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बुद्धि के देवता बुध दिलाते हैं अपार सफलता...

हमें फॉलो करें बुद्धि के देवता बुध दिलाते हैं अपार सफलता...
- आचार्संज

बुद्धि के देवता बुध ग्रह का दिन है बुधवार। बुध राशि के जातक बहुत सुंदर होते हैं। बुध को नवग्रहों में राजकुमार की उपाधि प्राप्त है। उनका शरीर अति सुंदर और छरहरा है। वह ऊंचे कद गोरे रंग के हैं। उनके सुंदर बाल आकर्षक हैं वह मधुरभाषी हैं।

बुध, बुद्धि, वाणी, अभिव्यक्ति, शिक्षा, शिक्षण, गणित, तर्क, यांत्रिकी ज्योतिष, लेखाकार, आयुर्वेदिक ज्ञान, लेखन, प्रकाशन, नृत्य-नाटक और निजी व्यवसाय का कारक है। बुध मामा और मातृकुल के संबंधियों का भी कारक है।

ज्योतिष के अनुसार बुध राशि के जातक हास्य-विनोद प्रिय होते हैं। तीव्र बुद्धि जातकों को प्रतिभाशाली बनाती है और वह हर विषय पर तर्क-वितर्क कर सकते हैं।

आगे पढ़ें कैसे होते है बुध राशि के जातक


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बुध राशि के जातक अंवेषक और कल्पनाशील होते हैं। बुध से प्रभावित जातक हंसमुख, काव्य, संगीत और खेल में रुचि रखने वाले, शिक्षित, लेखन प्रतिभावान, गणितज्ञ, वाणिज्य में पटु और व्यापारी होते हैं। बधुआ वाचाल और अच्छे वक्ता होते हैं। बुध राशि के जातकों के लिए सेल्समैन और मार्केटिंग में अच्छे अवसर बनते हैं।

बुध मस्तिष्क, जिह्वा, स्नायु तंत्र, कंठ-ग्रंथि, त्वचा, वाक-शक्ति, गर्दन आदि का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए यह स्मरण शक्ति के क्षय, सिर दर्द, त्वचा के रोग, दौरे, चेचक, पित्त, कफ और वायु प्रकृति के रोग, गूंगापन, उन्माद जैसे विभिन्न रोगों का कारक है।

बुध ग्रह की शक्ति के लिए प्रत्येक अमावस्या को व्रत करना चाहिए तथा पन्ना धारण करना चाहिए। ब्राह्मण को हाथी दांत, हरा वस्त्र, मूंगा, पन्ना, स्वर्ण, कपूर, शस्त्र, खट्टे फल तथा घृत दान करने चाहिए।

नवग्रह मंडल में इनकी पूजा ईशान कोण में की जाती है। इनका प्रतीक बाण तथा रंग हरा है। जिन लोगों की कुंडली में बुध अशुभ फल दे रहा है, वे इस दिन साबूत मूंग न खाएं और इसका दान करें। मंगलवार की रात को हरे मूंग भिगोकर रखें और बुधवार की सुबह यह मूंग गाय को खिलाएं।

बुध के मंत्


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बुध मंत्र - इनके जप का बीज मंत्र 'ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः' तथा सामान्य मंत्र 'बुं बुधाय नमः' है। बुध मंत्र का जाप 14 बार किया जाता है।

प्रियंगुकलिकाश्यामं रूपेणाप्रतिमं बुधम।
सौम्यं सौम्य गुणोपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहम।।

ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय् नम: ।

ॐ त्रैलोक्य मोहनाय विद्महे स्मरजन काय धीमहि तन्नो विणु: प्रचोदयात्।

(समाप्त)


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