कोच्चि का वो गांव जहां लगी आविष्कारों की झड़ी
- ज़ुबैर अहमद (कोच्चि से)
कोच्चि में 'स्टार्टअप विलेज' के नाम से आविष्कारों का एक छोटा सा कैंपस है, जिससे ब्लैकबेरी का कुछ हद तक भविष्य जुड़ा हुआ है। हाल में ही ब्लैकबेरी ने बीबी 10 प्लेटफार्म लॉन्च किया, जिसे कंपनी ने कोच्चि के इस कैंपस में बने 144 ऐप्स से सजाया है।
ब्लैकबेरी इंडिया की ऐनी मैथ्यू का कहना है कि बीबी 10 का दुनिया भर के बाज़ारों में अच्छा असर हुआ है। जाहिर है इसमें इस कैंपस का भी योगदान रहा है।ऐनी ने बीबीसी से बातचीत में कहा, 'ब्लैकबेरी ने 'स्टार्टअप विलेज' से प्रभावित हो कर यहां अविष्कारों का एक ज़ोन खोला है, जिसे रूबस लैब्ज़ कहते हैं। इस लैब में काम करने वाले युवाओं ने 150 से अधिक ऐप्स तैयार किये जिन में से 144 को बीबी 10 में शामिल किया गया।'ब्लैकबेरी जैसी अंतरराष्ट्रीय कंपनी की नजरों में आना इस कैंपस की अब तक की सबसे बड़ी कामयाबी है।पिछले साल 17 अप्रैल को स्थापित हुए इस कैंपस का उद्देश्य है, अगले दस सालों में 1000 सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर कंपनी बनाने में लोगों की मदद करना, जिनमें से कम से कम एक कंपनी एक अरब डॉलर वाली कंपनी हो।कहां है भारतीय टैलेंट : स्टार्टअप विलेज की प्रवक्ता एलिजाबेथ जॉय कहती हैं, 'इस उद्देश्य को हासिल करना कठिन जरूर है, लेकिन असंभव नहीं।'भारत का आईटी क्षेत्र में बड़ा नाम है। इनफोसिस और विप्रो जैसी आईटी कंपनियों का जाल कई देशों में फैल चुका है। लेकिन इसके बावजूद इस देश ने माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, ट्विटर और फेसबुक जैसी कंपनियां दुनिया को नहीं दी हैं।लेकिन हां, इन कंपनियों में भारतीय मूल के लोगों का एक बड़ा योगदान जरूर है। मगर भारत ने अब तक कोई मार्क ज़करबर्ग या लैरी पेज जैसी हस्तियां पैदा नहीं की है।एलिज़ाबेथ जॉय का कहना है कि स्टार्टअप विलेज इसी कमी को पूरा करने की एक कोशिश है। पिछले साल केंद्र सरकार ने केरल राज्य और कुछ निजी कंपनियों के साथ मिल कर काल्पनिक सुझावों और आविष्कारों का ये कैंपस शुरू किया था।इस कैंपस में दर्जनों युवा अलग-अलग समूह बना कर नए ऐप्स बनाने में जुटे हैं। इनमें से एक युवा का कहना है, 'ये छोटा कदम जरूर है, लेकिन आईटी वर्ल्ड की बुलंदी तक पहुंचने के लिए ये एक जरूरी कदम है।'
नाकामी का डर नहीं : यहां सभी युवा आत्मविश्वास से भरे है। इनमें से कोई भी नाकामी से नहीं डरता। कैंपस की एक दीवार पर एक नारा लिखा है जिससे इन्हें प्रेरणा मिलती है, 'नाकामी कामयाबी का सबसे पहला कदम है।'यहां कोई अगला बिल गेट्स बनना चाहता है तो कोई भविष्य का मार्क जुकरबर्ग। कोई फेसबुक और गूगल जैसी कामयाब अंतरराष्ट्रीय सॉफ्टवेयर कंपनी स्थापित करने का सपना देख रहा है तो कोई अगला अमेजन डॉटकॉम बनाने का ख्वाब।लेकिन पिछले एक साल में इस कैंपस से कुछ ही सॉफ्टवेयर या आईटी हार्डवेयर कंपनियां बन कर बाहर निकली हैं। अधिकतर सफलता ऐप्स के क्षेत्र में हुई है जिससे ये डर पैदा हो गया है कि कहीं ये सिर्फ ऐप्स बनाने वाली फैक्ट्री न बन कर रह जाए।लेकिन एलिजाबेथ जॉय का कहना है, 'ऐप्स भी यहां बनेंगे क्योंकि एप्स सॉफ्टवेयर कंपनियों का एक हिस्सा है। लेकिन हमारा फोकस हैं यहां पेशेवर कंपनियों को स्थापित करना और उन्हें बढ़ावा देना। स्टार्टअप विलेज की प्रणाली ये है कि कोई भी नये आइडियाज के साथ यहां आ सकता है। अगर उसके आइडिया में दम है तो कैंपस उसकी मदद करेगा।'कहते हैं आईटी क्षेत्र की लगभग सभी बड़ी कंपनियों का पहला आइडिया या तो कैंपस में आया या हॉस्टल के कमरों में। इस कैंपस में काम कर रहे लड़के और लड़कियों को ये बात अच्छी तरह मालूम है।स्टार्टअप विलेज की दीवारें फेसबुक के मार्क जुकरबर्ग, गूगल के लैरी पेज, इंफोसिस के क्रिस गोपालकृष्णन और एप्पल के स्टीव जॉब्स की बड़ी-बड़ी तस्वीरों से सजी हैं।ये तस्वीरे ही काफी है यहां काम करने वाले युवाओं को ये याद दिलाने के लिए कि अगर आइडिया बड़ा हो तो मंजिल दूर नहीं है।