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जब लग्न में शुक्र हो

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भारती पंडित

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लग्न का शुक्र जातक को शारीरिक सुंदरता से पूर्ण बनाता है। शुक्र प्रबल हो तो जातक की आँखें बेहद भावपूर्ण होती है व वह बातें करते समय आँखों व हाथों का प्रयोग अधिक करता है। मीठा बोलने व लोगों को लुभाने में ये माहिर होते हैं।

लग्न का शुक्र स्वभाव में कोमलता, भावुकता और विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण भी देता है। यदि शुक्र लग्नस्थ हो या तुला-वृषभ लग्न हो व शुक्र पंचम में हो या शुक्र महादशा 12 से 16 वर्ष के बीच कभी लगने वाली हो तो चरित्र का ध्यान रखना आवश्यक होता है। अन्यथा यह शुक्र गलत रास्ते पर ले जाता है।

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शुक्र लग्नस्थ होने पर जातक कलाकार होता है। उसे गायन, वादन, नृत्य या चित्रकला का शौक अवश्य होता है। लग्न में शुक्र हो व उस पर शनि-राहु की दृष्टि न हो तो बाल प्रौढ़ावस्था तक काले रहते हैं, त्वचा की रंगत बनी रहती है।

अग्नि तत्व की राशि का शुक्र (विशेषत: धनु) विवाह में देर कराता है मगर पत्नी बहुत अच्छी मिलती है व जीवन सुखी रहता है। वृषभ का शुक्र चरित्र का ध्यान रखने की सीख देता है। मिथुन, तुला व कुंभ का शुक्र भी विलासी जीवन में रुचि देता है। कन्या का शुक्र पत्नी व घर परिवार में रुचि व झुकाव बनाए रखता है। मीन राशि का शुक्र अस्थिर विचारों वाला बनाता है। कर्क और वृश्चिक राशि का शुक्र अच्‍छा पत्नी सुख व संतान सुख देता है।

शुक्र की कमजोर स्थिति त्वचा रोग, डायबिटीज या मूत्राशय से संबंधित रोगों को जन्म देती है अत: शुक्र को प्रबल रखने के लिए स्त्री का सम्मान करना, कफ को संतुलित रखना, सफेद वस्तुओं का सेवन करना व देवी की उपासना करना फलदायक होता है।

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