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मंगल ग्रह को जानें

मंगल ग्रह करे सबका मंगल

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अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

।।ॐ हनुमंते नम:।

लाल किताब के अनुसार मंगल नेक और मंगल बद अर्थात शुभ और अशुभ दोनों को अलग-अलग मानते हुए उनके देवता और अन्य सभी बातें अलग-अलग कही गई हैं। हम यहाँ संक्षिप्त रूप में समझने का प्रयास करते हैं।

ND
मंगल नवग्रहों में से एक है। लाल आभायुक्त दिखाई देने वाला यह ग्रह जब धरती की सीध में आता है तब इसका उदय माना जाता है। उदय के पश्चात 300 दिनों के बाद यह वक्री होकर 60 दिनों तक चलता है। बाद में फिर सामान्य परिक्रमा मार्ग पर आकर 300 दिनों तक चलता है। ऐसी स्थिति में मंगल का अस्त होना कहा गया है।

शुभ : मंगल सेनापति स्वभाव का है। शुभ हो तो साहसी, शस्त्रधारी व सैन्य अधिकारी बनता है या किसी कंपनी में लीडर या फिर श्रेष्ठ नेता। मंगल अच्छाई पर चलने वाला है ग्रह है किंतु मंगल को बुराई की ओर जाने की प्रेरणा मिलती है तो यह पीछे नहीं हटता और यही उसके अशुभ होने का कारण है। सूर्य और बुध मिलकर शुभ मंगल बन जाते हैं। दसवें भाव में मंगल का होना अच्छा माना गया है।

अशुभ : बहुत ज्यादा अशुभ हो तो बड़े भाई के नहीं होने की संभावना प्रबल मानी गई है। भाई हो तो उनसे दुश्मनी होती है। बच्चे पैदा करने में अड़चनें आती हैं। पैदा होते ही उनकी मौत हो जाती है। एक आँख से दिखना बंद हो सकता है। शरीर के जोड़ काम नहीं करते हैं। रक्त की कमी या अशुद्धि हो जाती है। चौथे और आठवें भाव में मंगल अशुभ माना गया है। किसी भी भाव में मंगल अकेला हो तो पिंजरे में बंद शेर की तरह है। सूर्य और शनि मिलकर मंगल बद बन जाते हैं। मंगल के साथ केतु हो तो अशुभ हो जाता है। मंगल के साथ बुध के होने से भी अच्छा फल नहीं मिलता।

उपाय : हनुमानजी की भक्ति। मंगल खराब की स्थिति में सफेद रंग का सुरमा आँखों में डालना चाहिए। गुड़ खाना चाहिए। भाई और मित्रों से संबंध अच्छे रखना चाहिए। क्रोध न करें।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण :
आकाश मंडल में मंगल का चौथा स्थान है। सूर्य से इसकी दूरी 224000000 किलोमीटर है। इसका आकार छोटा है और इसका व्यास 6860 किलोमीटर है। 687 दिनों में यह सूर्य की एक परिक्रमा पूर्ण करता है तथा पृथ्वी की अपेक्षा केवल एक दसवाँ भाव गुरुत्व शक्ति रखता है।

मंगल के दो उपग्रह हैं: 'फोबस' और दूसरा 'डोमस' जो मंगल की परिक्रमा करते हैं। पृथ्वी से मंगल की न्यूनतम दूरी 780000 किलोमीटर है।

पुराणों अनुसार :
स्कंद पुराण अनुसार मंगल की उत्पत्ति भगवान विष्णु के पसीने की बूँद से धरती द्वारा हुई है। वामन पुराण अनुसार मंगल की उत्पत्ति तब हुई जब भगवान भास्कर धारी भोलेनाथ ने महासुर अंधक का वध किया था। महाभारत अनुसार मंगल का जन्म भगवान कार्तिकेय के शरीर से हुआ था।

अधिक का मानना है कि मंगल पृथ्वी पुत्र है। इसका नाम भौम भी है। अत: इसकी उत्पत्ति पृथ्वी से हुई है।

(1) मंगल नेक
देवता
हनुमानजी
गोत्र
भारद्वाज
रंग
लाल
जाति
ब्राह्मण
वृक्ष
नीम
स्वभाव
क्रूर
दिन
मंगलवार
मसनुई
सूर्य-बुध
पशु
शेर
शक्ति
मात या मौत देना
पेशा
युद्ध, सुरक्षा, प्रबंधन
पोशाक
बंडी (छोटी जैकेट)
अंग
जिगर, ऊपर का होंठ
नक्षत्र
मृगशिरा, चित्रा, घनिष्ठा
धातु
लाल पत्थर
गुण
हौसला, भाई, लड़ाई
विशेषता
सोच-समझकर बात करने वाला
बल वृद्धि
गुरु के साथ बलवान
वाहन
आठ लाल घोड़े और आठ पहियों वाला मूँगा रत्न जड़ित स्वर्ण रथ
अन्य नाम
भौम, महीसुत, भूमि सुत, कुराक्ष, आग्नेय, अंगारक, कुज एवं रुधिर
राशि
प्रथम भाव और मेष व वृश्चिक राशि का स्वामी मंगल मकर में उच्च का और कर्क में नीच का माना गया है। इसके सूर्य, चंद्र और गुरु मित्र हैं। बुध और केतु शत्रु। शुक्र, शनि और राहु सम।
(2) मंगल बद
देवता
जिन, भूत
पेशा
कसाई
विशेषता
अभिमानी
गुण
ईर्ष्या
शक्ति
खाने-पीने की शक्ति
धातु
लाल चमकीला पत्थर
अंग
जिगर, नीचे का होंठ
पोशाक
नंगा सिर
पशु
ऊँट-ऊँटनी, हिरन
वृक्ष
ढाक का वृक्ष
मसनुई
सूर्य-शनि

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