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क्यों बन जाता है व्यक्ति सनकी

बृहस्पति व मंगल बनाते हैं अति अनुशासित

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हमें फॉलो करें क्यों बन जाता है व्यक्ति सनकी

भारती पंडित

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अनुशासित रहना अच्‍छी बात है। अनुशासन हमारे जीवन में अहम भूमिका निभाता है और हमें सफल बनाता है। यदि कोई व्यक्ति पागलपन की हद तक अनुशासित रहे यानी ‍सफाई करे तो इस हद तक कि सारे समय सूक्ष्म निरीक्षण, कपड़े इस्तरी करें तो सिलवटें ही दूर करते रहें। अर्थात हर काम में अति। ऐसे लोगों को सनकी की उपाधि मिल जाती है।

इसमें इन व्यक्तियों का नहीं, उनके ग्रहों का कसूर होता है। बृहस्पति और मंगल दोनों ही ऊर्जा, ज्ञान, सलीका व अनुशासन के लिए जाने जाते हैं। जब ये दोनों ग्रह सामान्य होते हैं (यानी ठीक स्थिति में) तो व्यक्ति स्वयं को सलीके से, अनुशासित तरीके से रखना पसंद करता है। ये व्यक्ति स्वयं के साथ अपने आसपास के लोगों को भी अनुशासित रखने में रुचि दिखाते हैं।

मगर जब ये बृहस्पति व मंगल अच्छे भावों के (लग्न, पंचम, नवम, दशम) के स्वामी होकर अति कमजोर या अति प्रबल हो जाते हैं तो व्यक्ति सनकी बन जाता है। प्रबल बृहस्पति उसे अहंकारी बना देता है और प्रबल मंगल उसे अड़ियल और गुस्सैल बना देता है। ऐसे में व्यक्ति स्वयं को सबसे ज्ञानी व सही मानता है और बाकी सभी को अपने मुताबिक चलाने व ‍निर्देशित करने का प्रयास करता है।

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विशेषकर यदि गुरु व मंगल स्वराशिस्थ हो जाता हो या मूल त्रिकोण में हो तो यह प्रभाव बढ़ जाता है। व्यक्ति अति अनुशासित स्वयं तो होना ही चाहता है, दूसरों पर अविश्वास करने लगता है। उनके किए गए कार्यों में मीन-मेख निकालकर स्वयं को श्रेष्ठ साबित करना उसका स्वभाव बन जाता है और लोग उनसे बचने लगते हैं, वे समाज में हँसी के पात्र बन जाते हैं।

इस स्थिति को टालने के लिए गाय की सेवा करना, पीली वस्तु का दान करना, रक्त दान करना, बंदरों को चने खिलाना, बहते पानी में गुड़ बहाना और केले का पूजन करना लाभदायक हो सकता है। गुरु की शरण लेना और इष्ट देव की आराधना करना अति उत्तम रहेगा।

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