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जन्मकुंडली में ग्रहों का प्रभाव

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- पं. जया ठाकु
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प्रत्येक जातक की जन्मकुंडली में ग्रहों का प्रभाव सर्वाधिक होता है। उसी के चलते ज्योतिषीय गणना व भविष्य कथन कहा जाता है। लेकिन जन्मकुंडली में सब कुछ अच्छा होते हुए भी जातक परेशान व दुःखी देखा गया है। उसका कारण उसके जीवन में महादशा का प्रभाव पाया गया है।

महादशाएँ कई प्रकार की होती हैं जैसे अष्टोतरी, विंशोतरी, योगिनी आदि किंतु फल ज्ञात करने के लिए विंशोतरी महादशा को ही ग्रहण किया गया है। अतः यहाँ विंशोतरी महादशा का ही वर्णन है।

प्रत्येक जातक के जीवन में जन्म से भोग्य महादशा को गिनते हुए सात महादशाएँ आती हैं और जातक के जीवन को प्रभावित करती हैं। महादशाएँ नौ ग्रहों की होती हैं किंतु जातक केवल सात ग्रहों की महादशा तक पहुँच पाता है। कोई-कोई भाग्यशाली जातक आठवीं महादशा को भोगता है।
  हर जातक के जीवन में जन्म से भोग्य महादशा को गिनते हुए सात महादशाएँ आती हैं और जातक के जीवन को प्रभावित करती हैं। महादशाएँ नौ ग्रहों की होती हैं किंतु जातक केवल सात ग्रहों की महादशा तक पहुँच पाता है। कोई-कोई भाग्यशाली जातक आठवीं महादशा को भोगता है।      


ग्रहों की महादशाएँ कुल 120 वर्षों की होती हैं जिन्हें 9 ग्रहों में विभाजित किया गया है। जातक के जन्म नक्षत्र के अनुसार महादशाएँ तय होती हैं।

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जातक के लग्न अनुसार ग्रहों की महादशा शुभ-अशुभ व विशेष शुभ फलदायी होती है। राशि पति के अनुसार भी महादशा का फल प्राप्त होता है। जातक के जीवन के मार्केश का योग भी महादशा से ज्ञात होता है और आयु का निर्णय लिया जाता है।

ग्रहों की महादशा में ग्रहों की अंतरदशा, प्रत्यंतरदशा व सूक्ष्म अंतरदशा भी निकाली जाती है जिससे खराब से खराब व अच्छे से अच्छा समय ज्ञात होता है। उसके अनुसार जातक अपना जीवन सावधानी से जी सकता है या उपाय-निदान, पूजा-पाठ से खराब को कम खराब व अच्छे को और श्रेष्ठ बना सकता है।

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