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पूजन हेतु 'श्रीयंत्र' निर्माण

श्रीयंत्र निर्माण एवं प्राण-प्रतिष्ठा

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पूजन हेतु श्रीयंत्र सोना, चांदी, तांबे का उत्तम, मध्यम और निम्न माना जाता है। ऐसा ही इसका फल भी मिलता है। तांबे के श्रीयंत्र की पूजा से सौ गुणा, चांदी पर कोटि गुणा, सोना एवं स्फटिक पर अनंत गुणा फल प्राप्त होता है।

धातु का यंत्र एक तोले से सात तोले तक या इसके ऊपर का बनाया जा सकता है, किंतु स्फटिक पर बने यंत्र के वजन का कोई नियम नहीं है।

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रुद्र यामल तंत्र का कथन है कि स्फटिक, मूंगा, नीलम, वैदूर्यमणि मरकत मणि पर बने श्रीयंत्र के पूजन का अकथनीय फल एवं गुण है।

यंत्र की प्राण-प्रतिष्ठा चर, अचर, धारण करने योग्य तीन प्रकार से होती है। अचर प्राण-प्रतिष्ठा किया हुआ यंत्र उठाया नहीं जाता है। एक जगह स्थापित रहता है। चर प्राण प्रतिष्ठित यंत्र पवित्रता से स्‍थानांतर किया जा सकता है। धारण करने वाला प्राण-‍प्रतिष्ठा किया हुआ यंत्र केवल पूजन के समय उतारा जाता है और फिर सदैव धारण किया जाता है।

बनावट की दृष्टि से भी यह यंत्र तीन प्रकार का होता है- 'भूपृष्ठ', 'कच्‍छप पृष्ठ' और 'मेरु-पृष्ठ'। जो यंत्र समतल होते हैं उन्हें भूपृष्ठ कहा जाता है। जो कछुए की पीठ की तरह उभड़े होते हैं उन्हें कच्छप पृष्ठ कहते हैं। जो सुमेर पर्वत की तरह ऊपर की ओर उठा रहता है उसे मेरु पृष्ठ कहते हैं।

- योगरमे


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