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जानें मंत्र-तंत्र के राज

मंत्र साधना में शुभ समय का रखें ध्यान

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पं. सुरेन्द्र बिल्लौरे

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मंत्र शब्द का अर्थ असीमित है। वैदिक ऋचाओं के प्रत्येक छन्द भी मंत्र कहे जाते हैं। तथा देवी-देवताओं की स्तुतियों व यज्ञ हवन में निश्चित किए गए शब्द समूहों को भी मंत्र कहा जाता है। तंत्र शास्त्र में मंत्र का अर्थ भिन्न है। तंत्र शास्त्रानुसार मंत्र उसे कहते हैं जो शब्द पद या पद समूह जिस देवता या शक्ति को प्रकट करता है वह उस देवता या शक्ति का मंत्र कहा जाता है।

विद्वानों द्वारा मंत्र की परिभाषाएँ निम्न प्रकार भी की गई हैं।

1. धर्म, कर्म और मोक्ष की प्राप्ति हेतु प्रेरणा देने वाली शक्ति को मंत्र कहते हैं।

2. देवता के सूक्ष्म शरीर को या इष्टदेव की कृपा को मंत्र कहते हैं। (तंत्रानुसार)

3. दिव्य-शक्तियों की कृपा को प्राप्त करने में उपयोगी शब्द शक्ति को मंत्र कहते हैं।

4. अदृश्य गुप्त शक्ति को जागृत करके अपने अनुकूल बनाने वाली विधा को मंत्र कहते हैं। (तंत्रानुसार)

5. इस प्रकार गुप्त शक्ति को विकसित करने वाली विधा को मंत्र कहते हैं।

मंत्र साधना के समय

मंत्र साधना के लिए निम्नलिखित विशेष समय, माह, तिथि एवं नक्षत्र का ध्यान रखना चाहिए।

1. उत्तम माह - साधना हेतु कार्तिक, अश्विन, वैशाख माघ, मार्गशीर्ष, फाल्गुन एवं श्रावण मास उत्तम होता है।

2. उत्तम तिथि - मंत्र जाप हेतु पूर्णिमा़, पंचमी, द्वितीया, सप्तमी, दशमी एवं ‍त्रयोदशी तिथि उत्तम होती है।

3. उत्तम पक्ष - शुक्ल पक्ष में शुभ चंद्र व शुभ दिन देखकर मंत्र जाप करना चाहिए।

4. शुभ दिन - रविवार, शुक्रवार, बुधवार एवं गुरुवार मंत्र साधना के लिए उत्तम होते हैं।

5. उत्तम नक्षत्र - पुनर्वसु, हस्त, तीनों उत्तरा, श्रवण रेवती, अनुराधा एवं रोहिणी ‍नक्षत्र मंत्र सिद्धि हेतु उत्तम होते हैं।

मंत्र साधना में साधन आसन एवं माला की विशेषताएँ

आसन - मंत्र जाप के समय कुशासन, मृग चर्म, बाघम्बर और ऊन का बना आसन उत्तम होता है।

माला - रुद्राक्ष, जयन्तीफल, तुलसी, स्फटिक, हाथीदाँत, लाल मूँगा, चंदन एवं कमल की माला से जाप सिद्ध होते हैं। रुद्राक्ष की माला सर्वश्रेष्ठ होती है।

।।इति शुभम।

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