सप्तम भाव जीवन का सबसे महत्वपूर्ण भाव होता है। इसके बिगड़ जाने से वैवाहिक जीवन नष्ट हो जाता है, और सच्चे दाम्पत्य जीवन का आधार ही सप्तम भाव के शुभ होने पर निर्भर करता है। इस भाव में मेष का सूर्य हो तो उच्च का होने से उसका जीवन साथी प्रभावशाली होगा, लेकिन स्वयं के लिए ठीक नहीं रहता, स्वास्थ्य में गड़बड़ी का कारण बनता है। सूर्य वृषभ का हो तो लग्न पर मित्र दृष्टि पड़ने से स्वयं के लिए ठीक रहेगा लेकिन पत्नी या पति के लिए कष्टकारी रहेगा। वैवाहिक जीवन में खटास का भी करण बन सकता है।मिथुन का सूर्य मित्र राशि का होने से उसका जीवन साथी बुद्धिमान होगा। कर्क का सूर्य समराशि का होने से मिले-जुले परिणाम देगा। सिंह का सूर्य स्वराशिस्थ होने से दाम्पत्य जीवन ठीक रहेगा, लेकिन लग्न पर शत्रु दृष्टि पड़ने से स्वास्थ्य पर विपरीत असर डालेगा। कन्या का सूर्य बुध की राशि में होकर षष्टेश होने से वैवाहिक जीनव में कुछ न कुछ गड़बड़ी का करण बनेगा। तुला का सूर्य सप्तम में नीच का होने से उस जातक के जीवन साथी के मामलों में ठीक नहीं रहता। संबंध विच्छेद जैसी नौबत आ सकती है या वो विवाह नहीं करता।
वृश्चिक का सूर्य मित्र मंगल की राशि में होने से व मंगल के शुभ होने से दाम्पत्य जीवन ठीक रहता है। पारिवारिक वातावरण भी सुखद कहा जा सकता है। धनु का सूर्य होने पर उस जातक के मित्र अधिक रहते हैं व अपनी साली या देवर से संबंध बनते हैं। यदि गुरु साथ हो तो यह बात सही भी रहती है।
मकर का सूर्य हो तो दाम्पत्य जीवन में शत्रुता रहती है। कुंभ का सूर्य भी स्वयं के लिए ठीक रहता है जबकी वैवाहिक जीवन के लिए ठीक नहीं रहता। मीन का सूर्य उसके जीवन साथी के लिए उत्तम रहता है। स्वयं के लिए भी ठीक रहेगा।
सूर्य के अशुभ फल मिलते हों तो-
- एक ताँबे का चौकोर पतरा लेकर रविवार के दिन सुनसान जगह पर गाड़ दें।
- काली गाय को चारा डालें।
- पानी पीकर घर से निकलें।
- रात्रि के समय सब कार्य पूर्ण होने के बाद चूल्हे की आग को दूध के छींटे देकर बुझाएँ।
- अपने जीवन साथी से सद्व्यवहार करें।
इस प्रकार अशुभ सूर्य के प्रभाव से बचा जा सकता है।