-पं. रामप्रसाद मालवीय
कहते हैं कि मंत्र से किसी देवी या देवता को साधा जाता है, मंत्र से किसी भूत या पिशाच को भी साधा जाता है और मंत्र से किसी यक्षिणी और यक्ष को भी साधा जाता है। 'मंत्र साधना' भौतिक बाधाओं का आध्यात्मिक उपचार है। मंत्र के द्वारा हम खुद के मन या मस्तिष्क को बुरे विचारों से दूर रखकर उसे नए और अच्छे विचारों में बदल सकते हैं। आओ जानते हैं साबर मंत्र के बारे में।
मुख्यत: 3 प्रकार के मंत्र होते हैं- 1.वैदिक मंत्र, 2.तांत्रिक मंत्र और 3.शाबर मंत्र। इसी तरह मंत्र जप के तीन भेद हैं- 1.वाचिक जप, 2. मानस जप और 3. उपाशु जप।
साबर मंत्र के जनक : कहते हैं कि साबर मंत्रों के जनक गुरु मत्स्येंद्र नाथ और उनके शिष्य गुरु गोरखनाथ हैं। इन मंत्रों को शैवपंथ की नाथ परंपरा के अलावा आदिवासी, बंजारा, सपेरा, जादूगर और भारत की अन्य जनजातियों के मंत्र माने जाते हैं। यह भी कहा जाता है कि असल में इन शाबर मंत्रों में वज्रयान की वज्रडाकिनी अथवा वज्रतारा आदि से भी निचली तामसिक देवों की प्रार्थना की जाती है, उनकी आन पर ही काम होता है।
साबर मंत्र की भाषा : साबर मंत्र को प्राकृत मंत्र भी कहते हैं। अर्थात यह संस्कृत नहीं बल्कि प्राकृत भाषा की आम बोलचाल की भाषा के मंत्र है। हालांकि कई साबर मंत्रों में संस्कृत, हिंदी, मलयालम, कन्नड़, गुजराती या तमिल भाषाओं का मिश्रित रूप या फिर शुद्ध क्षेत्रीय भाषाओं की ग्राम्य शैली और कल्पना का समावेश भी दृष्टिगोचर होता है। सामान्यतया ‘शाबर-मंत्र’ हिंदी में ही मिलते हैं लेकिन कुछ मंत्रों में इस्लाम के प्रभाव के चलते ऊर्दू का भी समावेश देखा गया है और सुलेमान मंत्रों का भी अविष्कार किया गया है।
साबर मंत्रों के प्रकार : साबर मंत्रों में ‘आन और शाप’ तथा ‘श्रद्धा और धमकी’ दोनों का प्रयोग किया जाता है। आन माने सौगन्ध। दूसरा यह कि मंत्र का प्रयोगकर्ता यदि भक्त है तो वह देवी या देवताओं को धमकी देकर भी काम करवा सकता है अन्यथा श्रद्धा से तो ही हो जाएगा।
विशेष बात यह है कि उसकी यह ‘आन’ भी फलदायी होती है। आन माने सौगन्ध। अभी वह युग गए अधिक समय नहीं बीता है, जब सौगन्ध का प्रभाव आश्चर्यजनक व अमोघ हुआ करता था। ‘शाबर’ मंत्रों में जिन देवी-देवताओं की ‘शपथ’ दिलायी जाती है, वे आज भी वैसे ही हैं।
कैसे होते हैं देवता प्रसन्न : शाबर मंत्रों में जिस प्रकार एक अबोध बालक अपने माता-पिता से गुस्से में आकर चाहे जो कुछ बोल देता है, हठ कर बैठता है बस उसी प्रकार से कोई भक्त अपने देवी या देवता से हठ करता है। कहते हैं कि ये देव व्यक्ति की भक्ति और उसका निष्कपट स्वभाव देखते हैं बस इसी से वे प्रसन्न हो जाते हैं।
जिस प्रकार अल्पज्ञ, अज्ञानी, अबोध बालक की कुटिलता व अभद्रता पर उसके माता-पिता अपने वात्सल्य, प्रेम व निर्मलता के कारण कोई ध्यान नहीं देते, ठीक उसी प्रकार बाल सुलभ सरलता, आत्मीयता और विश्वास के आधार पर निष्कपट भाव से शाबर मंत्रों की साधना करने वाला परम लक्ष्य सिद्धि को प्राप्त कर लेता है।
मंत्रों के कार्य : प्रत्येक शाबर मंत्र अपने आप में पूर्ण होता है। शास्त्रों से परे शाबर मंत्र अपने लाभ व उपयोगिता की दृष्टि से विशेष महत्व के हैं। शाबर मंत्र से ज्ञान या मोक्ष नहीं बल्की सांसारिक कार्य और सिद्धि प्राप्त की जा सकती है। ‘शाबर-मंत्र’ तुरंत, विश्वसनीय, अच्छा और पूरा काम करते हैं। इसमें किसी भी प्रकार से तर्पन, न्यास, अनुष्ठान, हवन आदि कार्य नहीं किए जाते हैं।
इस साधना को किसी भी जाति, वर्ण, आयु का पुरुष या स्त्री कर सकते हैं। इन मंत्रों की साधना में गुरु की इतनी आवश्यकता नहीं रहती क्योंकि इनके प्रवर्तक स्वयंसिद्ध-साधक रहे हैं। फिर भी इन मंत्रों को सिद्ध करने के लिए कोई अच्छा साधक या गुरु मिल जाए तो सोने पे सुहागा सिद्ध समझो। उसमें होने वाली किसी भी परेशानी से आसानी से बचा जा सकता है। षट्कर्मों की साधना तो बिना गुरु के न करें।
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)