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शनि के गोचर की शुभता-अशुभता

शनि की ढैय्या और प्रभाव

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- आचार्य गोविन्द बल्लभ जोशी
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शनिदेव वर्ष के आरंभ से 14 नवंबर तक कन्या राशि में ही संचार करेंगे। उसके बाद 15 नवंबर मंगलवार को मिथुन के चंद्रमा कालीन प्रातः 10 बजकर 11 मिनट पर तुला राशि में प्रवेश करेंगे। तथा फिर संवत्‌ 2068 के अंत यानी 22 मार्च, 2012 तक तुला राशि में ही संचार करेंगे।

शनि वक्री मार्गी- वर्षारंभ 26 जून, 2011 से शनि महाराज वक्री अवस्था में कन्या राशि पर संचार करेंगे तथा 13 जून 2011 से 6 फरवरी 2012 तक मार्गी स्थिति में होंगे और फिर 7 फरवरी 2012 से संवत्सर के आखिर तक वक्री अवस्था में ही तुला राशि में संचार करेंगे।

ध्यान रहे शनि जब किसी राशि में अशुभ होकर वक्री हों तो जातक को मानसिक व शारीरिक कष्ट, आर्थिक परेशानियाँ, रोग आदि प्रकट होने लगते हैं। समाज में भी कहीं राजनीतिक टकराव, अव्यवस्था, अत्याधिक महँगाई, कठोर रोग भय, उपद्रव, हिंसक घटनाएँ, अस्थिरता, असंतोष, बाढ़, अकाल, भूकंप आदि प्राकृतिक आपदाओं का भय एवं असुरक्षा का वातावरण बनता है।

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शनि साढ़ेसाती एवं शनि की ढैय्या के प्रभावस्वरूप जातक को पारिवारिक एवं व्यवसाय संबंधी उलझनें, शारीरिक व मानसिक कष्ट आर्थिक परेशानियाँ, आय कम व खर्च अधिक, कार्यों में विघ्न-बाधाएँ आदि अशुभ फल घटित होते हैं।

जन्म राशि, नाम राशि या लग्न राशि पर शनि साढ़ेसाती का प्रभाव सदा ही अनिष्टकारी ही होता है ऐसा आवश्यक नहीं।

यदि कुंडली में शनि, त्रिकोणेश लग्नेश, पंचपेश या भाग्येश होकर 3, 6 या 11 वें भाव में स्थित हो तो शनि व्यवसाय में लाभकारी होगा।

इसके अतिरिक्त कुंडली में शनि शुभ भावेश होकर उच्चस्थ, मित्र के घर में या वर्गोत्तम स्थिति में हो तो भी शनि अपनी दशा अंतदर्शा अथवा गोचरवश अरिष्ट फल की अपेक्षा शुभ फल ही प्रकट करेगा।

प्रत्येक लग्नानुसार शनि का गोचर फल अलग-अलग होता है। अतः केवल यह सुनकर कि शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या चल रही है परेशान होने की आवश्यकता नहीं। भगवान शंकर की आराधना, सोमवार और प्रदोष व्रत एंव अभिषेक करने से शनि महाराज सौम्य बन जाते हैं।

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