अक्सर यह सवाल पूछा जाता है कि दूर बैठे ग्रह नक्षत्र कैसे मानव जीवन पर प्रभाव डाल सकते हैं? और यदि डालते भी हैं तो वे किसी एक क्षेत्र विशेष पर ही डालते हैं, किसी व्यक्ति पर नहीं। सूर्य और चंद्र सभी ओर एक साथ प्रकाशित होता है और यह सभी पर एक-सा प्रभाव डालते हैं। जब ऐसा है तो फिर कुंडली देखने या ज्योतिष द्वारा व्यक्ति विशेष पर ग्रहों के अच्छे या बुरे प्रभाव का विश्लेषण करना व्यर्थ है।
इस सवाल के उत्तर में विद्वान ज्योतिषविद् कहते हैं कि यह सही है कि सूर्य और चंद्र का प्रकाश इस धरती के एक विस्तृत भू-भाग पर एक-सा पड़ता है, लेकिन उसका प्रभाव भिन्न-भिन्न रूप में देखा जा सकता है। कहीं पर सूर्य के प्रकाश के कारण अधिक गर्मी है तो किसी ठंडे इलाके में उसके प्रकाश के कारण जीव-जंतुओं को राहत मिली हुई है। सूर्य का प्रकाश तो एक समान ही धरती पर प्रकाशित हो रहा है लेकिन धरती का क्षेत्र एक जैसा नहीं है। उसी प्रकाश से कुछ जीव मर रहे हैं तो कुछ जीव जिंदा हो रहे हैं। यदि हम यह मानें की एक क्षेत्र विशेष पर एक-सा प्रभाव होता है तो यह भी गलत है।
मान लो सौ किलोमीटर के एक जंगल में तूफान उठता है तो उस तूफान के चलते कुछ पेड़ खड़े रहते हैं और कुछ उखड़ जाते हैं, कुछ झुककर तुफान को निकल जाने देते हैं। इसी तरह जब सूर्य का प्रकाश पड़ता है तो कुछ जीवों को इससे राहत मिलती है, कुछ जीव उससे बीमार पड़ जाता हैं और कुछ की उससे मृत्यु हो जाती है। इस सब के बीच धरती पर गुरुत्वाकर्षण की शक्ति का प्रत्येक क्षेत्र, प्रकृति और व्यक्ति पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है। वह इसलिये की प्रत्येक की प्रकृति अलग-अलग है।
इसी तरह समस्त ब्रह्मांड के ग्रह और नक्षत्र और उनकी अति सुक्ष्म हलचल का प्रभाव भी पृथ्वी पर पड़ता है। सूर्य और चंद्र के प्रभाव को तो प्रत्यक्ष रूप से देखा जा सकता है, लेकिन गुरु और शनि का प्रभाव दिखाई नहीं देता है इसलिए उसे नकारा जाना स्वाभाविक है।
वैज्ञानिक कहते हैं कि सूर्य के प्रभाव से ऊर्जा और चन्द्रमा के प्रभाव से समुद्र में ज्वार-भाटा उत्पन्न होता है। चंद्र का प्रभाव जल पर अधिक पड़ता है। चंद्र के प्रभाव से समुद्र में अष्टमी के दिन लघु ज्वार और पूर्णिमा के दिन बृहद ज्वार उत्पन्न होता है। मनुष्य के भीतर स्थित जल पर भी चंद्र का प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता था। हमारा मस्तिष्क जल में ही डूबा हुआ है। प्रत्येक व्यक्ति के भीतर जल की स्थिति भिन्न-भिन्न होती है। इस भिन्नता के कारण ही उस पर दूसरे से अलग प्रभाव होता है।
वैज्ञानिक शोधों से यह पता चला है कि पूर्णमासी के दिन अपराध, आत्महत्या और मानसिक तनाव में बढ़ोतरी हो जाती है। समुद्र में मछलियों के व्यवहार में भी परिवर्तन हो जाता है। यह भी देखा गया है कि इस दिन ऑपरेशन करने पर खून अधिक बहता है। शुक्ल पक्ष में वनस्पतियां अधिक बढ़ती है। सूर्योदय के बाद वनस्पतियों और प्राणियों में स्फूर्ति के प्रभाव को सभी भलिभांति जानते हैं।
रूस के वैज्ञानिक चीजेविस्की ने सन 1920 में बहुत काल के शोध के बाद यह बताया कि हर 11 साल में सूर्य में विस्फोट होता है जो 1000 अणुबम के बराबर का होता है। इस विस्फोट के कारण धरती का वातारवण बदल जाता है। इस बदले हुए वातावरण के कारण धरती पर उथल-पुथल बढ़ जाती है। इस दौरान लडाई झगडे, मारकाट अधिक होते हैं। युद्ध भी इसी समय में होता है। जब ऐसा समय शुरू होता है तो फिर इस समय को शांत होने में भी समय लग जाता है। इसी दौरान पुरुषों का खून पतला हो जाता है, वृक्षों के तनों में स्थित वलय के आकार बड़े हो जाता है। इस दौरान कई तरह के घटनाक्रम देखे जा सकते हैं। तो यह कहना गलत है कि ग्रह और नक्षत्रों के मानव जीवन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
प्राचीन काल में हमारे ऋषि मुनियों ने बहुत शोध, समझ और अनुभव के बाद यह जाना कि किस तरह प्रत्येक ग्रह और नक्षत्र का प्रभाव प्रत्येक मनुष्य पर कैसा होता है। सिर्फ ग्रह और नक्षत्रों का प्रभाव ही नहीं हमारे आसपास की प्रकृति और वातावरण से भी हमारे जीवन में उथल पुथल होती रहती है। उक्त सभी बातों को गहराई से समझने के बाद ही वास्तु अनुसार घरों का निर्माण होने लगा। योग और आयुर्वेद का सहारा लिया जाने लगा। नक्षत्रों की चाल समझकर मौसम का हाल जाना जाने लगा। जब धीरे धीरे समझ बड़ी तो ग्रहों के दुष्प्रवाव से बचने के अन्य उपाय भी ढूंढे जाने लगे। ज्योतिष जो उपाय बताते हैं वे अनुभूत सत्य पर आधारित और शास्त्र सम्मत होते हैं। यह अलग बात है कि कुछ मुट्ठीभर ज्योतिषियों के कारण इस विद्या पर संदेह किया जाता है।
प्रस्तुति : अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'