनि दशा को दर्शाता है। शनि स्थिरता के द्योतक हैं, इस कारण पुष्य नक्षत्र में किए गए कार्य चिरस्थायी होते हैं।
 
इन सभी गुणों के साथ-साथ पुष्य नक्षत्र का योग सभी प्रकार के दोषों को हरण करने वाला और शुभ फलदायक माना गया है। यदि पुष्य नक्षत्र पाप ग्रह से युक्त हो या ग्रहों से बाधित हो, तारा चक्र के अनुसार प्रतिकूलता लिए हो तो भी विवाह छोड़कर शेष सभी कार्यों के लिए सर्वश्रेष्ठ बताया गया है।
 
यदि पुष्य नक्षत्र रविवार या गुरुवार को आ जाता है तो ऐसे रवि पुष्यामृत योग में तंत्र साधना, मंत्र साधना, गुरु मंत्र ग्रहण, औषधि निर्माण एवं ग्रहण और योग, उपासना शीघ्र फलदायी होती है। उसी तरह गुरु पुष्यामृत योग नवीन प्रतिष्ठान, व्यापार-व्यवसाय, उद्योग, आर्थिक विनिमय, मंत्र दीक्षा, संत दर्शन और मंदिर निर्माण आदि के लिए सर्वश्रेष्ठ बताया गया है।
 
सर्वाधिक गति से गमन करने वाले चन्द्रमा की स्थिति के स्थान को इंगित करते हैं, जो कि मन व धन के अधिष्ठाता हैं। हर नक्षत्र में इनकी उपस्थिति विभिन्न प्रकार के कार्यों की प्रकृति व क्षेत्र को निर्धारित करती है। 
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi