गुरु ग्रह को एक अति शुभ ग्रह के रूप में माना जाता है और साथ ही इसका प्रबल होना विवाह, नौकरी, ज्ञान, परिवार आदि के लिए आवश्यक माना जाता है। अक्सर विवाह न होना, संतान न होना, पढ़ाई में मन न लगना आदि बातों को सीधे-सीधे गुरु की कमजोरी या प्रबलता से जोड़ दिया जाता है और पुखराज पहनकर, गुरु की प्रबलता के अन्य उपायों द्वारा स्थिति और जटिल बना दी जाती है।
वास्तव में गुरु शुभ है या अशुभ, यह लग्न कुंडली के द्वारा निर्धारित किया जाता है। जिन लग्नों में गुरु लग्न, द्वितीय, पंचम, नवम एवं आय भाव के स्वामी होते हैं, उन्हीं लग्नों के लिए गुरु शुभ माने जाते हैं। अर्थात धनु, मीन, मेष, वृश्चिक, सिंह एवं कुंभ लग्न के लिए गुरु शुभता लिए होते हैं। अत: इन लग्नों के व्यक्तियों को गुरु को मजबूत करना चाहिए। यदि गुरु इन्हीं भावों में मौजूद हो, पाप दृष्टि से रहित हो तो गुरु योगकारक माने जाते हैं। ऐसे व्यक्तियों के सोने के गहने, पुखराज आदि पहनना लाभकारी रहता है।
पीले वस्त्र, पीला भोजन आदि शुभता बढ़ाता है। यदि इन लग्न वाले व्यक्तियों की कुंडली में गुरु 6, 8, 12, या 3, 4, 7 के भावों में हो, नीच का हो तो उन्हें गुरु की मजबूती के उपाय करने चाहिए अन्यथा जीवन में असफलता का मुँह देखना पड़ता है।
मिथुन एवं कन्या लग्न के लिए गुरु दो केंद्रों के स्वामी (7, 10, एवं 4, 7) होकर केंद्राधिपत्य दोष से ग्रस्त हो जाते हैं व अपना कारकत्व खोकर निष्क्रिय हो जाते हैं। अत: ये कुंडली को बल नहीं दे पाते अत: उनका सामान्य स्थिति में रहना ही श्रेयस्कर होता है। यदि नीच के हो, तो इनकी मजबूती का प्रयास करें।
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तुला, वृषभ, मकर लग्न के लिए गुरु 3, 6, 8, 12 भावों के स्वामी होकर प्रतिकूल हो जाते हैं अत: इनका कमजोर होना या 6, 8, 12 में होना (स्वराशिस्थ) ही हितकर होता है। यदि अशुभ भावों के स्वामी होकर गुरु लग्न, पंचम, नवम, दशम आदि शुभ भावों में बैठते हैं, तो साधारणत: प्रतिकूल फल ही अनुभव में आते हैं। इन लग्नों में इनकी उच्च स्थिति बुरा प्रभाव ही देती है।
अत: इन लग्न के व्यक्तियों को सोने के गहने और पुखराज नहीं पहनना चाहिए, गुरु की शरण व गुरु की वस्तुओं का दान करना चाहिए। अपने मुख्य ग्रह लग्न स्वामी को मजबूत करना चाहिए और पीले वस्त्र, पीले भोजन से बचना चाहिए।
कर्क लग्न के लिए गुरु मिला- जुला प्रभाव देते हैं। एक ओर ये छठे भाव के स्वामी हैं, दूसरी ओर नवम का भी आधिपत्य रखते हैं। अत: इनका सामान्य स्थिति में रहना आवश्यक है। ये व्यक्ति पुखराज पहन सकते हैं। स्वगृही हो तो शुभ फलदाता हो जाते हैं।
खराब गुरु क्या करते हैं - यदि गुरु अशुभ भावों के स्वामी होकर शुभ भावों में हो, उच्च राशि में हो या शुभ भावों के स्वामी होकर अशुभ भावों में हो तो पेट की समस्या, लिवर की खराबी, मोटापा, ज्ञान की कमी, मतिभ्रम, विवाह व संतान न होना, शिक्षा में रुकावट आदि समस्याएँ उत्पन्न होती है। इनका गुरु के बलाबल के अनुसार निदान आवश्यक है।
पुखराज हर समस्या का निदान नहीं है :- पुखराज तभी पहना जाए जब गुरु कारक ग्रह हो, यदि तुला-वृषभ लग्न वाले व्यक्ति पुखराज धारण करते हैं तो बनते काम बिगड़ने लगेंगे। यदि राशि धनु या मीन हो, मगर लग्न तुला या वृषभ हो तो स्वामी ग्रह के बलाबल का विचार कर रत्न धारण करें। विवाह के लिए पुखराज तभी धारण करें, जब गुरु शुभ भावों का कारक हो या विवाह भाव से संबंध रखें अन्यथा लाभ की जगह हानि ही होती है।