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हथेली के पर्वत से जानें व्यक्तित्व

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- प्रमोद त्रिवेदी 'पुष्प'

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सामुद्रिक शास्त्र में हाथ की रेखाओं व उभरे हुए भागों का बड़ा महत्व है। हथेलियों में उँगलियों के नीचे के भाग को पर्वत कहा गया है। इन्हीं पर्वतों के द्वारा जातक के स्वभाव की विशेषताएँ भी मालूम होती हैं।

चंद्र क्षेत्र : मणिबंध के ऊपर और हथेली के बाएँ भाग के नीचे का क्षेत्र चंद्र क्षेत्र कहलाता है। चंद्र पर्वत वाले व्यक्ति कल्पनाशील, संवेदनशील, कवि, कलाकार, सौंदर्यप्रेमी और साहित्यकार होते हैं। यह गंभीर क्षेत्र मानसिक चिंता और चंचल बुद्धि प्रकट करता है। इस क्षेत्र में कोई रेखा शुक्र पर्वत तक पहुँच गई हो तो विदेश यात्रा के योग बनते हैं। इसी प्रकार इस क्षेत्र में यदि मंगल द्वितीय तक पहुँचने वाली रेखा हो तो विदेश यात्रा का योग बताती है।

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Devendra SharmaND
मंगल क्षेत्र : गुरु पर्वत के नीचे और बुध तथा चन्द्र क्षेत्र के बीच मंगल पर्वत होता है। मंगल प्रथम भौतिक और द्वितीय मानसिक स्थिति को दर्शाता है। मंगल का सामान्य गुण बल, साहस, निर्भयता आदि है। रक्त को उत्तेजित करता है। ऐसे व्यक्ति कठिनाई से विचलित नहीं होते हैं। आलोचना सुनना पसंद नहीं करते। जल्दी गुस्सा हो जाते हैं। दृढ़ स्वभाव के होते हैं। अति विकसित क्षेत्र उग्र स्वभाव का प्रतीक है। मंगल द्वितीय वाले व्यक्ति बुद्धिमान, मेधावी व वैज्ञानिक होते हैं।

बुध क्षेत्र : कनिष्टिका उँगली के नीचे के उभरे भाग को बुध क्षेत्र कहते हैं। बुध का स्वभाव दृष्टि सजग रखने का है। बुध क्षेत्र के उभरे भाग वाले व्यक्ति यात्रा अधिक करते हैं। ऐसे व्यक्ति वाक्‌शक्ति से प्रखर होते हैं। उनका मन अस्थिर रहता है। व्यापार-व्यवसाय में यह पर्वत लाभ दिलवाता है। इस पर्वत पर खड़ी तीन रेखाएँ हों तो व्यक्ति चिकित्सकीय क्षेत्र में यश पाता है। दबा हुआ पर्वत विवेकहीनता प्रकट करता है।

गुरु क्षेत्र : तर्जनी के मूल के नीचे वाला भाग गुरु पर्वत क्षेत्र कहलाता है। उभरे गुरु पर्वतीय व्यक्ति उत्साहयुक्त, स्वतंत्र प्रकृति के आदर्शवादी, विचारवान व व्यावहारिक होते हैं। ऐसे व्यक्ति विवेक और बुद्धि का उपयोग खूब करते हैं। शासक, धर्मगुरु, शिक्षक और उद्योग-निपुण होते हैं। अधिक उभरे गुरु पर्वत वाले व्यक्ति घमंडी और स्वयं के सामने सभी को तुच्छ समझते हैं। यदि पर्वत दबा हुआ हो तो व्यक्ति को निम्न स्तर के कार्यों में उलझाने वाला होता है।

शुक्र क्षेत्र : अँगूठे के मूल से जीवन रेखा तक फैले हुए ऊँचे गद्दीदार मांसल भाग को शुक्र कहते हैं। पर्वत ऊँचा हो तो व्यक्ति का स्वास्थ्य, सौंदर्य, प्रेम, संतान सुख में मदद मिलती है। ऐसा व्यक्ति दयावान, कला-संगीत प्रेमी होता है। अति विकसित पर्वत व्यक्ति के प्रेम संबंधों की ओरसंकेत करता है। सपाट-समतल पर्वत व्यक्ति में आध्यात्मिकता की तरफ झुकाव बताता है। पर्वत स्त्री के हाथ में बहुत उभरा हो तो काम का प्रतीक होता है।

शनि क्षेत्र : मध्यमा के मूल में हृदय रेखा तक फैले क्षेत्र को शनि पर्वत कहते हैं। शनि पर्वत यदि उभरा हुआ तो व्यक्ति एकांतप्रिय, भाग्यवादी, गंभीर, दूरदर्शी, आध्यात्मिक और परिश्रमी होता है। उच्च पर्वत वाले गंभीर स्वभाव के होते हैं। प्रतिफल न मिले तो ये ज्यादा चिढ़ जाते हैं। शंकाशील स्वभाव के कारण पारिवारिक व्यक्तियों के साथ संबंध स्थापित नहीं कर सकते। अधिक उभरे पर्वत व्यक्ति को उदासीन, अध्यात्मवादी और दार्शनिक बनाता है।

सूर्य क्षेत्र : अनामिका के नीचे का मांसल क्षेत्र सूर्य क्षेत्र कहलाता है। अगर ये समान उभार वाला हो तो व्यक्ति दार्शनिक, बौद्धिक, विद्वान, लेखक, वक्ता, धर्मगुरु होता है। और यदि सूर्य क्षेत्र दबा हुआ हो तो मंदबुद्धि और ख्यातिविहीनता प्रकट करता है। सूर्य पर्वत क्षेत्र पर यदि तीन खड़ी रेखाएँ हों तो उसे अत्यंत शुभ माना जाता है। सूर्य क्षेत्र में इन आड़ी रेखाओं को अच्छा नहीं माना जाता है। ऐसी दशा अस्वस्थता प्रकट करती है।

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