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जब लग्न में शनि हो

कष्ट में गुजरता है जीवन का पूर्वार्द्ध

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भारती पंडित

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लग्न में शनि होने की स्थिति में लग्न का, शनि के बलाबल का और उस पर ग्रहों की दृष्टि का अध्ययन करना आवश्यक हो जाता है। सामान्यत: लग्न का शनि अच्छा नहीं माना जाता। लग्न का शनि जातक को आलसी व हीन मानसिकता का बना देता है। शरीर व बाल खुश्क, रंगत फीकी या कालापन लिए होती है। जीवन में कुछ विशेष पाने की चाहत नहीं होती।

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यदि शनि-मंगल से प्रभावित हो तो दुर्घटना, कारावास या अकस्मात मृत्यु योग बना सकता है। यदि सूर्य की राशि में हो तो दुखद परिणाम ही मिलते हैं। स्वराशिस्थ होने पर ज्ञान प्राप्ति का इच्छुक व विद्वान बना देता है। शुक्र की राशि होने पर शरीर आकर्षक होता है, समाज सेवा में रुचि होती है।

यदि लग्न में शनि उच्च का हो, गुरु-शुक्र जैसे ग्रहों की दृष्टि में हो तो जातक आर्थिक व सामाजिक क्रांति की इच्छा करता है, अपनी इच्छाएँ पूरी करता है मगर विरक्त व त्यागी बना रहता है। उच्च का शनि अपनी दशा-महादशा में अति लाभकारक होता है

शनि लग्न में हो तो जीवन का पूर्वार्द्ध कष्ट में ही गुजरता है। 30 से 36 वर्ष के बाद जीवन में स्थिरता आती है। लग्न का शनि दांपत्य को भी प्रभावित करता है।

जीवनसाथी श्याम वर्णी या अपने से निम्न होता है। दांपत्य में खटपट भी बनी रहती है। लग्न में शनि होने पर शनि का दान पूजन करना, सात्विकता से रहना व गरीबों की सहायता करना लाभ देता है।

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