मनुष्य के जीवनकाल में उसके कुछ मित्र व शत्रु होते हैं। समान गुणधर्म एवं आचार-विचार वाले व्यक्तियों में अक्सर मित्रता होती है, वहीं विपरीत गुणधर्म एवं आचार-विचार वाले व्यक्तियों में मित्रता का अभाव होता है। इसी प्रकार ज्योतिष में ग्रहों की परस्पर मित्रता व शत्रुता होती है जिसे नैसर्गिक मैत्री कहते हैं।
इसके अतिरिक्त ग्रहों की परस्पर स्थिति के आधार पर तात्कालिक मैत्री होती एवं नैसर्गिक मैत्री एवं तात्कालिक मैत्री के आधार 'पंचधा-मैत्री चक्र' का निर्माण होता है। 'पंचधा-मैत्री चक्र' के अनुसार ग्रहों की परस्पर शत्रुता-मित्रता जातक के जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव डालती है।
यदि 'पंचधा-मैत्री चक्र' में कोई ग्रह जन्म पत्रिका में अपने मित्र की राशि में स्थित है अथवा मित्र के साथ स्थित होता है या अपने मित्र के द्वारा दृष्टव्य होता है तब यह जातक को शुभ फल प्रदान करता है। इसके ठीक विपरीत यदि कोई ग्रह जन्म पत्रिका में अपने शत्रु की राशि में स्थित है अथवा शत्रु के साथ युतिकारक है या शत्रु की पूर्ण दृष्टि प्रभाव में है तो यह जातक अशुभ फल प्रदान करता है।
आइए, जानते हैं कि नवग्रहों के नैसर्गिक शत्रु व मित्र ग्रह कौन से हैं?
1. सूर्य :
मित्र- चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु
शत्रु- शुक्र, शनि, राहु, केतु
2. चंद्र :
मित्र- सूर्य, मंगल, गुरु
शत्रु- बुध, शुक्र, शनि, राहु, केतु
3. मंगल :
मित्र- सूर्य, गुरु, केतु
शत्रु- शनि, राहु
4. बुध :
मित्र- चंद्र, शुक्र, शनि
शत्रु- मंगल, गुरु
5. गुरु :
मित्र- सूर्य, मंगल
शत्रु- कोई ग्रह नहीं
6. शुक्र :
मित्र- बुध, शनि, राहु, केतु
शत्रु- सूर्य, गुरु
7. शनि :
मित्र- शुक्र, राहु, केतु
शत्रु- सूर्य, केतु
8. राहु :
मित्र- शुक्र, शनि
शत्रु- सूर्य, चंद्र, मंगल, केतु
9. केतु :
मित्र- मंगल, शुक्र
शत्रु- सूर्य, चंद्र, शनि, राहु
(विशेष- मित्र एवं शत्रु ग्रह के अतिरिक्त सभी ग्रह सम होते हैं)
-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केंद्र