भगवान मंगल मेष तथा वृश्चिक राशि के स्वामी हैं। इनकी महादशा सात वर्षों तक रहती है। मंगल ग्रह की पूजा की पुराणों में बड़ी महिमा बताई गई है। ये प्रसन्न होकर मनुष्य की हर प्रकार की इच्छा पूर्ण करते हैं।
ताम्रपत्र पर भौमयंत्र लिखकर तथा मंगल की सुवर्णमयी प्रतिमा की प्रतिष्ठा कर मंगल ग्रह की पूजा की जाती है। पूजा के दौरान इन्हें भरद्वाज गोत्र कहकर संबोधित किया जाता है। ये अशुभ ग्रह माने जाते हैं। यदि ये वक्रगति से न चलें तो एक-एक राशि को तीन-तीन पक्ष में भोगते हुए बारह राशियों को डेढ़ वर्ष में पार करते हैं।
मंगल ग्रह का स्वरूप
* मंगल ग्रह की चार भुजाएँ हैं।
* इनके शरीर के रोम लाल हैं।
* मंगल ग्रह के हाथों में अभयमुद्रा, त्रिशूल, गदा और वरमुद्रा है।
* इन्होंने लाल मालाएँ और लाल वस्त्र धारण कर रखे हैं।
* इनके सिर पर स्वर्णमुकुट है।
* मंगलदेव का वाहन मेख (भेड़ा) है।
मंगल ग्रह जन्मकथा
वाराह कल्प की बात है। जब हिरण्यकशिपु का बड़ा भाई हिरण्याक्ष पृथ्वी को चुरा ले गया था और पृथ्वी के उद्धार के लिए भगवान ने वाराहावतार लिया तथा हिरण्याक्ष को मारकर देवी पृथ्वी का उद्धार किया। उस समय भगवान को देखकर पृथ्वीजी अत्यंत प्रसन्न हुईं और उनके मन में भगवान को पतिरूप में वरण करने की इच्छा हुई।
वाराहावतार के समय भगवान का तेज करोड़ों सूर्यों की तरह असह्य था। पृथ्वी की अधिष्ठात्री देवी की कामना पूर्ण करने के लिए भगवान अपने मनोरम रूप में आ गए और देवी पृथ्वी के साथ एक वर्ष तक एकांत में रहे।
उस दौरान पृथ्वीजी और भगवान के संयोग से मंगल ग्रह की उत्पत्ति हुई (ब्रह्मवैवर्तपुराण 2। 8। 29 से 43।)। इसके अलावा भी मंगल ग्रह की उत्पत्ति की विभिन्न कथाएँ हैं।
मंगल ग्रह की शांति कैसे करें
* मंगल ग्रह की शांति के लिए शिव-उपासना तथा प्रवाल रत्न धारण करने का विधान है।
* दान में ताँबा, सोना, गेहूँ, लाल वस्त्र, गुड़, लाल चंदन, लाल पुष्प, केसर, कस्तूरी, लाल बृषभ, मसूर की दाल तथा भूमि देना चाहिए।
* मंगलवार को व्रत करना चाहिए तथा हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए।
* मंगल देवता के नामों का पाठ करने से ऋण से मुक्ति मिलती है।
मंगल शांति मंत्र
मंगल ग्रह की शांति के लिए श्रद्धानुसार नियमित एक निश्चित संख्या में प्रातःकाल निम्न में से किसी एक या सभी मंत्रों का जप करना चाहिए। कुल जप संख्या 10000 है। विशेष परिस्थितियों में विद्वान ब्राह्मण का सहयोग लेना चाहिए।
वैदिक मंत्र-
ॐ अग्निर्मूर्धा दिवः ककुत्पतिः पृथिव्या अयम् अपा गुं रेता गुं सि जिन्वति॥
पौराणिक मंत्र-
धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम्।
कुमारं शक्तिहस्तं तं मंगलं प्रणमाम्यहम्॥
बीज मंत्र-
ऊँ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः।
सामान्य मंत्र-
ॐ अं अंगारकाय नमः।