राहु-केतु को ज्योतिष में छाया ग्रह की संज्ञा दी जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार राहु को असुर का ऊपरी धड़ और केतु को पूँछ का हिस्सा माना जाता है।इस तरह से विचार किया जाए तो केतु ग्रह के पास मस्तिष्क नहीं है अर्थात यह जिस भाव में या जिस ग्रह के साथ रहता है, उसी के अनुसार फल देने लगता है। केतु का सीधा प्रभाव मन से है अर्थात केतु की निर्बल या अशुभ स्थिति चंद्रमा अर्थात मन को प्रभावित करती है और आत्मबल कम करती है। केतु से प्रभावित व्यक्ति अक्सर डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं। भय लगना, बुरे सपने आना, शंकालु वृत्ति हो जाना भी केतु के ही कारण होता है। केतु और चंद्रमा की युति-प्रतियुति होने से व्यक्ति मानसिक रोगी हो जाता है। व्यसनाधीनता बढ़ती है और मिर्गी, हिस्टीरिया जैसे रोग होने की आशंका बढ़ जाती है। केतु प्राय: लग्न, द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम, दशम व व्यय में होने से अच्छा फल नहीं देता। तृतीय, पंचम, षष्ठ, नवम व एकादश में केतु अच्छा फल देता है। साथ ही मेष, वृषभ, मिथुन, कन्या, धनु व मीन राशि में केतु अच्छा फल देता है। |
ज्योतिष में राहु-केतु को छाया ग्रह की संज्ञा दी जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार राहु को असुर का ऊपरी धड़ और केतु को पूँछ का हिस्सा माना जाता है। इस तरह से केतु के पास मस्तिष्क नहीं है अर्थात जिस ग्रह के साथ रहता है, उसी अनुसार फल देने लगता है। |
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यदि किसी कुंडली में केतु अशुभ भाव में बैठा हो तो उसका उपाय करना आवश्यक है अन्यथा व्यक्ति को ताउम्र परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
शांति के उपाय
1. केतु से बचने का सबसे अच्छा उपाय है हमेशा प्रसन्न रहना, जोर से हँसना... इससे केतु आपके मन को वश में नहीं कर पाएगा।
2. प्रतिदिन गणेशजी का पूजन-दर्शन करें।
3. मजदूर, अपाहिज व्यक्ति की यथासंभव मदद करें।
4. लहसुनिया पहनने से भी केतु के अशुभ प्रभाव में कमी आती है।
5. काले, सलेटी रंगों का प्रयोग न करें।
6. लोगों में उठने-बैठने, सामाजिक होने की आदत डालें।