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पेचिश या डीसेंट्री

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हमें फॉलो करें पेचिश डीसेंट्री
शरीर को कमजोर और स्वास्थ्य को नष्ट करने वाली एक बीमारी है पेचिश यानी प्रवाहिका, जिसे मेडिकल भाषा में डीसेण्ट्री कहते हैं। यह दो प्रकार की होती है- बैसीलरी डीसेण्ट्री और एमीबिक डीसेण्ट्री। यहां दोनों प्रकार की प्रवाहिका की जानकारी दी जा रही है।

अपच और अजीर्ण की स्थिति जल्दी ठीक न की जाए तो कठोर कब्ज की स्थिति पैदा होती है या पतले दस्त लग जाते हैं। पाचन ठीक न हो तो मल में चिकनापन आ जाता है, जिसे आंव (आम) कहते हैं और थोड़ी-थोड़ी मात्रा में बार-बार मल निकलता है।

ऐसा मल निकलते समय पेट में मरोड़ उठती है और मल विर्सजन करते समय कण्ठ से कराह भी निकलती है। अतिसार यानी डायरिया और प्रवाहिका में यह फर्क होता है कि अतिसार में जलीय धातुओं का सरण होता है, जबकि प्रवाहिका में कफयुक्त मल निकलता है। प्रवाहिका में विकृति मुख्य रूप से बड़ी आंत में होती है, मल में कफ की मात्रा ज्यादा होती है, साथ ही वायु का भी प्रकोप रहता है।

बैसीलरी डीसेण्ट्री : यह रोग यदि जल्दी ठीक न किया जा सके तो बहुत लम्बा, कठिन साध्य और कभी-कभी असाध्य स्थिति में पहुंच जाता है। इसका आक्रमण प्रायः अकस्मात होता है और इसके साथ ज्वर भी हो सकता है। जांच करने पर इसके कीटाणु तीन प्रकार के पाए गए हैं-

1. शिगा वर्ग 2. फ्लेक्सनर वर्ग 3. सोन वर्ग

इसके कीटाणु मुख मार्ग से शरीर में प्रवेश करते हैं और आंतों में पहुंचकर वहां अड्डा जमा लेते हैं। इस व्याधि का प्रकोप ग्रीष्म और वर्षा काल में विशेष रूप से होता है।

लक्षण : उदर में मरोड़ और दर्द होना, बार-बार दस्त होना, दस्त होने के बाद थोड़ी देर में फिर हाजत होना, मुंह सूखना, प्यास लगना, जीभ पर मैल की परत जमना, दस्त होते समय मरोड़ होना, मल के साथ रक्त आना, नाड़ी कभी मन्द कभी तेज, बुखार की हरारत आदि लक्षण शुरू में ही प्रकट हो जाते हैं।

कभी-कभी ऐसा भी होता है कि अतिसार, प्रवाहिका और विसूचिका तीनों के मिले-जुले लक्षण प्रकट होने से सही निदान करना कठिन हो जाता है। यदि सही इलाज न हो सके तो यह रोग 2 से 7 दिन में उग्र रूप धारण कर लेता है अतः इन लक्षणों को देखते ही तुरन्त चिकित्सा कराना बहुत जरूरी होता है।

एमीबिक डीसेण्ट्री : यह रोग 'एंटअमीबा हिस्टोलिटिका' नामक अमीबा (जीवाणु) के बड़ी आंत में पहुंचने और वहां घाव कर देने से होता है। इस घाव से रक्त निकलता है जो आंव के साथ मल मार्ग से, मरोड़ के साथ निकलता है। इस जीवाणु (अमीबा) से यह रोग होता है, इसीलिए इसे एमीबिक डीसेण्ट्री कहा जाता है।

यह दीर्घकालीन जीर्ण रोग होता है और प्रायः युवावस्था में होता है। इसका आक्रमण आकस्मिक नहीं, बल्कि धीरे-धीरे होता है। इस रोग में प्रायः ज्वर नहीं होता है और इसमें विषाक्तता एवं घातकता नहीं होती। यह रोग दवा, इलाज से दब जाता है, ठीक हो जाता है और जरासी बदपरहेजी होने पर फिर प्रकट हो जता है। इस तरह वर्षों तक पीछा नहीं छोड़ता।

लक्षण : इसमें अतिसार की अपेक्षा कोष्ठबद्धता की स्थिति ज्यादातर पाई जाती है। कभी-कभी पतला दस्त भी होता है और दस्तों की संख्या घटती-बढ़ती रहती है। दस्त में आंव और खून आता रहता है, शरीर में आलस्य बना रहता है और रोगी दुबला होने लगता है।

मल में एंटअमीबा हिस्टोलिटिका का मिलना और यकृत में विकार होना इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं।

तीव्र प्रवाहिका : तेज मरोड़ व दर्द के साथ दिन में कई बार दस्त होता है, जिसमें आंव और खून भी होता है। शौच आने से पहले और शौच करने के बाद देर तक पेट में मरोड़ होती रहती है, दर्द होता है, पेट के दोनों तरफ दबाने से कष्ट होता है। इसे एक्यूट (तीव्र) डीसेण्ट्री कहते हैं।

जीर्ण प्रवाहिका : यह व्याधि लम्बे समय तक बनी रहे दिन में 4-5 बार दस्त जाना पड़े फिर भी पेट साफ व हलका न हो, मल चिकना, ढीला, थोड़ी मात्रा में और बदबूदार हो, शरीर दुबला होता जाए, कमजोरी, आलस्य, तबीयत में गिरावट, अरुचि और निराशा आदि का अनुभव बना रहे, दूध व चिकने पदार्थ हजम न हों, इसे जीर्ण प्रवाहिका कहते हैं।

सुप्तावस्था : चिकित्सा से लाभ होने पर या खुद ही थोड़े समय के लिए व्याधि के लक्षण दब जाएं और रोगी अपने आपको व्याधिमुक्त व स्वस्थ अनुभव करे, बाकी उदर में आद्यमान, अग्निमांद्य और कब्ज की स्थिति बनी रहे तो यह पूर्ण निरोग अवस्था नहीं होती, बल्कि सुप्तावस्था होती है यानी रोग गया नहीं, सोया हुआ है।

निदान : इस व्याधि का संक्षिप्त निदान यही है कि दूषित खाद्य एवं पेय पदार्थों से बचें। अनियमित, वक्त-बेवक्त व गरिष्ठ भोजन न करें। अपच और अजीर्ण की स्थिति हो तो तुरंत इलाज कराएं। सबसे अच्छा तो यह है कि जिन कारणों से रोग उत्पन्न हुआ, उन कारणों का त्याग कर देना चिकित्सा का पहला कदम है।

चिकित्सा : कच्चा पानी पीना बन्द कर, हमेशा उबालकर ठण्डा किया हुआ पानी पीना चाहिए। कहीं जाएं तो केटली (वॉटर बॉटल) में पानी साथ ले जाएं और यही पानी पिएं। बाजार की मिठाइयां, तला हुआ कोई भी व्यंजन न खाएं। पत्तीदार शाक का सेवन करें। गर्म मसाला, मिर्च, शकर, घी, दूध, चाय का अति सेवन न करें।

* रात में, एक गिलास दूध में एक चम्मच पिसी सोंठ डालकर उबालें। जब कुनकुना गर्म रहे तब इसमें 2 बड़े चम्मच अरण्डी का तेल (केस्टर ऑइल) डालकर सोने से पहले पी जाएं। यह प्रयोग 3-4 दिन तक लगातार करें, ताकि पेट साफ हो जाए।

* चने के बराबर राल और एक चम्मच शकर मिलाकर दिन में तीन बार पानी के साथ लेने से आराम होता है।
* ताजे जमे हुए दही या ताजे मट्ठे के साथ इसबगोल की भूसी एक-एक बड़ा चम्मच दिन में तीन बार लेने से कुछ दिनों में इस रोग में लाभ हो जाता है।
* कच्चे बेल का गूदा और ग़ुड समभाग मिलाकर खाने और ऊपर से ताजे दही में थोड़ा पानी डालकर फेंट लगाकर पीने से एमीबिक डीसेण्ट्री में लाभ होता है।
* सफेद राल 5 ग्राम, मोचरस 10 ग्राम और गुड़ 20 ग्राम, तीनों को मिलाकर चने बराबर गोलियां बना लें। छाछ के साथ सुबह-शाम 2-2 गोली खाने से लाभ होता है।
* अरण्ड या बड़ के पत्तों को हलका सा गर्म करके इन पर जरा सा शुद्ध घी या खाने का तेल लगाकर पत्ते पर फैलाकर रख दें और कपड़ा लपेटकर बांध दें। इसके बाद कपड़ा गर्म कर थोड़ी देर सेंक दें। इससे पेट दर्द दूर होता है।
* कूड़े की छाल या इन्द्रजौ, अतीस, बेल गिरि, नेत्रबाला और नागरमोथा, इन सबको 20-20 ग्राम लेकर महीन चूर्ण कर मिला लें। इसे 10 ग्राम मात्रा में ले कर 4 कप पानी में डालकर उबालें। जब एक कप पानी बचे तब उतार कर छान लें और ठण्डा कर लें। इसे आधा सुबह और आधा शाम को पिएं। लाभ होने तक सेवन करते रहें।
* बेल का शर्बत इस रोग को दूर करने में बहुत गुणकारी सिद्ध होता है। पके हुए बेल का गूदा दो लीटर पानी में डालकर उबालें। जब पानी एक लीटर बचे, तब मसल-छानकर पानी लें और इसमें दो किलो शकर डालकर उबालें और शर्बत बना लें। ठण्डा करके बोतलों में भर लें। इसे 20 से 40 मिली समभाग पानी में घोलकर दिन में 2-3 बार सेवन करना चाहिए।

आयुर्वेदिक चिकित्सा
* कामदुधा रस 10 ग्रा., प्रवाल पंचामृत रस 10 ग्रा., पंचामृत पर्पटी 5 ग्रा. और भुना हुआ जीरा 20 ग्राम, इन सबको मिलाकर 60 पुड़िया बना लें। एक-एक पुड़िया सुबह-शाम शहद से लें। भोजन के बाद आधा कप पानी में कुटजारिष्ट और विडंगारिष्ट 2-2 बड़े चम्मच भर डालकर दोनों वक्त पिएं। अतिसोल वटी 2-2 गोली सुबह, दोपहर और शाम को पानी के साथ लें।

परहेज : तेज मिर्च-मसाले, तले हुए, मैदा व मावा से बने तथा पचने में भारी व्यंजन एवं पदार्थ न खाएं।




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