सौर परिवार का सबसे सुंदर ग्रह शनि है जो अपनी वलयाकार आकृति के कारण अन्य ग्रहों से अलग पहचान बनाए हुए है। यह सूर्य तथा पृथ्वी से सर्वाधिक दूरी वाला ग्रह है तथा धीमी गति से सूर्य की संपूर्ण परिक्रमा लगभग साढ़े 29 वर्षों में पूरी करता है। इसे सूर्य तथा उनकी द्वितीय पत्नी छाया का पुत्र माना गया है। यह ग्रह काल पुरुष की कुंडली अनुसार दशम तथा एकादश भाग का प्रतिनिधित्व करता है। दशम भाव को कर्म, पिता तथा राज्य का भाव माना गया है। एकादश भाव को आय का भाव माना गया है। अतः कर्म, सत्ता तथा आय का प्रतिनिधि ग्रह होने के कारण यह व्यक्ति के जीवन को युवावस्था से लेकर वृद्धावस्था तक प्रभावित करता है। इस ग्रह को 'पापी' ग्रह की संज्ञा ज्योतिष शास्त्र में दी गई है, जो तुला राशि में उच्च का तथा मेष राशि में नीच का फल देता है। शनि जिस भाव में राशि में विद्यमान होता है वहाँ से तीसरी, सातवीं तथा दसवीं पूर्ण दृष्टि अन्य भावों पर डालता है। शनि जिस राशि में भ्रमण करता है उसकी अगली तथा पिछली राशियों को साढ़ेसाती दशा के रूप में प्रभावित करता है।
शनि के अशुभ होने पर वात एवं कफ जनित रोग, विकलांगता, मानसिक विकार, गठिया, पोलियो, पक्षाघात, कैंसर, हर्निया आदि रोगों का कारक माना गया है। वर-वधू के गुणों का मिलान करते समय एक की कुंडली मांगलिक तथा दूसरी कुंडली मांगलिक न हो तो शनि की उपस्थिति से मांगलिक दोष का निवारण किया जा सकता है।
सामाजिक जीवन में शनि को लोकतांत्रिक परंपरा का प्रतिनिधि ग्रह माना गया है। अतः राजनीतिक स्तर पर सफलता अथवा असफलता के लिए शनि ग्रह को प्रधान माना गया है। शनि से ही जातक की आयु, मृत्यु, चोरी, हानि, दीवाला, राजदंड, मुकदमा, शत्रु आदि के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
मेष लग्न में शनि सातवें, दसवें तथा ग्याहवें भाव में शुभ फलदायक होता है, जबकि प्रथम भाव में यह अत्यंत अशुभ फल देता है। शनि ग्रह के अशुभ फलों से बचने के लिए शनि से संबंधित निम्न उपाय किए जा सकते हैं-
सरसों, तिल्ली या किसी अन्य तेल से मालिश करने के पश्चात नागरमोथा, सौंफ, काले तिल आदि को जल में मिलाकर स्नान करने से अनिष्ट प्रभावों की शांति होती है। लोहा, काले वस्त्र, काली उड़द, काली तिल, चमड़ा, नीले फूल, तेल आदि का दान करना चाहिए। शनि के प्रकोप से बचने के लिए शनि मंत्र का जाप करना चाहिए।
ॐ शं शनिश्चराय नमः
अथवा शनि के अन्य मंत्रों का भी जाप करना चाहिए। शनि यंत्र का यथासंभव दान करना चाहिए।
शनि ग्रह की पूर्ण शांति के लिए शनि का पूजा-पाठ पूर्ण विधान से करने के पश्चात शनि के अशुभ प्रभाव भी शुभ प्रभावों में परिवर्तित हो जाते हैं।
इसके लिए हवन आदि भी किया जाना चाहिए। प्रतिदिन हनुमानजी की आराधना तथा शंकरजी की आराधना करना चाहिए। शनिवार का व्रत करना चाहिए। शनिवार को पीपल के पास वाले हनुमान मंदिर और शिव मंदिर में दीपक जलाना चाहिए।
काले रंग के पशु-पक्षियों का प्रतिनिधित्व करने के कारण काले रंग के पशु-पक्षियों की सेवा करना, उन्हें सुखमय भोजन पहुँचाने से भी इसका लाभ पहुँचता है। नशे तथा जुए आदि से दूर रहना चाहिए। झूठ, छल, कपट, मक्कारी, धोखा तथा झूठी गवाही से बचना चाहिए। सुनसान तथा अकेले स्थानों, अँधेरे स्थान पर रहने से बचना चाहिए। बुजुर्गों का पूर्ण सम्मान करना चाहिए। शनि अशुभ हो तो शनि की वस्तुओं का दान करना चाहिए। शनि शुभ हो तो शनि की वस्तुओं का दान नहीं करना चाहिए। जीने की कला का बोध केवल शनिदेव ही करवाते हैं।