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एशियाई लेखिकाओं का जमावड़ा

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हमें फॉलो करें भारतीय एशियाई लेखिका
- पीएम तिवारी

BBC
कोलकाता में हाल ही में एशियाई देशों की लेखिकाएँ एक मंच पर आईं और विचार-विमर्श से यही निष्कर्ष निकला कि सीमाओं में बँटे होने के बावजूद ज्यादातर एशियाई देशों में महिलाओं की हालत कमोबेश एक जैसी ही है। सबने स्वीकारा कि प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद एशियाई लेखिकाएँ अपनी लेखनी के जरिए समाज के लिए आदर्शों के नए मानदंड कायम कर रही हैं।

इस सम्मेलन में भारत के अलावा अफगानिस्तान, पाकिस्तान, कंबोडिया, हॉंगकॉंग, नेपाल और भूटान की लेखिकाओं ने हिस्सा लिया।

अफगानिस्तान की डोनिया गोबार का कहना था कि अफगानिस्तान में हालात भले बेहतर नहीं हों, उनकी लेखनी पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। वे कहती हैं, 'रन अवे और अगली फेस ऑफ पावर जैसी कविताओं में मैंने इन समस्याओं का जिक्र किया है।'

भूटान की कुंजांग चोडेन ने बताया कि अपने बच्चों को सामाजिक संस्कृति से अवगत कराने के लिए उन्होंने वर्ष 1980 में कलम उठाई थी। वे कहती हैं कि साहित्य के मामले में भूटान ने भारत से बहुत कुछ सीखा है।

नहीं मिलता महत्व : पाकिस्तान से आई किश्वर नाहिद ने अपना दर्द जताते हुए कहा, 'अब तक एशियाई लेखिकाओं को दुनिया में यूरोपीय लेखिकाओं की तरह महत्व नहीं मिल पाया है। इसके लिए हमें अपनी पुस्तकों को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचाना होगा।'

हांगकांग की सुन एग्नेस लेम, नेपाल की मंजू तिवारी और कंबोडिया की पुटसाता रियांग ने भी अपने लेखन और महिलाओं की हालत के बारे में विस्तार से जानकारी दी।

सम्मेलन के मौके पर एशियाई लेखिकाओं की रचनाओं के संकलन ‘स्पीकिंग फार माइसेल्फः एन्थोलॉजी ऑफ एशियन वुमेंस राइटिंग’ का विमोचन किया गया। पुस्तक का विमोचन विख्यात फिल्मकार मृणाल सेन ने किया।

इस पुस्तक की भूमिका मशहूर लेखिका कपिला वात्स्यायन ने लिखी है। इस पुस्तक का संपादन किया है सुकृता पाल कुमार और मालाश्री लाल ने।

मालाश्री लाल ने कहा कि इस पुस्तक में एशिया की 34 लेखिकाओं की कुल 76 रचनाएं शामिल हैं। इनमें कहानियाँ और कविताएँ भी हैं। इनको उनकी मूल भाषा से अनुदित कर पुस्तक में शामिल किया है।

जड़ों को तलाशने की कोशिश : लाल ने कहा कि संकलन की गई रचनाएँ एशियाई संबंधों की व्याख्या करती हैं। इसमें इस समूचे क्षेत्र की संवेदना है।

वे कहती हैं, 'यह पुस्तक एशियाई सांस्कृतिक संबंधों को तलाशने की कोशिश है। इलाके के तमाम देशों में पहले काफी गहरे सांस्कृतिक संबंध थे। हमारे आधुनिक संसार और इसकी सीमाओं ने हमें अलग-थलग कर दिया, लेकिन आपसी रिश्ते बने रहे। इस एकजुटता में स्त्री की भूमिका अहम है।'

लाल ने कहा, 'स्त्री अपने बारे में तो बात करती है, लेकिन वह अपने तक ही सीमित नहीं रहती। वह उसे व्यापक और समग्र बना देती है। हर स्त्री सपना देखती है और उसकी कुछ अपेक्षाएँ होती हैं। एशिया की स्त्रियाँ इसी संपूर्णता में अपना सम्मान और अपनी पहचान चाहती हैं।'

पुस्तक की दूसरी संपादक सुकृति पाल कुमार कहती हैं कि एशियाई महिलाएँ पश्चिमी देशों की महिलाओं से अलग हैं, श्चिमी देशों की महिलाएँ जहाँ समस्याओं से मुँह मोड़कर जीवन से भागने का प्रयास करती हैं, वहीं एशियाई महिलाएँ जीवन से जूझ कर उसे खूबसूरत बनाने में जुटी रहती हैं।

वे कहती हैं,'इस संकलन की रचनाएँ आत्मकथ्य की तरह तो हैं ही, बहुआयामी चिंतन का सबूत भी हैं। एशियाई हिलाओं का जीवन बेहद कठिन है, लेकिन उन्होंने इस कठिनाई को खूबसूरत स्वरूप प्रदान किया है।'

कपिला वात्स्यायन ने कहा कि छपे हुए शब्द पढ़ते या सुनते वक्त अनुभवों और संवेदना में बदल जाते हैं। वो कहती हैं, 'यह पुस्तक स्त्रियों के कथ्य की व्यापकता और गहराई को समग्रता के साथ पेश करती है। अफगानिस्तान से वियतनाम तक की महिलाओं को एक सूत्र में पिरोकर एक शक्तिशाली संवाद कायम करना ही इसका मकसद है।'

मृणाल सेन का कहना था, 'जीवन और समाज में स्त्री की भूमिका अहम है। रचनात्मक भूमिका के बावजूद स्त्री की उपेक्षा की कथा है यह पुस्तक।'

जाने-माने लेखक सुनील गंगोपाध्याय ने कहा कि एशिया की स्त्रियों की विशिष्ट रचनाओं को पढ़कर उनकी गहरी संवेदना का अहसास होता है।

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