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जप बचाएँ ग्रहों के कुप्रभाव से !

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ज्योतिष विज्ञान को मानने वाले वैदिक शोधकर्ताओं का मानना है कि ज्योतिष के अनुसार व्यक्ति के शरीर का संचालन भी ग्रहों के अनुसार होता है। सूर्य आँखों, चंद्रमा मन, मंगल रक्त संचार, बुध हृदय, बृहस्पति बुद्धि, शुक्र प्रत्येक रस तथा शनि, राहू और केतु उदर का स्वामी है।

शनि अगर बलवान है तो नौकरी और व्यापार में विशेष लाभ होता है। गृहस्थ जीवन सुचारु चलता है। लेकिन अगर शनि का प्रकोप है तो व्यक्ति को बात-बात पर क्रोध आता है। निर्णय शक्ति काम नहीं करती, गृहस्थी में कलह और व्यापार में तबाही होती है।

आजकल वैदिक अनुसंधान में जप द्वारा ग्रहों के कुप्रभाव से बचाव व ग्रहों की स्थिति अनुकूल करके, व्यक्ति को लाभ पहुँचाने के लिए अनुसंधान कार्य चल रहे हैं। कई वैदिक वैज्ञानिक कर्म में विश्वास रखते हैं लेकिन पर्याप्त कर्म के बाद अपेक्षित फल न मिल पाना, वह ग्रहों का कुप्रभाव मानते हैं। वे घरेलू क्लेश, संपत्ति विवाद, व्यवसाय व नौकरी में अड़चनें ही नहीं, ब्लडप्रेशर, कफ, खाँसी और चेहरे की झाइयाँ जप द्वारा ही दूर करने का दावा करते हैं।
  ज्योतिष के अनुसार व्यक्ति के शरीर का संचालन भी ग्रहों के अनुसार होता है। सूर्य आँखों, चंद्रमा मन, मंगल रक्त संचार, बुध हृदय, बृहस्पति बुद्धि, शुक्र प्रत्येक रस तथा शनि, राहू और केतु उदर का स्वामी है।      


सूर्य : सूर्य धरती का जीवनदाता, लेकिन एक क्रूर ग्रह है, वह मानव स्वभाव में तेजी लाता है। यह ग्रह कमजोर होने पर सिर में दर्द, आँखों का रोग तथा टाइफाइड आदि रोग होते हैं। किन्तु अगर सूर्य उच्च राशि में है तो सत्तासुख, पदार्थ और वैभव दिलाता है। अगर सूर्य के गलत प्रभाव सामने आ रहे हों तो सूर्य के दिन यानी रविवार को उपवास तथा माणिक्य लालड़ी तामड़ा अथवा महसूरी रत्न को धारण किया जा सकता है।

सूर्य को अनुकूल करने के लिए मंत्र-'ॐ हाम्‌ हौम्‌ सः सूर्याय नमः' का एक लाख 47 हजार बार विधिवत जाप करना चाहिए। यह पाठ थोड़ा-थोड़ा करके कई दिन में पूरा किया जा सकता है।

चंद्रमा : चंद्रमा एक शुभ ग्रह है लेकिन उसका फल अशुभ भी होता है। यदि चंद्रमा उच्च है तो व्यक्ति को अपार यश और ऐश्वर्य मिलता है, लेकिन अगर नीच का है तो व्यक्ति खाँसी, नजला, जुकाम जैसे रोगों से घिरा रहता है। चंद्रमा के प्रभाव को अनुकूल करने के लिए सोमवारका व्रत तथा सफेद खाद्य वस्तुओं का सेवन करना चाहिए। पुखराज और मोती पहना जा सकता है। मंत्र 'ॐ श्राम्‌ श्रीम्‌ श्रौम्‌ सः चंद्राय नमः' का 2 लाख 31 हजार बार जप करना चाहिए।

मंगल : यह महापराक्रमी ग्रह है। कर्क, वृश्चिक, मीन तीनों राशियों पर उसका अधिकार है। यह लड़ाई-झगड़ा, दंगाफसाद का प्रेरक है। इससे पित्त, वायु, रक्तचाप, कर्णरोग, खुजली, उदर, रज, बवासीर आदि रोग होते हैं। अगर कुंडली में मंगल नीच का है तो तबाही कर देता है।

बड़ी-बड़ी दुर्घटनाएँ, भूकंप, सूखा भी मंगल के कुप्रभावों के प्रतीकमाने जाते हैं, लेकिन अगर मंगल उच्च का है तो वह व्यक्ति कामक्रीड़ा में चंचल, तमोगुणी तथा व्यक्तित्व का धनी होता है। वे अथाह संपत्ति भी खरीदते हैं। मंगल का प्रभाव अनुकूल करने के लिए मूँगा धारण किया जा सकता है। ताँबे के बर्तन में खाद्य वस्तु दान करने और मंत्र'ॐ क्रम्‌ क्रीम्‌ क्रौम सः भौमाय नमः' का जाप 2 लाख 10 हजार बार करने से लाभ हो सकता है।

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बुध : यह वैसे हरियाली तथा हृदय कारक प्रतीक है, लेकिन इसे नपुंसक ग्रह भी कहते हैं। बुध ग्रह अगर नीच का है तो पति-पत्नी में अविश्वास बढ़ाकर दांपत्य जीवन चौपट कर देता है। इससे खाँसी, हृदय रोग, कोढ़, पागलपन, दमा आदि रोग होते हैं। अगर बुध उच्च का है तो बेपनाह धन, यश और बल मिलता है। मंत्र 'ॐ ब्राम्‌ ब्रीम्‌ ब्रौम्‌ सः बुधाय नमः' का तीन लाख 99 हजार बार जाप करने से राहत मिलती है।

बृहस्पति : यह बुद्धि तथा विद्या का स्वामी है। अगर यह नीच का है तो व्यक्ति की बुद्धि हर कर अच्छे समय पर भी गलत काम करवा देगा। कोई काम पूरा नहीं होने देगा। आमतौर पर इससे कुष्ठ रोग, गुप्त रोग, फोड़ा आदि होते हैं। इसके निदान के लिए बृहस्पतिवार को पीलीवस्तुएँ जैसे चने की दाल दान करने, रत्नों में पुखराज, सोनेला, धीया, केरु, केसरी या सुन्हला धारण करने और मंत्र 'ॐ ग्राम्‌ ग्रीम्‌ ग्रौम्‌ सः गुरुवे नमः' का जप राहत दे सकता है।

शुक्र : यह रसों का स्वामी है। अगर यह उच्च का है तो भोग-विलास का आनंद मिलता है, लेकिन नीच का है तो महिला में बाँझपन और पुरुष में नपुंसकता देता है। इसके निवारण के लिए हीरा, पुखराज, करगी तथा सिक्का रत्न धारण किए जा सकते हैं। मंत्र 'ॐ द्राम्‌ द्रीम्‌ द्रौम्‌ सः शुक्राय नमः' के तीन लाख 31 हजार बार जप से राहत मिल सकती है।
  इसकी दशा खराब चल रही हो तो व्यक्ति की मति मारी जाती है। वह कुसंगति में पड़कर अपना सब कुछ गँवा बैठता है। बच्चों और पत्नी को संकट में डाल देता है। यानी बात का बतंगड़ बनाकर अपयश दिलाना राहू का काम है। इससे अनिद्रा, पागलपन व उदर के रोग हो जाते हैं।      


शनि : यह अगर बलवान है तो नौकरी और व्यापार में विशेष लाभ होता है। गृहस्थ जीवन सुचारु चलता है, लेकिन अगर शनि का प्रकोप है तो व्यक्ति को बात-बात पर क्रोध आता है। निर्णय शक्ति काम नहीं करती, गृहस्थी में कलह और व्यापार में तबाही होती है।

शनि के प्रकोप से टीबी, कैंसर, अल्सर, गठिया, स्नायु रोग, उन्माद और वात रोग होते हैं। इसके लिए रत्न नीलम, लीतिया, जमुनिया और नीली कटहला पहना जा सकता है। पर अक्सर नीलम से और अनिष्ट हो जाता है, इसके लिए तेल के दीपक में नीलम डालकर उसके साथ जल रखकर मंत्र 'ॐ प्राम्‌ प्रीम्‌प्रौम्‌ सः शनैश्चराय नमः' का जाप करना चाहिए।

इसके अलावा दान और गौसेवा आदि भी करने की वैदिक वैज्ञानिक सलाह देते हैं। वैसे मंत्र का जाप चार लाख 83 हजार बार करना चाहिए। इस जाप को भी कई दिनों में बारी-बारी से किया जा सकता है।

राहू : इसकी दशा खराब चल रही हो तो व्यक्ति की मति मारी जाती है। वह कुसंगति में पड़कर अपना सब कुछ गँवा बैठता है। बच्चों और पत्नी को संकट में डाल देता है। यानी बात का बतंगड़ बनाकर अपयश दिलाना राहू का काम है। इससे अनिद्रा, पागलपन व उदर के रोग हो जाते हैं। लेकिन अगर राहू मेहरबान है तो यह बेपनाह धन की प्राप्ति भी कराता है। रत्नों में गोमेद, सुरसा साफा पहनने और मंत्र 'ॐ भ्राम्‌ भ्रीम्‌ भ्रौम्‌ सः राहुवे नमः' का जप 3 लाख 71 हजार बार करने से लाभ हो सकता है।

केतु : कुंडली में केतु की कोई जगह नहीं होती। यह हमेशा किसी ग्रह के साथ मिलकर नफा-नुकसान पहुँचाता है। यह यदि उच्च का हो तो खेती, भवन ठेकेदारी, दवाइयों का व्यापार, फौज, पशुपालन, डॉक्टरी में लाभ पहुँचाता है और निम्न का हो तो हर बने-बनाए काम को आखिरी समय में बिगाड़ देता है। यह चर्मरोग, पेट के रोग, दुर्घटनाओं का जनक भी होता है।

रत्न, वैदुर्य, लहसुनिया, गोदंत, संगी पहनने और मंत्र 'ॐ स्त्रौम्‌ सः केतवे नमः' का तीन लाख 51 हजार बार जप करने से इसका प्रभाव खत्म किया जा सकता है।

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