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...तो फिर बेरोज़गार हो जाएंगे किडनी चोर

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विज्ञान फंतासी क्या कोरी कल्पना होती हैं? क्या इंसान के उड़ने, पानी में सांस लेने या जले-कटे-ख़राब हो चुके अंग दोबारा उगने की कल्पना कभी सच हो सकती है?

मानव अंगों के पुनरुत्पादक दवाओं से जुड़े डॉक्टर एंथनी अटाला की मानें तो किडनी जैसे जटिल अंग जल्द ही प्रयोगशाला में प्रिंट होकर शरीर में फिट हो जाएंगे।

वे कहते हैं कि दवाओं ने इंसान को ज़्यादा समय तक जिंदा रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। लेकिन जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है वैसे-वैसे शरीर के अंग काम करना बंद करने लगते हैं।

हर साल मानव अंग प्रत्यारोपण की मांग बढ़ती जा रही है, जिसे पूरा करना मुश्किल हो रहा है। इसी से वैज्ञानिकों को यह विचार आया कि अगर प्रत्यारोपण की बजाय अंग तैयार किए जा सकें तो कितना अच्छा हो।

प्रयोगशाला में मानव अंग : इस विचार से जन्म हुआ पुनरुत्पादक दवाओं के क्षेत्र का। सालों के अध्ययन के बाद डॉक्टर अटाला की टीम ऐसे जैविक पदार्थ तैयार करने में कामयाब हो सकी है जो दिखते तो किसी कपड़े के टुकड़े की तरह हैं लेकिन उन्हें शरीर में रोपित किया जा सकता है। शरीर की कोशिकाओं से सामंजस्य बनाकर ये अंदरूनी अंग की तरह विकसित हो जाते हैं।

डॉक्टर अटाला कहते हैं कि ख़ास रूप से तैयार जैविक पदार्थों की मदद से वैज्ञानिक क्षतिग्रस्त कोशिका की मरम्मत करने में सफल हो गए हैं। करीब बारह साल पहले डॉक्टर अटाला की टीम ने एक दस साल के बच्चे के मूत्राशय का एक टुकड़ा लेकर उसे प्रयोगशाला में विकसित किया और पूर्ण रूप से विकसित उस मूत्राशय को फिर से बच्चे के शरीर में प्रत्यारोपित कर दिया। आज इस बच्चे की उम्र बीस साल से ज्यादा है और वो सामान्य व्यक्ति की तरह ज़िंदगी जी रहा है।

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मानव अंग प्रिंटर : लेकिन सबसे चमत्कारी लगने वाली नई तकनीक है मानव अंग प्रिंटर। ये एक सामान्य इंकजेट प्रिंटर की तरह ही काम करता है बस इसमें स्याही की जगह जीवित कोशिकाओं का इस्तेमाल किया जाता है।

प्रिंटिंग की नई तकनीक में एक बड़े स्कैनर से व्यक्ति के चोटिल स्थान को स्कैन किया जाता है। फिर कम्प्यूटर की मदद से उस घाव को उपयुक्त कोशिकाओं से भर दिया जाता है। यह तकनीक भी अभी विकास के चरण में है।

डॉक्टर अटाला की टीम किडनी बनाने में सक्षम प्रिंटर पर भी काम कर रही है। अंग प्रत्यारोपण वाले मरीज़ों में करीब 90 फ़ीसदी किडनी के होते हैं।

जल्द बनेगी किडनी भी : क्योंकि किडनी एक कई काम करने वाला एक जटिल अंग है इसलिए इसकी कई परतों का 360 डिग्री से फ़िल्मांकन किया जाता है। इसके बाद परत-दर-परत थ्रीडी प्रिंटिंग की जाती है।

एक किडनी प्रिंट होने में करीब 7 घंटे का समय लगता है. डॉक्टर अटाला हाथों-हाथ प्रिंट की गई एक किडनी दिखाते भी हैं। यह बिलकुल असली किडनी की तरह लगती है लेकिन इसके काम करने लायक बनने में अभी और वक्त लगेगा। हालांकि डॉक्टर अटाला को उम्मीद है कि छोटी-बड़ी कई सफ़लताओं के इस रास्ते में अब बड़ी ख़ुशखबरी को देर तक नहीं रोका जा सकता।

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