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सर्वत्र विजय, धन, काम, सुख और आरोग्यता देते हैं शनिदेव, ऐसे करें प्रसन्न

हमें फॉलो करें सर्वत्र विजय, धन, काम, सुख और आरोग्यता देते हैं शनिदेव, ऐसे करें प्रसन्न

आचार्य डॉ. संजय

* राजसुख के दाता हैं शनिदेव, जानिए शनि की महिमा...
 
'तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्' शनिदेव प्रसन्न (संतुष्ट) होने पर राज्य दे देते हैं और रुष्ट होने पर उसे छीन लेते हैं। शनिदेव के प्रसन्न होने पर व्यक्ति को सर्वत्र विजय, धन, काम, सुख और आरोग्यता की प्राप्ति होती है।
 
शनिदेव की कृपा प्राप्ति व कष्टमुक्ति का अचूक उपाय : शनि स्तोत्र का पाठ, शनि प्रतिमा का पूजन व दान करें। जिनको शनिदेव की कृपा प्राप्त करनी हो उन्हें चाहिए कि वे शनिदेव की एक लोहे की प्रतिमा बनवाएं जिसकी 4 भुजाएं हों- उनमें धनुष, त्रिशूल, बाण और वर मुद्रा अंकित कराएं।
 
पीड़ा परिहार के लिए स्त्री/पुरुष शनिवार को व्रत रखकर, तैलाभ्यंग स्नान करके शनि पूजा के लिए बैठें। शनिदेव की लोहे की मूर्ति को काले तिल के ढेर के ऊपर स्थापित करें। तिल के तेल या सरसों के तेल से शनिदेव की मूर्ति का अभिषेक-स्नान करें। मंत्र सहित विधिपूर्वक पूजन करते हुए कुमकुम से तिलक करें। नीले पुष्प, काली तुलसी, शमी के पत्ते, उड़द, गुड़ आदि अर्पित करें।
 
शनि पूजन, जप व दान का संकल्प निम्न प्रकार से लें- 
 
हाथ में जल लेकर कहें- मम जन्मराशे: सकाशात् अनिष्टस्थानेस्थितशने: पीड़ा परिहार्थं एकादशस्थानवत् शुभफलप्राप्त्यर्थं लोहप्रतिमायां शनैश्चपूजनं तत्प्रीतिकरं स्तोत्र जपं एवं दानंच करिष्ये।। (पृथ्वी पर जल छोड़ें)।
 
अथ: ध्यानम्-
 
अहो सौराष्ट्रसंजात छायापुत्र चतुर्भुज।
कृष्णवर्णार्कगोत्रीय बाणहस्त धनुर्धर।।
त्रिशूलिश्च समागच्छ वरदो गृध्रवाहन।
प्रजापतेतु संपूज्य: सरोजे पश्चिमेदले।।
 
ध्यान के पश्चात उक्त प्रकार से श्री शनिदेव का विधिवत पूजन करें। शनिदेव की प्रतिमा पूजन के बाद राजा दशरथ कृत शनि स्तोत्र का 10 हजार की संख्या में जप करें।
 
श्री शनि स्तोत्र
 
ॐ कोणस्थ: पिंगलोबभ्रु कृष्णो रौद्रान्तको यम:।
सौरि: शनैश्चरो मन्द: पिप्लाश्रय संस्थित:।।
 
जो व्यक्ति प्रतिदिन अथवा प्रति शनिवार को पीपल वृक्ष पर जल अर्पित करके शनिदेव के उपरोक्त नामों- कोणस्थ, पिंगल, बभु्र, कृष्ण, रौद्रान्तक, यम, सौरि, शनैश्चर, मन्द, पिप्लाश्रय संस्थित को पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर जपेगा उसको शनि की पीड़ा कभी नहीं होगी।
 
एक बार शनिदेव पिप्लाद मुनि आश्रित हो गए थे तथा पिप्लाद मुनि ने शनिदेव को अंतरिक्ष में स्थापित किया था इसलिए शनिदेव का दसवां नाम 'पिप्लाश्रय संस्थित' पड़ा है।
 
महर्षि पिप्लाद मुनि ने भगवान शिव की प्रेरणा से शनिदेव की स्तुति की थी, जो इस प्रकार है-
 
नमस्ते कोणसंस्थाय पिंगलाय नमोस्तुते।
नमस्ते बभ्रुरुपाय कृष्णायच नमोस्तुते।। 
नमस्ते रोद्रदेहाय नमस्ते चांतकाय च।
नमस्ते यमसंज्ञाय नमस्ते सौरये विभो।। 
नमस्ते मंदसंज्ञाय शनैश्चर नमोस्तुते।
प्रसादं कुरु देवेश दीनस्य प्रणतस्य च।।
 
इस नमस्कार मंत्र का उच्चारण करते हुए शनिदेव का तेलाभिषेक करें (तेल चढ़ाएं) व कुमकुम से तिलक करें। काले उड़द, काले तिल, नीले फूल व सिक्का (पैसा) चढ़ाएं। गुड़ का भोग लगाएं।

शनि के इन स्तुति मंत्रों का शनिवार को प्रात:काल शनि की होरा में अथवा प्रतिदिन 10 बार, 1 माला, 10 माला अथवा 10 हजार की संख्या में जप करने से शनि पीड़ा से मुक्ति मिलती है।


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