राम मंदिर आंदोलन, 2 नवंबर और 6 दिसंबर की वो अहम घटना जब हिल गया था पूरा देश
कोठारी बंधुओं और गोधरा का बलिदान, नहीं भूलेगा हिंदुस्तान
History of Ram Mandir Movement: राम मंदिर आंदोलन के अंतिम चरणों में 3 तारीखों का बहुत महत्व है, जबकि देश की राजनीतिक दशा और दिशा बदल गई थी। यह तीन तारीखें हैं 2 नंवबर 1990 और 6 दिसंबर 1992। इसके बाद 27 फरवरी 2002 का दिन। इन तीनों ही तारीखों ने देश में हलचल मचा दी थी। जब भी राम मंदिर आंदोलन की बात होगी तब तब इन तारीखों याद किया जाएगा।
2 नवंबर 1990 रामभक्तों का नरसंहार:-
30 अक्टूबर 1990 को हजारों रामभक्तों ने मुख्यमंत्री मुलायमसिंह यादव द्वारा खड़ी की गईं अनेक बाधाओं को पार कर अयोध्या में प्रवेश किया और विवादित ढांचे के ऊपर भगवा ध्वज फहरा दिया। लेकिन 2 नवंबर 1990 को मुलायम सिंह यादव ने कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दिया जिसमें सैकड़ों रामभक्तों ने अपने जीवन की आहुतियां दीं। सरयू तट रामभक्तों की लाशों से पट गया था। इस नृसंह हत्याकांड के बाद अप्रैल 1991 को उत्तरप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायमसिंह यादव को इस्तीफा देना पड़ा। उस समय शरद कुमार और राजकुमार कोठारी बंधुओं के बलिदान की चर्चा खूब रही। दोनों निहत्थों की निर्मम तरीके से हत्या कर दी गई। इन्होंने ही बाबरी ढांचे पर पहली बार भगवा ध्वज फहराया था।
2 नवंबर को ओम श्री भारती के यहां कोठारी बंधुओं समेत 125 कारसेवक रुके थे। अशोक सिंघल भी वहीं छुपे हुए थे। कारसेवकों का गुनाह बस यह था कि उन्होंने तत्कालीन विवादित ढांचे पर जय श्री राम की ध्वजा को लहराया था। जिसके बाद यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया था। इसके बाद कारसेवकों को अंधाधुंध फायरिंग की जाने लगी। कोठारी बंधुओं को घर में से खिंचकर लाए और उन्हें सरेआम गोलियों से भून दिया गया।
6 नवंबर 1992 रामभक्तों का क्रोध कोई नहीं संभाल पाया:- 2 नवंबर 1990 को हुए गोलीकांड के बाद प्रदेश में सरकार बदल गई थी। अब रामभक्तों का क्रोध सातवें आसमान पर था। आर या पार की लड़ाई लड़ने के लिए सिर पर कफन बांधकर पूरे देश के घर-घर से कारसेवक अयोध्या की ओर निकल पड़े थे।
लाखों रामभक्त 6 दिसंबर को कारसेवा हेतु अयोध्या पहुंच गए थे। करीब 10 लाख से ज्यादा लोग तो अयोध्या पहुंच गए थे और इससे 4 गुना ज्यादा लोग अयोध्या के आसपास डेरा डाले हुए थे। पुलिस और बीएसएफ के हाथपांव फूलने लगे थे। सभी लाचार खड़े खड़े बस भीड़ को देख रहे थे। 6 दिसंबर 1992 को जो हुआ उसे पूरी दुनिया ने देखा।
अयोध्या में पैर रखने की जगह नहीं थी। हर तरफ कारसेवक थे। साध्वी ऋतंभरा, लालकृष्ण आठवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती सहित कई बड़े नेताओं का शांतिपूर्वक भाषण चल ही रहा था तभी सभी ने देखा की हजारों की संख्या में लोग ढांचे पर चढ़ गए हैं और देखते ही देखते कुछ ही घंटों में बाबरी ढांचा ढहा दिया गया जिसके परिणामस्वरूप देशभर में दंगे हुए। इसी मसले पर विश्व हिन्दू परिषद के नेता अशोक सिंघल, भाजपा नेता आडवाणी, यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, मुरली मनोहर जोशी और मध्यप्रदेश की पूर्व सीएम उमा भारती, साध्वी ऋतंभरा सहित 13 नेताओं के खिलाफ आपराधिक साजिश का मुकदमा चलाने की मांग की गई थी। 6 दिसंबर 1992 को जब विवादित ढांचा गिराया गया, उस समय राज्य में कल्याण सिंह की सरकार थी।
उस दिन सुबह करीब 10.30 बजे हजारों-लाखों की संख्या में कारसेवक पहुंचने लगे। दोपहर में 12 बजे के करीब कारसेवकों का एक बड़ा जत्था मस्जिद की दीवार पर चढ़ने लगता है। लाखों की भीड़ को संभालना सभी के लिए मुश्किल हो गया। दोपहर के 3 बजकर 40 मिनट पर पहला गुंबद भीड़ ने तोड़ दिया और फिर 5 बजने में जब 5 मिनट का वक्त बाकी था तब तक पूरे का पूरा विवादित ढांचा जमींदोज हो चुका था। भीड़ ने उसी जगह पूजा-अर्चना की और 'राम शिला' की स्थापना कर दी। पुलिस के आला अधिकारी मामले की गंभीरता को समझ रहे थे। गुंबद के आसपास मौजूद कारसेवकों को रोकने की हिम्मत किसी में नहीं थी। मुख्यमंत्री कल्याण सिंह का साफ आदेश था कि कारसेवकों पर गोली नहीं चलेगी।
27 फरवरी 2002 : गोधरा रेलवे स्टेशन के पास साबरमती ट्रेन के एस-6 कोच में मुस्लिमों द्वारा आग लगाए जाने के बाद 59 कारसेवकों हिन्दुओ की मौत हो गई। इस मामले में 1500 लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई। 28 फरवरी 2002 को गुजरात के कई इलाकों में दंगा भड़का जिसमें 1200 से अधिक लोग मारे गए।