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चेतन भगत और '100 करोड़' की शर्त

वंदना, बीबीसी संवाददाता

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, मंगलवार, 19 फ़रवरी 2013 (11:50 IST)
BBC
कहने को तो चेतन भगत एक लेखक हैं और उनकी किताबें बेस्टसेलर लिस्ट में रहती हैं, लेकिन ये लेखक अक्सर सोशल मीडिया पर आपको अपनी बेबाक टिप्पणियों के साथ भी मिल जाएंगे।

फिल्मी दुनिया से भी उनका नाता है। 'थ्री इड्‍यिट्‍स' उनकी ही किताब पर बनी थी। अब 'थ्री मिस्टेक्स ऑफ माई लाइफ' पर फिल्म 'काई पो चे' बनकर तैयार है, लेकिन तारीफ के साथ-साथ लोगों ने उनकी लेखन शैली की आलोचना भी कम नहीं की है।

अपनी किताबों, फिल्मों, राजनीति, धर्म, हिन्दी साहित्य की स्थिति, समाज में महिलाओं की हालत और अपने आलोचकों के बारे में चेतन भगत ने बीबीसी हिन्दी से विशेष बातचीत की- अपने बेबाक अंदाज़ में।

आपकी किताब 'थ्री मिस्टेक्स ऑफ माई लाइफ़' पर आधारित फिल्म 'काई पो चे' बर्लिन फिल्म फेस्टिवल जा रही है। एक लेखक कुछ किरदार लिखता है, एक दिन फिल्म के ज़रिए उन किरदारों को एक चेहरा मिलता है, बतौर लेखक आपको कैसा लगता है?

ऐसा लगता है कि असल दुनिया में रहते हुए भी मैं कोई सपना देख रहा हूं। कुछ किरदारों की कल्पना करके मैने उन्हें एक किताब में ढाला था। अब अचानक उन किरदारों को मैं और पूरा देश फिल्मी पर्दे पर देखेगा।

काफी अजीब-सा भी लग रहा है। जिस कहानी में मैंने इतना विश्वास रखा, आज वो इतनी बड़ी हो गई कि मेरे बगैर भी वह कहानी चर्चा में है। गुजरात के मध्यम वर्ग के लोगों की कहानी बर्लिन फिल्म फेस्टिवल पहुंचेगी। ऐसा सोचा नहीं था। मेरे लिए यह बड़ा पल है।

थ्री मिस्टेक्स ऑफ माई लाइफ का ताना-बाना दोस्ती, धर्म, राजनीति के इर्द-गिर्द घूमता है। कई बार राजनीति धमें में दखल देती हैं। इस पर आपके क्या विचार हैं?

धर्म की लोगों के जीवन में बहुत बड़ी जगह है। भारत एक धार्मिक देश है। ज़ाहिर है ऐसी कोई भी चीज़ जिससे लोगों को आपस में बांटा जा सकता है, राजनेता उसका फायदा उठाते आए हैं। हमारा काम ये है कि लोगों को एक रखें।

अक्सर धर्म के नाम पर झगड़े इसीलिए होते हैं क्योंकि पुराने गिले-शिकवे माफ नहीं किए जाते। हम किसी को ठेस तो पहुंचा देते हैं, लेकिन उन ज़ख्मों पर कोई मरहम नहीं लगाता है। इसीलिए मैंने ये कहानी लिखी थी कि शायद पुराने घाव भर जाएं।

ठीक है हमारे बीच झगड़े हुए लेकिन फिर भी अंदर से हम अच्छे लोग हैं। सुलह-सफाई वाली चीज़ें ज़्यादा होनी चाहिए ताकि राजनीति के नाम पर लोगों को इस्तेमाल न किया जा सके। और कोई राजनेता गलत काम करता है तो मेरे जैसे लोगों को बोलना चाहिए क्योंकि हमारी आवाज़ कुछ हद तक सुनी जाती है।

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BBC
वो क्या चीज़ है जो आपकी कहानियों को लोगों को दिलों के करीब पहुंचाती है?
मुझे लगता है कि एक तो इन कहानियों में मनोरंजन होता है और साथ ही यह हकीकत के करीब होती हैं।

इन दोनों चीज़ों का तालमेल ही शायद मेरी किताबों को कामयाब बनाती है। कहीं न कहीं आज का युवा वर्ग खुद को इन कहानियों से जोड़कर देख पाते हैं।

आपके बहुत से प्रशंसक हैं, लेकिन तारीफ के साथ-साथ आलोचना भी होती है. उससे कैसे निपटते हैं?

जहां चाशनी होती है वहां मक्खियां तो आएंगी। इतना तो बर्दाश्त करना ही पड़ेगा। शायद लोगों की उम्मीदें बहुत ज़्यादा हैं मुझसे। कइयों को लगता है कि मैं परफेक्ट लेखक हूं, लेकिन ऐसा है नहीं।

मेरा लिखने का स्टाइल पॉपुलर स्टाइल ऑफ राइटिंग है। पारंपरिक साहित्य पढ़ने लिखने वाले हैं उन्हें शायद मेरा स्टाइल निराशा करने वाला लगता है।

आप ट्विटर जैसे सोशल मीडिया माध्यमों पर काफी सक्रिय रहते हैं। आजकल फिल्म के प्रमोशन से लेकर प्रदर्शन तक सोशल मीडिया पर होता है। एक बेहतर समाज के निर्माण में सोशल मीडिया का कितना रोल देखते हैं?

सोशल मीडिया अब बहुत बड़ा प्लेटफॉर्म बन गया है। मेरे जैसे लेखक के लिए तो ये बहुत अच्छी चीज़ है।

मेरा काम है कि मैं युवाओं तक अपनी बात पहुंचाऊं - चाहे वो किताबों के ज़रिए हो, फिल्मों के या सोशल मीडिया के ज़रिए। सोशल मीडिया बड़ा सशक्त माध्यम है क्योंकि मैं लोगों से तुरंत अपनी बात बाँट सकता हूं और उनकी प्रतिक्रिया जान सकता हूं।

क्या वजह है अंग्रेज़ी के लेखकों को भारत में सम्मान दिया जाता है लेकिन हिन्दी साहित्य को थोड़ा नीची नज़र से लोग देखते हैं?

यह बहुत ग़लत है। एक लेखक होते हुए मैं पूरी कोशिश करता हूं कि मैं हिन्दी को बढ़ावा दे सकूं। मैं लगातार हिन्दी में कॉलम लिखता हूं।

अपनी किताब टू स्टेस का मैंने हिन्दी संस्करण निकलवाया है। हिन्दी फिल्मों के साथ मैं जुड़ा रहता हूँ. मैं तो यही कहूंगा कि लोगों से कि जब आप हिन्दी गाने सुन सकते हैं, हिन्दी फिल्में देख सकते हैं तो हिन्दी साहित्य का भी आनंद उठाइए।

दिल्ली में पिछले साल एक लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ, वो भी आपकी किताबों की फैन थी। समाज में ऐसी घटनाओं पर आप क्या कहेंगे?

यह समाज के लिए बहुत शर्म की बात है। यह एक आईना है कि हमारा समाज परफेक्ट नहीं है। हमें बहुत परिवर्तन करने की ज़रूरत है क्योंकि ऐसी बातें सभ्य समाज में नहीं होतीं। आवाज़ तो बहुत उठाई है लोगों ने। उम्मीद है कि कुछ बदलाव होगा।

चेतन भगत लेखक हैं, फिल्मों के साथ जुड़े हैं, मोटिवेशनल स्पीकर हैं। सोशल मीडिया पर ऐक्टिव रहते हैं। काफी सारे रोल एक साथ निभाते हैं आप। चेतन भगत को कौन सा रोल पसंद है...

मैं समाज में कुछ बदलाव लाना चाहता हूं। एक लेखक ज़्यादा से ज़्यादा यही कर सकता है कि वो लोगों की सोच बदल सकता है। यही मेरा काम है। इसके लिए पहले मुझे लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचना होगा।

वो मैं अपनी किताबों और फिल्मों के ज़रिए करता हूं। जब लोगों का ध्यान मेरी तरफ हो जाता है तो मैं उनसे कहता हूं कि आप राजनीति, समाज आदि के बारे में मेरी बातें सुनिए। आप मुझे भले ही अलग-अलग रोल में देखते होंगे लेकिन मेरे लिए इन सब भूमिकाओं का मकसद एक ही है। मैं लोगों की सोच में परिवर्तन लाने के लिए ऐसा करता हूं।

आखिर में एक सवाल आपकी फिल्म पर। ट्विटर पर मैंने पढ़ा कि यूटीवी के रॉनी स्क्रूवाला और आपके बीच 100 करोड़ की कोई शर्त लगी है?

रॉनी स्क्रूवाला ने ट्विटर पर मेरे साथ शर्त लगाई है कि 'काई पो चे' का बिज़नेस 100 करोड़ से ज़्यादा का होगा। मुझे बड़ी खुशी होगी अगर वो मैं ये शर्त हार जाऊं। 'काई पो चे' के लिए 100 करोड़ कमाना कोई मज़ाक नहीं है क्योंकि इसमें ज़्यादातर नए कलाकार हैं। देखिए क्या होता है।

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