* पढ़ें शनिदेव को प्रिय राजा दशरथकृत शनि स्तोत्र
राजा दशरथकृत शनि स्तोत्र इस प्रकार है-
कोणस्थ: पिंगलो बभ्रु कृष्णो रौद्राऽन्तको यम:।
सौरि: शनैश्चरो मंद: पिप्लादेन संस्तुत:।।
रुद्राक्ष की माला से 10 हजार की संख्या में इस स्तोत्र का जप करें, जप का दशांश हवन करें जिसकी सामग्री काले तिल, शमीपत्र, घी, नीलकमल, खीर और चीनी मिलाकर बनाई जाए। हवन की समाप्ति पर 10 ब्राह्मणों को घी तथा दूध से निर्मित पदार्थों का भोजन कराएं। अकाल मृत्यु के नाश व कष्टों के परिहार के लिए शनि प्रतिमा का उनकी प्रिय वस्तुओं के साथ दान करें।
स्वर्ण, लौह धातु, नीलम रत्न, उड़द, तेल, कम्बल आदि काले वस्त्र, नीले फूल, भैंस या दूध देने वाली गाय (बछड़े सहित) शनि प्रतिमा का दान निम्न मंत्र के साथ ब्राह्मण को दें।
शनैश्चरप्रीतिकरंदानं पीड़ा-निवारकम्।
सर्वापत्तिति विनाशाय द्विजाग्रयाय ददाम्यहम्।।
यदि मरणासन्न व्यक्ति हेतु दान करना हो तो दान की उपरोक्त वस्तुओं में नमक, छाता व चमड़े के जूते भी शामिल करें। इसके फलस्वरूप मरने वाले जीव को यम यातना (नरक) का कष्ट नहीं भोगना पड़ता है।
एतानि दश नामानि प्रातरुत्थाय य: पठेत्।
शनैश्चरकृत पीड़ा न कदाचिदभ्विष्यति।।
जो दशरथकृत शनिदेव के उपरोक्त 10 नामों का 10 बार जप प्रतिदिन प्रात:काल करता है, उसे शनिदेव भविष्य में कभी भी कष्ट नहीं देते हैं तथा अन्य ग्रहों के कष्टों को भी दूर कर देते हैं।